सीएसआर के भरोसे क्यों बैठी रही सरकार; ऐसी दूरदृष्टि की नहीं दरकार

तो क्या यह माना जाएगा कि कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉसिबिलिटी (सीएसआर) फंड को चीफ मिनिस्टर शाइनिंग रिस्पॉसिबिलिटी (सीएसआर) बना दिया गया है

भारत सारथी/ऋषि पकाश कौशिक

बहुत अच्छा किया, सरकार का पैसा बचा लिया और कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉसिबिलिटी (सीएसआर) के धन से काम करवा दिया। ऐसे काम जो जनता की जान बचाने के लिए बहुत जरूरी थे, कंपनियों के धन से करवा लिए। मसलन, स्वास्थ्य केंद्रों तक ऑक्सीजन पहुंचाना, कोविड केयर सेंटर और मेक शिफ्ट अस्पतालों का निर्माण करना, मरीजों के लिए वेंटीलेटर, आक्सीजन सिलेंडर और एंबुलेंस वाहन उपलब्ध कराना, चिकित्सकों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों के लिए पीपीई किट उपलब्ध करवाना , सेनेटाइजर, मास्क, दवाएं और अन्य आवश्यक सामग्री मुहैया कराना आदि। कोविड रोगियों की जान बचाने के लिए ये सेवाएं बहुत जरूरी हैं। इन सेवाओं की अहमियत बख़ूबी समझने वाले मुख्यमंत्री खुद ही बताएं कि इन सेवाओं के अभाव में प्रदेश के कितने लोग जान गंवा चुके हैं। 

यह और भी अच्छी बात है कि कोर्पोरेट सेक्टर ने यह जिम्मेदारी मुख्यमंत्री की अपील पर निभाई है। सरकार और मुख्यमंत्री की पार्टी दोनों का ही मानना है कि मुख्यमंत्री की दूरदृष्टि से यह मुमकिन हो पाया है। क्या कहने हैं उनकी दूरदृष्टि के, जो बहुत नजदीक मंडरा रहा संकट भी नहीं देख पाईं।  पिछले सवा साल से प्रदेश में कोरोना का तांडव हो रहा है और सरकार जरूरी चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराने के लिए सीएसआर के धन की प्रतीक्षा कर रही थी। माना कि कोर्पोरेट जगत की सोशल रिस्पॉसिबिलिटी है तो सरकार की भी तो कोई सोशल रिस्पॉसिबिलिटी होगी। यदि थी तो उस सोशल रिस्पॉसिबिलिटी के तहत सरकार ने अपने खजाने से जरूरी चिकित्सा सुविधाओं पर कितना पैसा खर्च किया, यह जानने का प्रदेश की जनता को हक है। कृपया बताएं। 

 प्रदेश की जनता मुख्यमंत्री की दूरदृष्टि पर कायल हो जाती यदि जरूरी चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में हाहाकार नहीं होता और लोगों की अकाल मृत्यु पर रुदन की चीत्कार नहीं सुनाई देती। क्या इसे ही दूरदृष्टि कहेंगे? ऐसी दूरदृष्टि किसी प्रदेश की जनता को नहीं चाहिए। मुख्यमंत्री खुद ही बताएं कि सवा साल में सरकारी खजाने से कितनी सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं। अब जबकि कोविड 19 के मरीजों की संख्या लगातार कम हो रही है और चिकित्सा सुविधाओं पर दबाव निरंतर कम हो रहा है उस समय आपकी दूरदृष्टि का फल जनता को मिल रहा है। जनसाधारण की भाषा में इसे ऐसे समझ सकते हैं कि समय पर बारिश होने से ही फसल अच्छी होती है। फसल कटाई के समय बारिश होने से फसल बेहतर नहीं होती है।  

मुख्यमंत्री मनोहर लाल की अध्यक्षता में वर्ष 2018 में एक सीएसआर एडवाइजरी बोर्ड गठित किया गया था। इस बोर्ड के गठन का उद्देश्य सीएसआर फंड के तहत होने वाले कार्यों को चैनलाइज करना था। कोविड 19 महामारी के दौरान मुख्यमंत्री की पहल पर इस बोर्ड के माध्यम से कॉर्पोरेट सेक्टर के सीएसआर फंड को कोरोना नियंत्रित करने के उपाय में भी शामिल किया गया।

प्रयास सराहनीय है। ताली और थाली बजा कर मुख्यमंत्री के प्रयासों की सराहना होनी चाहिए लेकिन सीएसआर एडवाइजरी बोर्ड ने तीन साल में क्या किया। यदि बोर्ड 2018 से काम कर रहा है कोविड 19 की गंभीरता को देखते हुए सीएसआर के धन का 2021 में इस्तेमाल क्यों हुआ। 

मार्च 2020 में बीमारी की गंभीरता देखते हुए प्रधानमंत्री ने पूरे देश में लॉकडाउन लागू करने की घोषणा की थी। उसी समय मुख्यमंत्री की दूरदृष्टि का लाभ लेकर बोर्ड सक्रिय क्यों नहीं हुआ। चूंकि मुख्यमंत्री खुद इस एडवाइजरी बोर्ड अध्यक्ष हैं इसलिए बोर्ड को उनकी दूरदृष्टि का लाभ लेना चाहिए था। इन सवालों का उचित जवाब नहीं मिला तो यह माना जाएगा कि कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉसिबिलिटी (सीएसआर) फंड को चीफ मिनिस्टर शाइनिंग रिस्पॉसिबिलिटी (सीएसआर) बना दिया गया है।  

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