जब देश मे सारे विद्यालय बंद हैं बाबा अपने गुरुकुल को खोलकर इन बच्चों से कोरोनिल बनवा रहा है।
बालशोषण ओर कोरोना गाइड लाइन उल्लघन का संगीन अपराध।
आयुर्वेद- हिंदुओ का, यूनानी चिकित्सा- मुसलमानों का,एलोपैथी चिकित्सा- ईसाइयों का, बस यही ट्रेंड है, गाड़ी इस पर रास्ते पर लाई जा रही है।

अशोक कुमार कौशिक

 लगता है रामदेव बाबा ने अपने आप को चर्चित रहने और सुर्खियों में रखने का तरीका पकड़ लिया है। अतीत में उनको लेकर बनाए गए एक सीरियल में हरियाणा के जिला महेंद्रगढ़ में स्थित गांव सैदअलीपुर वह में ब्राह्मणवाद को लेकर झूठी अत्याचार की कहानी गढ़ी गई थी जिसका लेकर हरियाणा में जिले में भारी विरोध हुआ था क्योंकि इस गांव में एक मात्र ब्राह्मण परिवार है जिस की आर्थिक स्थिति इतनी सुदृढ़ नहीं कि वह अहीर बाहुल्य गांव में संपन्न रामदेव परिवार पर शोषण कर सके। 

अभी एलोपैथी वाला विवाद खत्म भी नहीं हुआ कि नहीं जानकारी सामने आई है। आइये अब आपको बताते हैं बाबा रामदेव के द्वारा संचालित संस्थाओं में हो रहे गोरखधंधे की सच्ची कहानी। यह बच्चे जो तस्वीर में दिख रहे हैं छ्त्तीसगढ़ औए आदिवासी बहुल गरियाबंद जिले के हैं। जिन्हें बाबा रामदेव के पतंजलि गुरुकुलम हरिद्वार स्थित वैदिक कन्या गुरुकुलम में 2 लाख 25 हजार रुपये देकर भर्ती कराया गया था। जब देश मे सारे विद्यालय बंद हैं बाबा अपने गुरुकुल को खोलकर इन बच्चों से कोरोनिल बनवा रहा है। घटना बुधवार 26 मई की बताई जा रही है। इस समाचार को छत्तीसगढ़ में प्रकाशित होने वाले नवभारत के रायपुर संस्करण में आज प्रमुखता से छापा है।

आश्चर्यजनक यह है कि जब इन छोटे बच्चों के अभिभावक अपने बच्चों को लेने आश्रम पहुंचे तो आश्रम प्रबंधन ने बच्चों को छोड़ने से इनकार कर दिया और कहा कि दो लाख रुपये दो तभी बच्चे छूटेंगे। अभिभावकों के पास बच्चों को छुड़ाने के पैसे नही थे। जैसे तैसे उन्होंने इसकी सूचना छ्त्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री कार्यालय को दी और सरकार हरकत में आई। इस आशय का का एक पत्र अभिभाकों द्वारा हरिद्वार के शिक्षा अधिकारी को लिखा गया है।

गरियाबंद के कलेक्टर नीलेश क्षीरसागर और एसपी ने तत्काल इसकी सूचना अपने उत्तराखंड के बैचमेट्स को दी और वहां हरिद्वार के कलेक्टर से बात करके बच्चों को छुड़ाने के प्रयास शुरू किए गए। कलेक्टर ने इस बात से इनकार नही किया है कि रामदेव के गुरुकुल में अभी और बच्चे भी बंधक हो सकते हैं।

ये समाचार निश्चित रूप से बहुत भयानक और दुःखद है।इसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। रामदेव को बालशोषण ओर कोरोना की अनदेखी के अपराध में जेल में डालना चाहिए क्योंकि मामला बच्चों के भविष्य से जुड़ा हुआ है। कोई समझौता नहीं होना चाहिए।

रामदेव के कैरेक्टर के दो परस्पर विपरीत पक्ष

रामदेव के कैरेक्टर के दो पक्ष हैं, पहला पक्ष अति उजला, देश व समाज का हितैसी। लेकिन दूसरा पक्ष उतना ही स्याह, कुटिलतापूर्ण। तो आईये, सबसे पहले उसके उज्जवल पक्ष की चर्चा करते हैं। जातिवादी बाबाओं की ठेकेदारी से परे एक यादव जाति का रामदेव कुछेक सालों में ही योगासन और आयुर्वेद का प्रणेता बनाकर उभरा।बेहद परिश्रमी, कुशल व्यवसाई समाज का हितेषी रामदेव अपनी काबिलियत के बल पर सिर्फ भारत का ही नहीं, विश्व का एक सफल व्यवसाई बन गया। उसने सदियों पुराने योग और आयुर्वेद के ज्ञान को जन जन तक पहुंचाने का महती काम कर समाज को निरोगी रहने में मार्गदर्शक की भूमिका अदा की, जिसका हमारा समाज सदा ऋणी रहेगा।

एक बिना पढा लिखा इंसान, जिसकी मैनेजमेंट टैक्टिस स्वयं में उदाहरण है। एमबीए कोलेजों में उसके मोडल को  उदाहरणस्वरुप पेश जाता है। पहले से स्थापित अन्य आयुर्वेदिक कंपनियों को पीछे छोड़कर पूरे मार्केट के अधिकांश शेयर पर कब्जा कर लेता है, और वो भी इतने कम समय में। इसकी जितनी भी तारीफ़ की जाये, कम है। दवा व्यापार, कोस्मेटिक व्यवसाय, कोल्डड्रिंक व स्नैक व्यापार पर जोरदार तमाचा मारते हुए, लोगों में जागरूकता पैदा की और जो धनराशि विदेशी मुद्रा में खर्च होती थी, उस पर काफी हद तक लगाम लगाईं। करोड़ों रुपये खर्च कर लुभावने विज्ञापनों द्वारा भ्रमित कर अपने कोस्मेटिक प्रोडक्ट्स बेचने वाली कंपनियों के प्रति समाज को सचेत किया  स्वदेशी की ब्रांडिंग करने में रामदेव पूरी तरह से सफल रहा। सबसे बड़ी बात ये, कि सदियों से हमारा आयुर्वेद का जो ज्ञान किताबों में पडा सड रहा था, उसमें आगे कोई भी रिसर्च नहीं हो रही थी, रामदेव नें एलोपैथी की रिसर्च की, टेस्टिंग की टेक्निक अपना कर आयुर्वेद को विश्वसनीय बनाने और एलोपैथी से टक्कर लेने का काम किया और यह कार्य रामदेव को विश्वस्तरीय चेहरा बना गया। बड़ी बड़ी विदेशी कंपनियों की सेल में भारी कमी आने लगी। इससे घबराकर वे विदेशी कम्पनियां रामदेव को डाउन करने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाने के बावजूद रामदेव का साहस उन्हें डिगा नहीं पाया। 

उसने बिना दवा के, बिना डाक्टर के निरोगी रहने के प्रति समाज को जागरूक किया। मोटापा-डाइबिटीज से छुटकारा दिलाने में उसका प्रयास अतुलनीय है।रामदेव की इन्हीं खूबियों और सन्यास लेने के कारण उसे बाबा की उपाधि से नवाजा गया, स्वामी की उपाधि से विभूषित किया गया। तो ये था रामदेव के व्यक्तित्व का उजला पक्ष।

लेकिन जितना चमकदार उसका उज्जवल, उसका सफ़ेद पक्ष है, उससे कहीं खतरनाक उसका स्याह पक्ष भी है, जिसके बारे में हम आगे भविष्य में विस्तार से चर्चा करेंगे। 

अब बात करते हैं नए विवाद एलोपैथी बनाम आयुर्वेद को लेकर। आयुर्वेद- हिंदुओ का। यूनानी चिकित्सा- मुसलमानों का। एलोपैथी चिकित्सा- ईसाइयों का। बस यही ट्रेंड है। गाड़ी इस पर रास्ते पर लाई जा रही है। इसे सुनियोजित तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है।

अब ईसाइयों की एलोपैथी है तो हमे इलाज लेना बंद कर देना चाहिए क्योंकि हम स्वदेशी और स्वधर्मी पद्दति से इलाज लेंगे। हम अपने जीवन में कोई भी चीज़ गैर धर्मी नहीं चाहते हैं। अगर हम सच में स्वधर्मी और स्वदेशी पर उतर आए तो आफत हो जाएगी।

इसमे कोई दो राय नहीं कि आज भी सारे विश्व के सर्वोसर्वा ईसाई ही है और इसका कारण भी है। गुज़श्ता सदियों में ईसाइयों का सारे विश्व पर राज रहा है, अभी अस्सी साल पहले ही आधी दुनिया में ब्रिटेन की हुकूमत का सूरज नहीं डूबता था।

उन्होंने आदमी के जीवन के हर हिस्से में अपनी जगह बनाई है। आप अंडरवियर भी उनकी ही पहन रहे हैं। ऐलोपैथ तो छोड़िए आपके जीवन का कैलेंडर भी उनका ही है। आपके घर में चलते पंखे भी उन्हीं के है।

आज भी उनका दम यह है कि अगर सारे एक जुट होकर मुसलमानों और हिंदुओं पर भिड़ जाए तो नाम ओ निशान तक नहीं रहने दे। हम मुस्लिम देश मुस्लिम देश करते है ज़रा कल्पना कीजिए अगर इस ही आधार पर सारे ईसाई देश एक जुट हो जाए तो क्या हश्र करेंगे! इसलिए इज़राइल फिलिस्तीन के मामले में धर्म के आधार पर कोई बोलता नहीं है, मुसलमान देश चुप्पी साध कर बैठे होते हैं और इज़राइल का किया जा रहा कत्ल ए आम बर्दाश्त कर लेते है क्योंकि वह धर्म के आधार पर एकजुट नहीं होना चाहते, अगर गलती से ईसाई धर्म के आधार पर एकजुट हो गए और रूस, युनाइडेट स्टेट, फ़्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन मैदान में उतर आए तो मुसलमानों को कहीं कोने में जगह नहीं मिलना है क्योंकि तुर्की की तोप भी पश्चिम से आ रही है। इतने सारे मुसलमानों के देश है पर सब पश्चिम के रहम पर ही चल रहे हैं। इक़बाल पश्चिम के विरोधी थे पर वह भी पश्चिम के ही अधीन थे उनके चेले मुहम्मद अली जिन्ना का सारा जीवन पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित था।

आप चाह कर भी क्रिश्चिनिटी के विरुद्ध नहीं जा सकते है और अगर जाने की हिम्मत है तो उनकी एक एक ईज़ाद को छोड़कर कर बताइए। आप उनका कैलेंडर खत्म करके बताइए। आप उनके विज्ञान को छोड़कर बताइए। आप मोटर को छोड़कर गधे पर चलकर बताइए। हर अविष्कार की जड़ में उनके ही सिद्धांत बैठे हुए है। आप न चाहकर भी उनके ही अधीन है। आप हिंदी का राग अलाप करिए और फिर उस ही हिंदी में न्यूटन का सिद्धांत पढ़िए और उस ही हिंदी में नासा को अपोलो मिशन पढ़िए। आपने विज्ञान को हिंदी में लिख दिया इसका यह मतलब नहीं है कि सारे सिद्धांत आपने ही गढ़ दिए है।

फ़िज़ूल बहस खत्म कीजिए। आप किसी धर्म को मान लो पर रहना क्रिश्चिनिटी के सिद्धांतों के ही अधीन है। उनका कैलेंडर, उनका विज्ञान, उनकी भाषा, उनका पहनावा सब कुछ तो उनका ही है। आप ईसा को छोड़ सकते हो पर आप न्यूटन को नहीं छोड़ सकते। अगर आपने हिम्मत है तो सबसे पहले अपने घर का बिजली का कनेक्शन कटवा कर बताइए और चिमनी में रहकर बताइए क्योंकि बिजली को लाने वाला अलेक्जेंडर भी रूसी ईसाई ही था।

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