उत्तराखंड ,21 मई 2021 — पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का निधन हो गया है। उन्होंने एम्स ऋषिकेश में दिन में 12:35 पर अंतिम सांस ली। अंतिम समय में उनके साथ उनके पुत्र राजीव नयन बहुगुणा, पुत्री मधु पाठक, दामाद डॉ. भुवन पाठक, शीशराम कंसवाल और सामाजिक कार्यकर्ता समीर रतूड़ी एम्स में साथ रहे।

9 जनवरी सन 1927 को उत्तराखण्ड के मरोडा में जन्मे सुंदरलाल बहुगुणा की प्रा​थमिक शिक्षा के बाद आगे की शिक्षा के लिये लाहौर चले गए और लाहौर से उन्होनें बी.ए.की परीक्षा पास की।

सन 1949 में वहमें मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के संपर्क में आये और उनके साथ संपर्क में आने के बाद दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए संघर्षरत रहे। उन्होनें टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना की। दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन भी किये।

“कतरा कतरा तमाम हो जाये,वो न आएं ओ शाम हो जाये,” जयंती पर काव्य गोष्ठी के माध्यम से याद किए गए छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत सुंदरलाल बहुगुणा ने अपनी पत्नी विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ‘पर्वतीय नवजीवन मण्डल’ की स्थापना की। 1971 में उन्होनें शराब की दुकानों को खोलने के खिलाफ सोलह दिन तक अनशन किया।

चिपको आन्दोलन में अपनी भूमिका के कारण उन्हे विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम जाना जाने लगा। अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में सुंदरलाल बहुगुणा को 1980 में पुरस्कृत किया।

भारत सरकार द्वारा वर्ष 2001 में पद्यविभूषण की उपाधि से नवाजा गया। अंतरराष्ट्रीय मान्यता के रूप में उन्हें 1981 में स्टाकहोम का वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार दिया गया। वर्ष 1981 में ही सुंदर लाल बहुगुणा को पद्मश्री पुरस्कार दिया गया था लेकिन उन्होने इसे नही स्वीकारा।

1985 में सुंदरलाल बहुगुण को जमनालाल बजाज पुरस्कार, 1986 में जमनालाल बजाज पुरस्कार, 1987 में राइट लाइवलीहुड पुरस्कार, 1987 में शेर-ए-कश्मीर पुरस्कार, 1987 में सरस्वती सम्मान, 1989 सामाजिक विज्ञान के डॉक्टर की मानद उपाधि आईआईटी रुड़की द्वारा दी गई।

पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुण को वर्ष 1998 में पहल सम्मान, 1999 में गांधी सेवा सम्मान, 2000 में सांसदों के फोरम द्वारा सत्यपाल मित्तल अवॉर्ड और वर्ष 2001 में उन्हे पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। टिहरी बांध के खिलाफ वह जीवनभर संघर्षरत रहे।

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