राजीव गाँधी मारे गए!’ सब यह सुन कर स्तब्ध थे।
‘मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। मैं वैसे भी मारा जाऊँगा।” सात वर्ष बाद राजीव के बोले वो शब्द सही सिद्ध हुए थे।

अशोक कुमार कौशिक 

वह 21 मई 1991 की शाम थी। ‘यह कैसे हो सकता है?’  देश भर के लोग ख़ुद से कह रहे थे। दुनिया भी अवाक थी। देश तो यह जानता था कि ‘राजीव तो मद्रास में कहीं चुनाव प्रचार कर रहे हैं’।

समाचार चैनलों और लोगों के आपसी सवाल जवाब में जो बात सामने आयी- कि ‘ख़बर सच है। कुछ न्यूज एजेंसियों ने खबर फ़्लैश भी कर दी थी। प्रचार के दौरान एक बम विस्फोट में राजीव गाँधी की मौत हो गई।’ तमाम न्यूज़ ने ख़बर की पुष्टि कर दी थी। इतना दूरदर्शी हंसमुख प्रधानमंत्री खो कर देश में लोगों की आंखें नम हो चुकी थी। 

मैंने भी पहली बार किसी को हंसमुख प्रधानमंत्री जाना तो वह राजीव ही थे। जिन्हें हमने अपनी आंखों से बोलते हुए देखा था । प्रिंस सूट और फुल सफारी में अक्सर मुस्कान से भरा वह चेहरा टीवी पर आता था। उस दिन मौसम ने भी उस शाम अपना मिज़ाज बदला धूल भरी आंधियां चलने लगी। मानों प्रकृति भी उस महामानव की मृत्यु पर दुःख से अपना कलेजा फाड़ रही थी।

देश के नौवें प्रधानमन्त्री राजीव गांधी राजनीति में आने से पहले एयरलाइन पायलट की नौकरी करते थे। 40 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बनने वाले राजीव भारत के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री थे।

देश में पीढ़ीगत बदलाव के अग्रदूत राजीव गांधी को देश के इतिहास में सबसे बड़ा जनादेश प्राप्त हुआ था। अपनी मां की हत्या के शोक से उबरने के बाद उन्होंने लोकसभा चुनाव की कमान सम्भाली। उस चुनाव में कांग्रेस को पिछले सात चुनावों की तुलना में सर्वाधिक वोट मिले और पार्टी ने 508 में से रिकॉर्ड 401 सीटें हासिल कीं।

देश को पश्चिमी और हिन्दुस्तानी शास्त्रीय एवं आधुनिक संगीत पसंद, फोटोग्राफी एवं रेडियो सुनने का शौक रखने वाला अब तक का सबसे युवा प्रधान मिला। हवाई उड़ान जिसका सबसे बड़ा जुनून था।

स्वभाव से गंभीर लेकिन आधुनिक सोच एवं निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता वाले स्व. राजीव गांधी देश को दुनिया की उच्च तकनीकों से पूर्ण करना चाहते थे और जैसा कि वे बार-बार कहते थे कि भारत की एकता को बनाये रखने के उद्देश्य के अलावा उनके अन्य प्रमुख उद्देश्यों में से एक है – इक्कीसवीं सदी के भारत का निर्माण।

अपनी हत्या से कुछ ही पहले अमरीका के राष्ट्रपति जॉन एफ़ कैनेडी ने कहा था कि अगर कोई अमरीका के राष्ट्रपति को मारना चाहता है तो ये कोई बड़ी बात नहीं होगी बशर्ते हत्यारा ये तय कर ले कि मुझे मारने के बदले वो अपना जीवन देने के लिए तैयार है। “अगर ऐसा हो जाता है तो दुनिया की कोई भी ताक़त मुझे बचा नहीं सकती” । 

इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे पीसी एलेक्ज़ेंडर ने अपनी किताब ‘माई डेज़ विद इंदिरा गांधी’ में लिखा है कि राजीव सोनिया को बता रहे थे कि पार्टी चाहती है कि ‘मैं प्रधानमंत्री पद की शपथ लूँ’। सोनिया ने कहा हरगिज़ नहीं। ‘वो तुम्हें भी मार डालेंगे’। राजीव का जवाब था, ‘मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। मैं वैसे भी मारा जाऊँगा।” सात वर्ष बाद राजीव के बोले वो शब्द सही सिद्ध हुए थे।

21 मई, 1991 की रात दस बज कर 21 मिनट पर तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में ऐसा ही हुआ। तीस साल की एक नाटी, काली और गठीली लड़की चंदन का एक हार ले कर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की तरफ़ बढ़ी। जैसे ही वो उनके पैर छूने के लिए झुकी, कानों को बहरा कर देने वाला धमाका हुआ। चारों तरफ सिर्फ लाशें, खून, चीख और आंसू पसर गए। राजीव गांधी सहित कुल 18 लोगों की इस धमाके में मौत हो गई और कई लोग घायल हुए।

उस समय मंच पर राजीव के सम्मान में एक गीत गाया जा रहा था…. राजीव का जीवन हमारा जीवन है… अगर वो जीवन इंदिरा गांधी के बेटे को समर्पित नहीं है… तो वो जीवन कहाँ का?

राजीव की हत्या की साजिश की शुरुआत तभी शुरू हो चुकी थी जब अगस्त 1990 में राजीव गांधी का एक साक्षात्कार अमृत बाजार पत्रिका में प्रकाशित हुआ।इसमें उन्होंने भारत-श्रीलंका शांति समझौते का समर्थन किया था। यही बात लिट्टे को नागवार गुजरी । लिहाजा उसने उनकी हत्या का षड्यंत्र रचना शुरू किया। इस षड्यंत्र के मुख्य पात्र थे लिट्टे चीफ प्रभाकरण, लिट्टे की खुफिया इकाई के मुखिया पोट्टू ओम्मान, महिला इकाई की मुखिया अकीला और सिवरासन। सिवरासन ही राजीव गांधी की हत्या के षड्यंत्र का मास्टरमाइंड भी था।

राजीव गांधी का साक्षात्कार प्रकाशित होने के एक महीने बाद ही उनकी हत्या करने के उद्देश्य से लिट्टे के आतंकियों की पहली टुकड़ी शरणार्थी बनकर भारत आई इसके बाद कुल सात अलग-अलग टुकड़ियों में लोग आए और उन्होंने भारत में अलग-अलग जगह अपने ठिकाने बनाए। यहां से लगातार जाफना संदेश भेजे जाते थे। पत्रकार राजीव शर्मा द्वारा लिखी गई किताब ‘बियोंड द टाइगर्स: ट्रैकिंग राजीव गांधीज असैशिनेशन’ में यह भी लिखा गया है कि भारतीय नौसेना और रॉ ने राजीव गांधी की हत्या से संबंधित ये संदेश पकड़ भी लिए थे, लेकिन इनको हत्या के कई महीनों बाद ही डिकोड किया जा सका।

एक मई, 1991 को सिवरासन लिट्टे के सबसे समर्पित और इस षड्यंत्र के सबसे महत्वपूर्ण लोगों को लेकर भारत आया। इनमें मानव बम धनु और उसकी सहेली सुबा सहित कुल नौ लोग शामिल थे।सिवरासन ने भारत में धनु और सुबा को ट्रेनिंग भी दी। सात मई को मद्रास में वीपी सिंह की सभा होने वाली थी। सिवरासन इस रैली में धनु, सुबा और नलिनी को लेकर गया ताकि वे एक पूर्व प्रधानमंत्री के सुरक्षा घेरे में जाकर उसे माला पहनाने का अभ्यास कर सकें। वीपी सिंह के मंच पर आने से पहले सुबा और धनु ने उन्हें माला पहनाई। कही न कही इन हत्यारों की पहुँच पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह के करीबियों तक थी।

19 मई 1991 के अखबारों में राजीव गांधी का चुनावी कार्यक्रम प्रकाशित हुआ। यहीं से सिवरासन को मालूम हुआ कि 21 मई को राजीव गांधी श्रीपेरंबदूर आने वाले हैं। इसके बाद वह दिन आया जिसका इन लोगों को इंतजार था। सिवरासन ने सुबा और धनु को अंतिम उद्देश्य के लिए तैयार होने को कहा। धनु ने अपने शरीर में विस्फोटक लगा लिए।यहां से सिवरासन, धनु और सुबा ऑटो लेकर नलिनी के घर पहुंचे। सुबा ने नलिनी को उनकी मदद करने के लिए धन्यवाद दिया और बताया कि ‘धनु आज राजीव गांधी को मारकर इतिहास बनाने जा रही है।’ कुछ ही देर में राजीव गांधी वहां पहुंच गए। इस पर धनु ने सिवरासन और सुबा को वहां से हट जाने का इशारा कर दिया। अगले ही पल एक धमाका हुआ और चारों तरफ सिर्फ लाशें, खून, चीख और आंसू पसर गए।

वहाँ से मुश्किल से दस गज़ की दूरी पर गल्फ़ न्यूज़ की संवाददाता और इस समय डेक्कन क्रॉनिकल, बेंगलुरु की स्थानीय संपादक नीना गोपाल, राजीव गांधी के सहयोगी सुमन दुबे से बात कर रही थीं। नीना याद करती हैं, “मुझे सुमन से बातें करते हुए दो मिनट भी नहीं हुए थे कि मेरी आंखों के सामने बम फटा। मैं आमतौर पर सफ़ेद कपड़े नहीं पहनती। उस दिन जल्दी-जल्दी में एक सफ़ेद साड़ी पहन ली। बम फटते ही मैंने अपनी साड़ी की तरफ़ देखा। वो पूरी तरह से काली हो गई थी और उस पर मांस के टुकड़े और ख़ून के छींटे पड़े हुए थे। ये एक चमत्कार था कि मैं बच गई। मेरे आगे खड़े सभी लोग उस धमाके में मारे गए थे। लोग चीख रहे थे और चारों तरफ़ भगदड़ मची हुई थी । हमें पता नहीं था कि राजीव गांधी जीवित हैं या नहीं।”

जब धुआँ छटा तो राजीव गाँधी की तलाश शुरू हुई। उनके शरीर का एक हिस्सा औंधे मुंह पड़ा हुआ था। उनका कपाल फट चुका था और उसमें से उनका मगज़ निकल कर उनके सुरक्षा अधिकारी पीके गुप्ता के पैरों पर गिरा हुआ था जो स्वयं अपनी अंतिम घड़ियाँ गिन रहे थे।
दस बज कर पच्चीस मिनट पर दिल्ली में राजीव के निवास 10, जनपथ पर सन्नाटा छाया था। राजीव के निजी सचिव विंसेंट जॉर्ज अपने चाणक्यपुरी वाले निवास की तरफ़ निकल चुके थे। जैसे ही वो घर में दाख़िल हुए, उन्हें फ़ोन की घंटी सुनाई दी। दूसरे छोर पर उनके एक परिचित ने बताया कि चेन्नई में राजीव से जुड़ी बहुत दुखद घटना हुई है।

जॉर्ज वापस 10 जनपथ भागे।तब तक सोनिया और प्रियंका भी अपने शयन कक्ष में जा चुके थे। तभी उनके पास भी ये पूछते हुए फ़ोन आया कि सब कुछ ठीक तो है। सोनिया ने इंटरकॉम पर जॉर्ज को तलब किया। जॉर्ज उस समय चेन्नई में पी चिदंबरम की पत्नी नलिनी से बात कर रहे थे। सोनिया ने कहा जब तक वो बात पूरी नहीं कर लेते वो लाइन को होल्ड करेंगीं।

नलिनी ने इस बात की पुष्टि की कि राजीव को निशाना बनाते हुए एक धमाका हुआ है लेकिन जॉर्ज सोनिया को ये ख़बर देने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। दस बज कर पचास मिनट पर एक बार फिर टेलीफ़ोन की घंटी बजी।

 “फ़ोन चेन्नई से था और इस बार फ़ोन करने वाला हर हालत में जॉर्ज या मैडम से बात करना चाहता था। उसने कहा कि वो ख़ुफ़िया विभाग से है। हैरान परेशान जॉर्ज ने पूछा राजीव कैसे हैं? दूसरी तरफ़ से पाँच सेकेंड तक शांति रही, लेकिन जॉर्ज को लगा कि ये समय कभी ख़त्म ही नहीं होगा। वो भर्राई हुई आवाज़ में चिल्लाए तुम बताते क्यों नहीं कि राजीव कैसे हैं? फ़ोन करने वाले ने कहा, सर वो अब इस दुनिया में नहीं हैं और इसके बाद लाइन डेड हो गई।”

जॉर्ज घर के अंदर की तरफ़ मैडम, मैडम चिल्लाते हुए भागे । सोनिया आवाज सुनकर फ़ौरन बाहर आईं। उन्हें आभास हो गया कि कुछ अनहोनी हुई है। आम तौर पर शांत रहने वाले जॉर्ज ने इस तरह की हरकत पहले कभी नहीं की थी। जॉर्ज ने काँपती हुई आवाज़ में कहा “मैडम चेन्नई में एक बम हमला हुआ है।” सोनिया ने उनकी आँखों में देखते हुए छूटते ही पूछा, “इज़ ही अलाइव?” जॉर्ज की चुप्पी ने सोनिया को सब कुछ बता दिया।

इसके बाद सोनिया पर बदहवासी का दौरा पड़ा और 10 जनपथ की दीवारों ने पहली बार सोनिया को चीख़ कर विलाप करते सुना। वो इतनी ज़ोर से रो रही थीं कि बाहर के गेस्ट रूम में धीरे-धीरे इकट्ठे हो रहे कांग्रेस नेताओं को वो आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी। उसी समय सोनिया को अस्थमा का ज़बरदस्त अटैक पड़ा और वो क़रीब-क़रीब बेहोश हो गईं। प्रियंका उनकी दवा ढ़ूँढ़ रही थीं लेकिन वो उन्हें नहीं मिली। वो सोनिया को दिलासा देनी की कोशिश भी कर रही थीं लेकिन सोनिया पर उसका कोई असर नहीं पड़ रहा था”।

इस केस की जाँच के लिए सीआरपीएफ़ के आईजी डॉक्टर डीआर कार्तिकेयन के नेतृत्व में एक विशेष जाँच दल का गठन किया। कुछ ही महीनो में इस हत्या के आरोप में एलटीटीई को सात सदस्यों को गिरफ़्तार किया गया। मुख्य अभियुक्त सिवरासन और उसके साथियों ने गिरफ़्तार होने से पहले साइनाइड खा लिया।

इस तरह देश अपने सबसे युवा और दूर द्रष्टा प्रधानमंत्री को खो दिया। भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री राजीव रत्न गांधी को नम आंखों से भावभीनी श्रद्धांजलि।

error: Content is protected !!