सहायक व्यवसाय के रूप में मधुमक्खी पालन समय की मांग : प्रोफेसर बी.आर. काम्बोज

एचएयू में विश्व मधुमक्खी दिवस के उपलक्ष्य में मधुमक्खी पालन : अवसर और चुनौतियां विषय पर वेबिनार आयोजित

हिसार : 20 मई – बेरोजगार युवा मधुमक्खी पालन को अपनाकर अपना खुद का रोजगार शुरू कर सकते हैं। इसके अलावा किसान खेती के साथ-साथ मधुमक्खी पालन को सहयोगी व्यवसाय के रूप में अपनाकर अपनी आमदनी में इजाफा कर सकते हैं। मधुमक्खी पालन को किसान थोड़े से पैसे से शुरू कर अपने व्यवसाय को बड़े स्तर तक बढ़ा सकते हैं। ये विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बी.आर. काम्बोज ने कहे।

वे सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षण संस्थान व कीट विज्ञान विभाग द्वारा विश्व मधुमक्खी दिवस के उपलक्ष्य में मधुमक्खी पालन : अवसर और चुनौतियां विषय पर एक ऑनलाइन वेबिनार को बतौर मुख्यातिथि संबोधित कर रहे थे।

मुख्यातिथि ने कहा कि हरियाणा फसल उत्पादन व उत्पादकता में श्रेष्ठ है व राज्य के विभिन्न जिलों में ऐसे लम्बे भू-भाग हंै जहां सरसों, सफेदा, सूरजमुखी, बरसीम, कपास, बाजरा, अरहर, खैर, फल व सब्जियां, आदि फसलें उगाई जाती हैं जो मधुमक्खियों को प्रचुर मात्रा में लगभग 9 माह तक भोजन उपलब्ध करवाती हंै। इसलिए हरियाणा मधुमक्खी पालन के हिसाब से सर्वोत्तम प्रान्त है। इसके उत्तर पूर्वी जिलों (करनाल, यमुनानगर, कुरूक्षेत्र, अम्बाला) में यह व्यवसाय पूर्णतया विकसित है जहां प्रदेश के लगभग 80 प्रतिशत मधुमक्खी पालक हंै।

इसके अतिरिक्त कैथल, सोनीपत, पानीपत, रोहतक, रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़, हिसार, भिवानी, सिरसा व फतेहबाद जिलों में भी यह व्यवसाय विकासशील है व इसके और विकसित होने की प्रबल संभावनाएं हैं। वैश्विक कोरोना महामारी ने हमें मानव शरीर की प्रतिरोधी क्षमता (इम्यूनिटी) को बढ़ाने की आवश्यकता का एहसास करा दिया है। प्राकृतिक शहद तथा अन्य माध्वी पदार्थ विशेषत: प्रोपोलिस और पराग मनुष्य की प्रतिरोधी क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ाने की क्षमता वाले खाद्य पदार्थ माने गए हैं।

परागकरण क्रिया द्वारा फसल की पैदावार बढ़ाने में भी है सहायक

मुख्यातिथि ने कहा कि प्रदेश के छोटे व सीमांत किसान व भूमिहीन व बेरोजगार मधुमक्खी पालन को एक वैकल्पिक व्यवसाय के तौर पर अपना सकते हैं। मधुमक्खी परागकरण क्रिया द्वारा फसल की पैदावार व गुणवत्ता बढ़ाने में भी सहायक होती है। तिलहनी फसलों मुख्यत: राया व सरसों में अच्छी परागण क्रिया से पैदावार में 20-25 प्रतिशत बढ़ोतरी होती है। कई अन्य फसलें जैसे अरहर, बेल वाली सब्जियां, प्याज, गोभी, गाजर, मूली की बीज वाली, अमरूद, निम्बू, नाशपती आदि में मधुमक्खियों द्वारा पर परागण से पैदावार बढ़ती है। मधुमक्खी पालन से शहद के अतिरिक्त भी अन्य पदार्थ जैसे मोम, प्रोपोलिस पराग, रायल जैली इत्यादि मिलते है, जिससे किसान अधिक लाभ कमा सकता है। दुनियाभर में मधुमक्खी पालन ग्रामीण समुदायों के लिए कम लागत वाला व्यवसाय है तथा ग्रामीण विकास के साथ-साथ वानिकी, बागवानी, कृषि, पर्यावरण संरक्षण जैसे सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

कार्यक्रम के शुभारंभ अवसर पर डॉ. अशोक गोदारा, सह-निदेशक(प्रशिक्षण) ने मुख्यातिथि का स्वागत किया। विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. रामनिवास ने कार्यक्रम की रूपरेखा की विस्तृत जानकारी दी और प्रतिभागियों से इस वेबिनार का अधिक से अधिक लाभ उठाने का आह्वान किया। कीट विज्ञान विभाग से सेवानिवृत्त प्रोफेसर एच.डी. कौशिक ने मधुमक्खी पालन के समक्ष चुनौतियां और अवसर विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। विभागाध्यक्ष डॉ. योगेश कुमार ने मधुमक्खी पालन की महत्ता पर विस्तारपूर्वक जानकारी दी। सहायक वैज्ञानिक डॉ. सुनीता कुमारी ने मधुमक्खी पालन की विविधताएं विषय पर विस्तृत प्रकाश डाला। कीट विज्ञान विभाग के सहायक निदेशक डॉ. भूपेन्द्र सिंह ने सभी प्रतिभागियों का वेबिनार के समापन अवसर पर धन्यवाद किया।

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