ना तो कोई जांच, ना कोई इस्तीफा, जेल तो सपने की बात है, राफेल तीन गुने दाम पर आया।
नरसंहार की जिम्मेदारी क्यों नहीं तय हो रही है?

अशोक कुमार कौशिक 

2014 तक भारत कितना पिछड़ा हुआ देश था यह 2014 के बाद के कुछ किस्सों / वाक्यात से साफ समझ आता है।  तब अगर कोयला विभाग में कुछ इश्यू हुआ तो कोयला मंत्री ही जवाब देता था। वित्त संबंधित सारे जवाब वित्त मंत्री देता था। हाउ बोरिंग। अब देखिए। रेल का जवाब वित्त, स्वास्थ्य का जवाब कोयला, खाद्य का जवाब रेल। थ्रिल आप भी महसूस कर रहे होंगे।

 मिग ऐसे जहाज, अनेकों टैंक इत्यादि आए लेकिन न तो कोई मीडिया कवरेज, न कोई हो हल्ला। और तो और कोई रक्षा मंत्री नींबू मिर्ची तक नहीं टांग सका। सबने विज्ञान के आगे शीश झुका लिए। हाउ बोरिंग। अब देखिए, रक्षा मंत्री विदेश जाकर राफेल पर नींबू मिर्ची टांग कर आए। रोंगटे खड़े हो गए होंगे आपके।

पहले कोई नीति सरकार बनाती थी तो पूरे देश के लिए। कोई फ्लेक्सिबिलिटी थी ही नहीं। हाउ बोरिंग। अब देखिए। कोरोना वैक्सीन के लिए कितनी फ्लेक्सिबल नीति आई है। जहां जब चुनाव होगा वहां तब मिलेगी वैक्सीन। जम्मू कश्मीर, लद्दाख इत्यादि जरूर इस फ्लेक्सिबिलिटी में मारे जाएंगे लेकिन इसकी चिंता क्यों करनी।

कोई घोटाला हुआ तो सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच हुई और दोषी जेल के अंदर। क्या बकवास है। अब देखिए। ना तो कोई जांच, ना कोई इस्तीफा, जेल तो सपने की बात है। राफेल तीन गुने दाम पर आया लेकिन भ्रष्टाचार बोफोर्स में हुआ था।

एक चोर पकड़ा गया। लोगों ने उसे पुलिस के हवाले कर दिया। कानून अपना काम करता था। अब? तुरंत न्याय। लिंचिंग, एनकाउंटर, अपहरण टाइप के न्याय तो भीड़ और सरकारी तंत्र दोनों ही करने लगे हैं। इतनी सरकारी गाड़ी तो आज़ादी से आजतक नहीं पलटी जितनी अब अकेले यूपी में हर महीने पलट जाती हैं। थ्रिल।

सरकार ने गैस ऐसी किसी जरूरी चीज के दाम बढ़ाए। लोगों ने आंदोलन किया। सरकार डरी और दाम वापस। हाउ बोरिंग। अब देखिए। दाम बढ़े। आपने आंदोलन किया। आपके ही भाई, मित्र, रिश्तेदार (सो कॉल्ड भक्त) ने आपको गाली देकर, हिन्दू होने का हवाला देकर शांत कर दिया। 

मनमोहन सरकार पर आरोप लगता था कि सरकार पॉलिसी पैरालिसिस का शिकार है। लेकिन क्या मनमोहन सिंह सरकार की वजह से कोई ऐसी घटना हुई थी जहां कोर्ट को कहना पड़े कि यह नरसंहार से कम नहीं है? जो लोग तब सवाल उठाते थे, वही लोग आज ये नहीं कह पा रहे हैं कि मौजूदा सरकार ‘पॉलिसी डिजास्टर’ का शिकार है।

हालात ये है कि दूसरे देशों में रहने वाले भारतीय मदद भेजना चाह रहे हैं तो उन्हें क्लियरेंस नहीं मिल पा रही है।आरोप है कि क्लियरेंस प्रॉसेस और इंटीग्रेटेड गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स रेट (IGST) के चलते मदद भेजने में मुश्किल हो रही है।

द स्क्रॉल ने 3 मई को खबर छापी: ‘पिछले पांच दिन में दिल्ली में 300 टन इमरजेंसी कोविड सप्लाई पहुंची, वह कहां है?’ खबर में कहा गया है कि पिछले पांच दिनों में पूरी दुनिया से दिल्ली में 25 फ्लाइट पहुंचीं, जिनमें 300 टन इमरजेंसी कोविड सप्लाई भारत पहुंची है। इनमें 5,500 आक्सीजन कंसंट्रेटर, 3,200 आक्सीजन सिलेंडर और 1,36,000 रेमिडेसिविर इंजेक्शन हैं। इनकी मदद से जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। लेकिन एयरपोर्ट से कुछ ही दूरी पर मौजूद अस्पतालों में लोग आक्सीजन के बिना मर रहे हैं।

दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य निदेशक ने बताया कि हमें तो अब तक कोई मदद नहीं मिली है। ये सप्लाई केंद्र सरकार के अनुरोध पर आई हैं और इनकी सप्लाई भी केंद्र को करनी है. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। क्या कोई सवाल पूछेगा कि ऐसा क्यों हो रहा है?  

मनमोहन सरकार ने आरटीआई, राइट टू एजूकेशन, राइट टू फूड, लोकपाल  और ऐसे कई अच्छे कानून दिए थे, फिर भी वह पॉलिसी पैरालिसस का शिकार कही जाती थी। उस वक्त पॉलिसी पैरालिसिस की बातें करने वाले पत्रकार आज ये क्यों नहीं कहते कि मौजूदा ‘मजबूत’ सरकार तो ‘पॉलिसी डिजास्टर’ का शिकार है?यह पहली सरकार है जिसके नीतियां बनाने से तमाम लोग यूं ही मर जाते हैं और नीतियां न बना पाने से भी तमाम लोग मर जाते हैं। नोटबंदी हुई तो सैकड़ों लोग लाइन में लगकर मरे। आर्थिक फैसलों की वहज से करोड़ों लोग बेरोजगार हुए। बेरोजगारी बढ़कर 50 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई । अर्थव्यवस्था माइनस में चली गई । लॉकडाउन में लोग पैदल चलकर मरे । अब लोग अस्पताल, आक्सीजन और दवाई बिना मर रहे हैं।हैरत है कि मनमोहन सिंह पर तीखे सवाल पूछने वाले वही वीरबहादुर पत्रकार मौजूदा सरकार पर खामोश हैं। कांग्रेस सरकार होती तो अब तक हर तरफ से इस्तीफा मांगा जा रहा होता और कम से कम निठल्ले स्वास्थ्य मंत्री का इस्तीफा हो चुका होता। आज कोर्ट तक कह रही है कि अस्पतालों में ऑक्सीजन के बिना मरीजों की जान जा रही है, यह एक आपराधिक कृत्य है और यह नरसंहार से कम नहीं है।

इस नरसंहार की जिम्मेदारी क्यों नहीं तय हो रही है? इस नरसंहार के लिए कौन ​जिम्मेदार है? उस नरसंहारक को यह देश क्यों ढो रहा है? इस नरसंहार की जिम्मेदारी लेते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तुरंत पद छोड़ देना चाहिए। वे एक नाकाम और नकारा प्रधानमंत्री साबित हुए हैं जिसकी अगुवाई में हर दिन हजारों जानें जा रही हैं। कोरोना प्राकृतिक आपदा है लेकिन अस्पतालों में बुनियादी संसाधन न होना भी प्राकृतिक आपदा नहीं है। यह सरकार की नाकामी है। ये सरकारी नरसंहार है।

तभी सब को बोलता हूं। हम सबकी किस्मत अच्छी है। जरूर पिछले जन्म में कुछ करोड़ अच्छे काम किए होंगे जो आज मोदी का राज देखने को मिला। 
सभी जानते हैं फिर भी बता दूं – सब चंगा सी।

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