देखो कोरोना की करामात : न बाजा , न बारात

-कमलेश भारतीय

है न कोरोना की करामात ? न बाजा , न बारात । अपने घर से दुल्हन के घर जाइए और ब्याह कर ले आइए दुल्हन । या फिर जरूरी हो तो कोर्ट की मुहर लीजिए । कमाल कर दिया कोरोना । जो काम समाजसेवी संस्थाएं, खाप पंचायतें न कर सकीं , वह काम कर दिखाया । कितना बड़ा कल्याण और बेटियों के मां-बाप दुआएं दे रहे हैं कि जियो कोरोना , नाट गो कोरोना । यदि अच्छे दिनों में बैंड बाजा बारात के बिना सादी शादी की होती तो बहुत बड़ी खबरें छपतीं और समाजसेवी कहलाते। अब तो मजबूरी का नाम महात्मा गांधी हो गया ।

इधर फिल्म , सिनेमा माॅल सब बंद । बच्चे स्कूलों से भाग कर सिनेमा देखने जाते थे , अब कहां जायेंगे ? वर्क फ्राॅम होम, क्लास फ्राॅम होम । परेशान हाल बच्चे । कोरोना के चलते स्कूल काॅलेज बंद , यूनिवर्सिटी ठप्प । सैलून स्पाॅ बंद । जीवन ठप्प । गलियां सुनीं और बाज़ारों से रौनक गायब । सड़कें खालीं । यह दृश्य हैं सब शहरों में । फिर भी क्या नया नाम निकाला है लाॅकडाउन का -सुरक्षित हरियाणा । वाह । सुरक्षित ही तो नहीं है । तभी तो एक सप्ताह और बढ़ाने के लिए विवश हुई सरकार पर नाम धर दिया -सुरक्षित हरियाणा । सच , शेक्सपियर सही कह गये कि नाम में क्या रखा है ? अब बताइए कितना सुरक्षित है हमारा हरियाणा? जहां जहां चरण पड़े नेताओं के , वहां वहां भी अस्पतालों में कमियां पूरी नहीं हुईं । यह आरोप लगाया है कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने । अब इतना जरूर है कि किसान नेताओं के आने का विरोध करते थे तो यह तरीका निकाला जनता में जाने का जिससे कोई विरोध भी न कर सके और जनता या अपने वर्कर्ज से अस्पताल में ही मुलाकात भी हो जाये ।

किसान आंदोलन पर एक बड़ा दाग बल्कि काला धब्बा लगा है -पश्चिमी बंगाल से आई लड़की से गैंग रेप का और बाद में जिसे शहीद बता कर अंतिम संस्कार कर दिया गया पर वह बहादुर लड़की अपने पापा को वीडियो क्लिप सौंपती गयी जिससे मामला उजागर हो पाया । अब किसान नेताओं को इस ओर खास ध्यान रखना होगा । यह बहुत बड़ा धब्बा ही नहीं , किसान आंदोलन को बहुत बड़ा धक्का है ।

असम के नये मुख्यमंत्री हिमंत बना दिये गये और सोनोवाल का पत्ता कट गया । कांग्रेस कल्चर की तरह हिमंत का नाम सोनोवाल से पेश करवाया गया । अब चर्चा है कि सोनोवाल को राज्यसभा के माध्यम से केंद्र में लाया जायेगा। यही भूल तो कांग्रेस करती रही । हरियाणा में कभी चौ बंसीलाल केंद्र में तो भजन लाल मुख्यमंत्री और कभी भजन लाल केंद्र में और बंसी लाल मुख्यमंत्री बना दिये गये ।आखिर हजकां और हविपा पार्टियां बनीं । ऐसे ही बीज असम में बोये जा रहे हैं । हालांकि हिमंत और सोनोवाल दोनों कांग्रेस से ही भाजपा में आए थे और दोनों का मुख्यमंत्री बनने का सपना पूरा हो गया दलबदल से । है न मज़ेदार ? अब पश्चिमी बंगाल में जो नेता तृणमूल कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में गये थे , सुना है वे पछता रहे हैं और तृणमूल कांग्रेस में वापसी का रास्ता खोज रहे हैं

,,,,तभी तो कहते हैं
दुनिया गोल है ,,,

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