चंडीगढ़ – अपने यहां सरकार ने एक फैसला अच्छा किया कि 18 बरस से अधिक की आयु के सभी नागरिकों को कोरोना से बचाव के लिए टीका लगाया जाएगा। दवा बनाने वाले लोग इस मौके कोे जनसेवा करने के साथ इस आपदा को एक अवसर के तौर पर लेने से नहीं चूक रहे। कोरोना वैक्सीन-टीके के लिए अलग अलग दाम तय किए गए हैं। सरकारी हस्पतालों के लिए कुछ और प्राइवेट हस्पतालों के लिए कुछ। एक दवा निर्माता ने अपने एक इंटरव्यू में ये भी कहा कि अगर वो एक टीके को 150 रूपए में भी बेचते हैं तो भी वो इसमें मुनाफा कमाएंगे। अब तो दवा का दाम इस से कई गुना तय हो गया है। कर दिया गया है। करवा दिया गया है। एक देश-एक विधान-एक संविधान की ढपली बजाने वालों के राज में ये उचित नहीं हो रहा कि दवा के दाम अलग अलग हैं। ये भी कहा जा रहा है कि भारत में इस दवा के दाम कई विकसित देशों की तुलना में ज्यादा हैं। अगर ये मान लिया जाए कि प्रति व्यक्ति कोरोना की दो डोज के हिसाब से 150 करोड़ डोज की खरीद-खपत होती है और न्यूनतम 100 रूपए प्रति डोज मुनाफा कमाया गया हो तो दवा बनाने वाले करीब 15 हजार करोड़ रूपए बड़े आराम से-बड़े चाव से बनाएंगे। अगर उनका मुनाफा 100 से रूपए प्रति टीके से अधिक या कम है और खपत भी कम या अधिक है तो उस अनुपात में ये लाभ घट या बढ सकता है। ऐसे में सरकार को जरूर इस पर विचार करना चाहिए कि क्या टीके के दाम पूरे देश में एक और कहीं ज्यादा वाजिब नहीं होना चाहिए? इसी संदर्भ में इस मामले को किसान आंदोलन कर रहे लोगों की मांगों के समाधान के तौर पर भी देखा जा सकता है। फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य अलग अलग तय किया जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि गेहंू के लिए केंद्र सरकार-एफसीआई का समर्थन मूल्य 2000 रूपए प्रति क्विंटल हो तो राज्य सरकार के लिए ये 2200 रूपए और निजी व्यापारियों के लिए 2400 रूपए प्रति क्विंटल हो सकता है। किया जा सकता है। इस हालात पर कहा जा सकता है: सारा इल्जाम हवाओं के ही सर पर रखनाजब कोई जुल्फ न संभाले ना संभाली जाएआओ कुछ और नई राह निकाली जाएबैठ कर छांव में कुछ देर हवा ली जाए Post navigation हिसार के सोनी बर्न अस्पताल में हुई मौतों पर सीएम मनोहर लाल खट्टर ने दिया मैजिस्ट्रियल जांच का आदेश आफ द रिकार्ड–यशवीर कादियान : वंदना की घर वापसी