राज्य सरकारें कहती है राज्य में वैक्सीन खत्म हो गया है, केंद्र सरकार सप्लाई नहीं दे रही है

राज्य सरकारें ऑक्सीजन की कमी बता रही है और केंद्र सरकार से ऑक्सीजन की मांग कर रही है। 
आम जनता समझ नहीं पा रही है कि सच कौन बोल रहा है।
लोग अब सडकों पर कीडे मकौडे की तरह तडप तडप के दम तोड रहे हैं और इन्हे प्रोटोकाॅल की पडी है। आखिर ये पीएम और सीएम है कौन?, जनता के नौकर ही ना।
इस महामारी के दौरान प्रोटोकॉल की जरूरत है या आम जनता को मरने से बचाने की।
आपने “प्रोटोकॉल” की ऐसी तैसी करते हुए, भारत के चुने हुए प्रधानमंत्री के लिए, देहाती औरत जैसा गंदा शब्द जोड़ा था।
क्या नमस्तेट्रंप और हाउडीमोदी कार्यक्रम भी अंतर्राष्ट्रीय “प्रोटोकॉल” तोड़कर बनाए हुए कार्यक्रम नहीं थे? 
नवाज़ के बिरयानी खाना और नवाज़ की मां के पैर में लोटना किस प्रोटोकॉल का हिस्सा थे ? 

अशोक कुमार कौशिक

 राज्य सरकार कहती है राज्य में वैक्सीन खत्म हो गया है, केंद्र सरकार सप्लाई नहीं दे रही है। 

केंद्र सरकार का उत्तर आता है देश में वैक्सीन की कोई कमी नहीं है, केंद्र सरकार को बदनाम करने के लिए राज्य सरकारें राजनीति कर रही है। अत्यधिक मात्रा में राज्यों को वैक्सीन पहुंचा दिया गया है। इस दौरान आम जनता वैक्सीन के लिए चारों तरफ घूम रही है लेकिन वैक्सीन मिल नहीं रहा है। जनता को समझ नहीं आ रहा है कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ।

राज्य सरकार ऑक्सीजन की कमी बता रही है और केंद्र सरकार से ऑक्सीजन की मांग कर रही है। इस पर भी केंद्र सरकार की तरफ से उत्तर आता है कि राज्य सरकारें केंद्र को बदनाम करने के लिए राजनीति कर रही है। देश में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है, बड़े बड़े प्लांट बनाए गए हैं और सभी राज्यों को ऑक्सीजन पहुंचाया जा रहा है।

इस दौरान भी आम जनता समझ नहीं पा रही है कि सच कौन बोल रहा है। कुछ जनता राज्य सरकार को दोषी मान रही है तो कुछ केंद्र सरकार को और बाकी जनता खाली ऑक्सीजन सिलिंडर लेकर एक जगह से दूसरी जगह घूम रही है।

ऐसी स्थिति में क्या होना चाहिए? क्या जनता को सच्चाई जानने का अधिकार नहीं है? क्या जनता ऐसे ही राज्य और केंद्र सरकारों के बीच पिसती रहेगी? क्या आम जनता को सच्चाई बताना इतना मुश्किल है? केंद्र सरकार राज्यों को जो कुछ भी देती है क्या उसका कोई डॉक्यूमेंट नहीं होता? अगर होता है तो आम जनता के बीच पेश क्यूं नहीं करती? राज्य सरकारों को जो कुछ भी केंद्र सरकार देती है उसके खपत का लेखा जोखा क्यूं नहीं मांगती? अगर इन सब प्रश्नों का उत्तर दे दिया जाए तो शायद आम जनता कन्फ्यूज नहीं रहेगी। कौन सरकार सही है और कौन गलत इसका निर्णय आम जनता भलीभांति कर सकेगी।

इसी कड़ी में दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के साथ हो रही वार्ता को आम जनता के बीच सार्वजनिक कर दिया। वाह केजरीवाल वाह आपके इस कदम से आम जनता अब तय कर सकेगी कि सही कौन है और गलत कौन है। आम जनता तय करेगी कि इस महामारी के दौरान प्रोटोकॉल की जरूरत है या आम जनता को मरने से बचाने की। अगर आम जनता सरकार की लापरवाहियों के कारण मरती है तो वो कौन है? राज्य सरकार या केंद्र सरकार?

लोग अब सडकों पर कीडे मकौडे की तरह तडप तडप के दम तोड रहे हैं और इन्हे प्रोटोकाॅल की पडी है। आखिर ये पीएम और सीएम है कौन?, जनता के नौकर ही ना,देश पर इतना गहरा संकट चल रहा है, और जनता के सारे नौकर बैठकर अपने मालिकों को बचाने के लिए मीटिंग कर रहे थे, उन सबकी आपसी बात एक नौकर ने अपने मालिकों (जनता) को सार्वजनिक कर दी, तो कौनसा गलत काम किया?

हमने वोट देकर चुना है तुम लोगो को, और हमें ही पता ना हो कि तुम सब नौकर मिलकर आपस मे क्या खिचड़ी पका रहे हो। और केजरीवाल ने मांग ही क्या रखी, यही ना कि ऑक्सिजन के टैंकरों को आर्मी की गाड़ी के साथ दिल्ली भेजा जाए, जिसे खासकर यूपी, एमपी, और हरियाणा के मुख्यमंत्री दिल्ली पहुँचने नही दे रहे, ये दिल्ली की जनता है साहब, अनाज़ खाती हैं, गोबर नही, जो असलियत समझ ना पाए कि क्यों उसके साथ ये भेदभाव किया जा रहा है।

आज अगर रजत शर्मा की आत्मा जीवित होती तो कल रविवार 25 अप्रैल 2021 की आपकी अदालत में मोदी जी बैठे होते और रजत शर्मा उनसे सवाल पूछते आप केजरीवाल से ऐसी कौन सी गुप्त बात कर रहे थे जो सार्वजनिक हो जाने के खतरे से आप घबरा गए और “प्रोटोकॉल” की दुहाई देने लगे? 

मनमोहन के साथ एक मीटिंग हुई थी नवाज़ शरीफ की। आप उसमे थे भी नहीं। फिर भी आपने “प्रोटोकॉल” की ऐसी तैसी करते हुए, भारत के चुने हुए प्रधानमंत्री के लिए, देहाती औरत जैसा गंदा शब्द जोड़ा था। क्या आप जानते हैं की किसी भी सभ्य समाज में ऐसे शब्द रेसिज्म के अंतर्गत आते हैं ? 

 क्या यह सही है की जब देश कोरोना की मार से जूझ रहा था तब “प्रोटोकॉल” को तोड़ते हुए आप बिना मास्क लगाए बंगाल में चुनाव प्रचार में व्यस्त थे? क्या यह सही नहीं है की आप खुद अपनी इमेज चमकाने के लिए ओबामा, ट्रंप, नेतन्याहू इत्यादि के लिए अनेकों बार खुद “प्रोटोकॉल” तोड़ चुके हैं ? क्या नमस्तेट्रंप और हाउडीमोदी कार्यक्रम भी अंतर्राष्ट्रीय “प्रोटोकॉल” तोड़कर बनाए हुए कार्यक्रम नहीं थे? 
क्या कश्मीर में 370 हटाते समय आपने “प्रोटोकॉल” का ध्यान रखा था ? क्या पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोरा या पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की रिटायरमेंट के बाद की नियुक्ति किसी “प्रोटोकॉल” को नही तोड़ती थी ? 

क्या आपकी अचानक की पाकिस्तान यात्रा, नवाज़ के यहां बिरयानी खाना और नवाज़ की मां के पैर में लोटना किसी प्रोटोकॉल का हिस्सा थे ? क्या आधा देश अंबानी अडानी को बेचना किसी प्रोटोकॉल का हिस्सा है ? क्या 50 करोड़ की गर्ल फ्रेंड, कांग्रेस की विधवा इत्यादि किसी प्रोटोकॉल के तहत बोला था आपने ?

और शुभ शुभ ग्यारहवां सवाल। 2008 के मुंबई हमले के समय आप उसी इलाके में किस “प्रोटोकॉल” के तहत भाषण दे रहे थे ? तो दिल्ली के सुल्तान महोदय पहले अपने “प्रोटोकॉल” सही करिए फिर दूसरे से उम्मीद करिए। अपनी पर आई तो “प्रोटोकॉल” याद आ गया ? 

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