कमलेश भारतीय

हरियाणा के भविष्य के नेताओं यानी मुख्यमंत्री पद के दावेदार नेताओं की बात करने का ख्याल आया है अचानक। यों कोई चुनाव नहीं आ रहे । फिर भी एक आंकलन करने का मन हुआ । इस समय हरियाणा में दो नेताओं में होड़ देखी जा सकती है । बेशक यह सचेत रूप से होड़ नहीं है पर जनता इसे इसी रूप में देख रही है । ये दो युवा नेता हैं-दीपेंद्र सिंह हुड्डा और दुष्यंत सिंह चौटाला ।

दोनों में समानतायें ये हैं कि दोनों हरियाणा के बड़े राजनीतिक घरानों से संबंध रखते हैं । जहां दीपेंद्र हुड्डा के दादा चौ रणबीर सिंह सांसद और संयुक्त पंजाब में मंत्री रहे और डाॅ भीमराव अम्बेडकर की संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य भी रहे । मुख्यमंत्री बनते बनते रह गये और दीपेंद्र के पिता भूपेंद्र सिंह हुड्डा दो दो बार मुख्यमंत्री बने । तीन बार रोहतक से सांसद और अब राज्यसभा सदस्य । लगातार सक्रिय । राहुल गांधी की ड्रीम टीम के सदस्य । संसद में किसान आंदोलन के लिए आवाज़ उठाई । बीच बीच में किसानों को मिलने जाते हैं उनका हौंसला बढ़ाने ।

दूसरी ओर दुष्यंत सिंह चौटाला ने भी परदादा चौ देवीलाल से लेकर पिता अजय चौटाला से राजनीतिक गुर सीखे । पहले दीपेंद्र हुड्डा हरियाणा में सबसे कम उम्र के सांसद बने । फिर दुष्यंत हिसार से सांसद चुने गये और सबसे युवा सांसद बनने का रिकार्ड बनाया । हालांकि उनकी कम उम्र को लेकर विवाद भी सामने आया । दोनों को राजनीति विरासत में मिली जरूर लेकिन दोनों ने अपने स्तर पर मेहनत की और जगह बनाई हरियाणा की राजनीति में । एक का केंद्र सिरसा तो दूसरे का रोहतक । फिर भी हरियाणा भर में लोकप्रिय युवा नेता ।

दीपेंद्र ने दादा चौ रणबीर सिंह और मां आशा हुड्डा से राजनीति के साथ जनसेवा का मंत्र भी लिया और बड़े बड़े मेडिकल कैम्प लगाये । पिता भूपेंद्र सिंह हुड्डा से धैर्य और संतोष सीखा । अब कोरोना काल में भी इस समाजसेवा को याद करने का समय आ गया है। दुष्यंत ने परदादा चौ देवीलाल से मंत्र लिये राजनीति के लेकिन अपने चाचा अभय चौटाला की नीतियां पसंद न आने पर उसी पार्टी से नाता तोड़ लिया । नयी पार्टी बनाई जजपा । दीपेंद्र ने परिवार की तरह कांग्रेस से ही नाता जोड़े रखा है और राहुल व प्रियंका की रैलियों व आंदोलनों में भागीदारी निभाने पहुंचते हैं ।

दुष्यंत ने दस सीटें जीत कर राजनीति में अपनी जगह बनाई और उप मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे । हालांकि आलोचना सहनी पड़ी कि जिस भाजपा को यमुना पार करने की बात जनसभाओं में कहते रहे , उसी के साथ हाथ मिला लिया । और तो और अपने विधायक दादा रामकुमार गौतम तक कड़े आलोचक बन गये । इसी तरह अपने ही विधायक जोगीराम सिहाग और देवेंद्र बबली नाराज हैं मंत्री न बनाये जाने पर । इन्हें संभालना बड़ा काम है । तीन तीन नाराज लोगों को मनाये रखना । यह भी नट जैसा काम है । आबकारी विभाग के चलते विवाद में आते रहते हैं । किसान आंदोलन के चलते लोकप्रियता का ग्राफ प्रभावित हुआ । अब जाकर जो पत्र लिखा और किसान आंदोलन की ओर ध्यान देने की बात उठाई उससे ग्राफ कितना उठेगा कह नही सकते । पर कोशिश जरूर की है और की जानी चाहिए।

इन्हीं नेताओं की श्रेणी में पूर्व मुख्यमंत्री चौ भजनलाल के लाल कुलदीप बिश्नोई भी एक हैं जो एक समय मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार रहे। इसी दावेदारी के लिए कांग्रेस छोड़ कर हरियाणा जनहित कांग्रेस बना ली । खूब हरियाणा भर में प्रचार किया । कभी ट्रैक्टर तो कभी पनिहारन चुनाव निशान रहा । इस मुख्यमंत्री की कुर्सी को पाने के लिए कभी बसपा तो कभी भाजपा से गठबंधन किये लेकिन सपना सपना ही रहा । हजकां सुप्रीमों के तौर पर इन्हें मिलना मुश्किल था , यह आरोप इन पर वरिष्ठ नेताओं ने लगाये ।आखिर फिर से उसी कांग्रेस का हाथ थाम लिया। पति पत्नी दोनों विधानसभा में रहे लेकिन किसी अन्य विधायक या गुट से घुले मिले नहीं । अलग अलग ही रहे। इनके बड़े भाई चंद्रमोहन जरूर उप मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे लेकिन फिजां से प्यार की कहानी में राजनीति पूरी तरह चौपट कर ली । अब अपने बेटे सिद्धार्थ के लिए टिकट के लिए संघर्ष करते हैं । कुलदीप भी अपने बेटे भव्य के लिए टिकट तो ले आए लेकिन जीत तो दूर जमानत न बचा पाये और अपने ही गढ़ मंडी आदमपुर में भी लीड न ले सके भव्य । इस तरह फिलहाल कुलदीप बिश्नोई के मुख्यमंत्री बनने के सपने पर विराम सा लग रहा है ।

रणदीप सुरजेवाला भी इस पद के दावेदारों में एक माने जा सकते हैं । इनके पिता शमशेर सुरजेवाला एक कद्दावर नेता रहे । एक बार तो किसानों की आत्महत्याओं के मुद्दे को इतना उछाला कि कांग्रेस हाई कमान तक को नरवाना ले आए । कांग्रेस में किसानों के हिमायती । ओमप्रकाश चौटाला के खिलाफ चुनाव लड़ कर हारे जरूर पर बदले में तोहफा में मिली युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय कमान । इस तरह ग्राफ ऊपर उठा । कैथल से विधायक रहे पर पिछली बार हारे ।यही नहीं अति उत्साह में जींद उप चुनाव भी हारे । आजकल राहुल गांधी के निकट और कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी ।

बाकी कौन मुख्य मंत्री बनेगा , कौन नहीं , यह भविष्य के गर्भ में छिपा है। अचानक चौ बंसीलाल मुख्यमंत्री बना दिये गये और अपने विकास कार्यों से उन्होंने फैसले को सही साबित किया । विकास पुरुष कहलाए । चौ बीरेंद्र सिंह और राव इंद्रजीत सिंह की बड़ी हसरत रही मुख्य मंत्री बनने की और दोनों उत्तर व दक्षिण की लड़ाई लड़ते लड़ते आखिर कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले गये और वहां भी मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री बन गये और इनके सपने सपने ही रह गये ।
यों किसका कब दांव लग जाये , कोई कह नहीं सकता।

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