क्या हरियाणा भाजपा का भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है ?

ByRishi Prakash Kaushik

Apr 23, 2021 #haryana bjp, #haryana congress, #haryana sarkar, #INLD, #jjp, #अशोक कुमार कौशिक, #उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला, #कांग्रेस प्रदेश प्रभारी विवेक बंसल, #कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला, #किसान आंदोलन, #जननायक ताऊ देवी लाल, #पूर्व चेयरमैन पवन बेनीवाल, #पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर, #पूर्व मंत्री अतर सिंह सैनी, #पूर्व मंत्री कैप्टन अजय यादव, #पूर्व मंत्री जगदीश नेहरा के बेटे सुरेंद्र नेहरा, #पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला, #पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी, #पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा, #प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा, #प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, #फतेहाबाद के पूर्व विधायक बलवान दौलतपुरिया, #विधायक अभय सिंह चौटाला
क्या अतीत से देश को नई दिशा देने वाले हरियाणा के राजनेताओ ने हवा के रुख को भांप लिया?
दलबदल के लिए बदनाम हरियाणा में चुनाव नहीं फिर भी दलबदल।
6 साल में पहली बार कांग्रेस में “लौटी रंगत।”

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा में अभी दूर-दूर तक चुनाव दिखाई नहीं दे रहा फिर भी लगातार दलबदल करने वाले नेताओं के लाइन लग गई है। भाजपा के आधा दर्जन से अधिक सांसदों में नेतृत्व के प्रति असंतोष की बातें “छन छन” कर आ रही है। क्या भाजपा में अब सब कुछ ठीक नहीं है? आजकल नेता लोग तेजी से एक एक करके भाजपा को “बाय बाय” कह कांग्रेस को ज्वाइन कर रहे हैं। क्या हवा का रुख भाजपा के प्रतिकूल होता जा रहा है या राजनेताओं का इसका पूर्वाभास हो गया की कि भाजपा में अब उनका राजनीतिक भविष्य अंधकारमय है? अब राजनीति क्षेत्र में इन बातो पर मंथन होना शुरू हो गया है और भांति भांति के कयास लगने शुरू हो गए। पिछले 6 साल से लगातार गर्दिश में चल रही कांग्रेस के लिए अब हरियाणा ही “संजीवनी” साबित होता नजर आ रहा है। लंबे अरसे के बाद कांग्रेस में कई बड़े चेहरों की जॉइनिंग के साथ पार्टी में “रंगत” नजर आई। लगता है मोदी के कांग्रेस विहीन भारत के सपने के बीच हरियाणा बड़ा अवरोधक बनने जा रहा है?

जानकार कहते हैं कि देश में हर परिवर्तन की शुरुआत हरियाणा से हुई है। इसका उदाहरण देते हुए उनका पहला तर्क हैं की प्रथम गठबंधन की सरकार हरियाणा ने दी । राजनीति में दलबदल के “दलदल” की शुरुआत हरियाणा से हुई और आयाराम, गयाराम की का दौर हरियाणा से शुरू हुआ। चाहे जनता पार्टी की सरकार बनाने का समय हो या जनता दल की सरकार बनाने का, हर “बदलाव” में हरियाणा का पूरा “आशीर्वाद” मिला । इसे संयोग ही कहे की देश में बहुमत से पहली बार भाजपा सरकार बनने से पहले जो “नीव का पत्थर” लगा था उसकी शुरुआत रेवाड़ी हरियाणा से हुई थी। और तो और वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अभ्युदय का कारण भी हरियाणा ही है, ये कहे तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। अतीत में वह हरियाणा के प्रभारी थे और हरियाणा से ही सीधे गुजरात के मुख्यमंत्री बनाए गए थे।

अब यहां सवाल यह खड़ा होता है की अभी हरियाणा में चुनाव भी दिखाई नहीं दे रहा फिर भी “अचानक ” दलबदल क्यों शुरू हो गया? क्या हरियाणा के राजनेता समय से पहले ही “हवाओ का रुख” को भांप लेने में माहिर हैं? यही स्थिति 6 वर्ष पूर्व विभिन्न दलों में थी और नेता चुनाव से पूर्व भाजपा में जाने के लिए ललायित थे। अब पूर्व मंत्री अतर सिंह सैनी, फतेहाबाद के पूर्व विधायक बलवान दौलतपुरिया, पूर्व मंत्री जगदीश नेहरा के बेटे सुरेंद्र नेहरा कांग्रेस में शामिल हो गए। ऐलनाबाद में भाजपा को छोड़ने वाले पूर्व चेयरमैन पवन बेनीवाल के भी कांग्रेस में शामिल होने के प्रबल आसार नजर आ रहे हैं। बताया जा रहा है की अनेक लोग अब दलबदल की लाइन में हैं। राजनीतिक पंडितों का मत है की हरियाणा भाजपा में जो नेता कांग्रेस व अन्य दलों से आए हैं वह घुटन महसूस कर रहे हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि ये अवसरवादी लोग अपनी गिद्ध सी दृष्टि जमाये बैठे हैं और उचित मौके की तलाश में है। ये कुर्सी के लोभी नेता जो भाजपा में सत्ता का कारण बने थे वही उसका सुफड़ा साफ होने का कारण भी बनेंगे। 

यह तो अभी हल्की सी झलक दिखाई देती है पर हरियाणा में भाजपा जजपा सरकार के प्रति जनता का रुख कड़ा होता गया तो लाइन लग जाएगी। यह स्थिति अभी उतरी व पूर्वी हरियाणा में बनती दिखाई दे रही है। यह बात भी उल्लेखनीय है की तराई के हरियाणा में किसान आंदोलन की जड़े मजबूत है। किसान आंदोलन पर स्थिति अब सत्ताधारियों के लिए “सांप के मुंह में छछूंदर” वाली हो गई जो न “निगलते बन रहा है, ना छोड़ते।” अब हरियाणा में सत्ताधारी दल के लोग सार्वजनिक रूप से कोई आयोजन नहीं कर पा रहे। किसान आंदोलन ने इन्हें अपने घरों में बंद सा कर दिया है। यद्यपि दक्षिणी हरियाणा में स्थिति बिल्कुल इससे विपरीत है फिर भी आने वाले समय में दलबदल से यह क्षेत्र भी अछूता रह रह जाएगा यह कहना मुश्किल है।

विगत 6 साल तक पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर की खींचातानी का “खामियाजा” हरियाणा में कांग्रेस को बड़े स्तर पर भोगना पड़ा। भूपेंद्र सिंह हुड्डा की “हठधर्मिता” के कारण कांग्रेस 6 साल हरियाणा में अपना संगठन भी नहीं खड़ा कर पाई जिसके चलते भाजपा को हरियाणा में अपनी जड़ें जमाने का भरपूर अवसर मिला और उसी के बलबूते पर वह लगातार दूसरी बार सत्ता पर काबिज हो गई। 6 साल के दौरान अधिकांश कांग्रेस प्रभारियों का लगाव भूपेंद्रसिंह हुड्डा के साथ रहने के चलते अशोक तंवर चाह कर भी कांग्रेस का प्रदेश में संगठन खड़ा नहीं कर पाए। जबकि राहुल गांधी से उनकी बेहद नजदीकीया थी।

 विवेक बंसल के रूप में प्रदेश कांग्रेस को लंबे समय के बाद निष्पक्ष प्रभारी मिला है। विवेक बंसल सभी खेमों के साथ मिलकर कांग्रेस की सत्ता में “वापसी” कराने की “हसरत” रखते हैं। अशोक तंवर के कांग्रेस छोड़ने के बाद कुमारी शैलजा का प्रदेश अध्यक्ष बनना कांग्रेस के लिए “फायदेमंद” साबित हो रहा है। अध्यक्ष बनने के लिए प्रदेश कांग्रेस के “बड़े” चेहरों को साथ लेकर चलने की “कवायद” कर रही हैं। कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला, पूर्व मंत्री कैप्टन अजय यादव कई बार कुमारी शैलजा के साथ नजर आ चुके हैं।

 कुलदीप बिश्नोई और किरण चौधरी भी कुमारी शैलजा के साथ कोई दूरी नहीं रखते हैं। वक्त आने पर शैलजा को इनका सहयोग और समर्थन मिलने की पूरी संभावना नजर आ रही है। कुमारी शैलजा प्रदेश कांग्रेस प्रभारी विवेक बंसल के साथ मिलकर कांग्रेस को हरियाणा में फिर से मजबूत करने के “मिशन” में जुटी हुई हैं। शैलजा पुरी “समझदारी” के साथ अपने दायित्व को निभाने का काम कर रही हैं। पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के साथ किसी तरह का “टकराव” किए बिना ही वह अपनी “लकीर” लंबी खींचने के अभियान में लगी हुई है। भाजपा में घुटन महसूस कर रहे नेताओं और इनेलो छोड़ने के बाद घर बैठे नेताओं के साथ सैलजा निरंतर संपर्क साध रही हैं और उन्हें कांग्रेस में आने के लिए रजामंद कर रही हैं। जिस कांग्रेस से नेताओं का बड़े स्तर पर पलायन हुआ उसी कांग्रेस में अब शैलजा की अगुवाई में नेताओं की एंट्री “सुखद” बदलाव कही जा सकती है।

अब फिर से बात करते हैं भाजपा की। ऐलनाबाद से भाजपा को “टा टा” कहने वाले पवन बेनीवाल की । हरियाणा का सिरसा ऐसा जिला है जहां भाजपा भरकस प्रयास के बाद भी सीटें हासिल करने में विफल रही। देवीलाल परिवार के इस गढ़ में भाजपा कभी भी सेंध लगाने में सफल नहीं हो पाई। यह दीगर बात है कि उनके ही “वंशज” ने चुनाव से पूर्व जिस भाजपा को लेकर गहरे “कटाक्ष” किए थे, चुनाव के बाद उसी का “पल्लू” थाम लिया और सरकार में हिस्सेदारी ले ली। इसके लिए भाजपा ने अपने 70 पार के आंकड़े को साकार करने के लिए जनाधार वाले नेता पवन बेनीवाल को अपने साथ जोड़ा था।  वह होने वाले उपचुनाव में सशक्त दावेवार भी दिखाई दे रहे थे। पर अचानक ऐसा क्या हो गया कि पवन बेनीवाल को भाजपा से “रुखसती” करनी पड़ी। पवन बेनीवाल का अचानक भाजपा से “किनारा” कर लेना इस आशय का संकेत देता है कि भाजपा में अब सब “ठीक-ठाक” नहीं है और हवा का रुख इसके खिलाफ बह रहा है।

हरियाणा के नेता शुरू से सत्ता के मौह से अछूते नहीं रहे है। वह मौके की तलाश में रहते हैं और जहां उन्हें जीत दिखाई देती है उस तरफ जाने में जरा भी संकोच नहीं करते। इनका कोई मजहब नहीं होता न हीं इनकी कोई पार्टी होती है। इनका एक ही उद्देश्य रहता है येन केन सत्ता में बने रहना। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि भाजपा में छह सात वर्तमान सांसद और दर्जनों विधायक घुटन महसूस कर रहे हैं। इनकी शिकायत है कि इनका काम नहीं होता और सरकार में उनकी कोई सुनवाई नहीं होती। इन लोगों का यह भी कहना है की सरकार चंद लोग ही चला रहे हैं। वैसे यह कशकश भाजपा के कार्यकर्ताओं में भी देखी जा रही है वह भी सरकार से नाखुश नजर आ रहे हैं। भाजपा के लिए कार्यकर्ताओं की दूरी सबसे बड़ी परेशानी का कारण बनेगी।

हरियाणा की राजनीति में जननायक ताऊ देवी लाल के परलोक गमन के बाद गहरी “राजनीतिक शून्यता” की स्थिति बन गई। अगर वर्तमान हालात में चौधरी देवीलाल जिंदा होते न केवल किसान आंदोलन को सबल मिलता अपितु भाजपा की निरंकुशता के खिलाफ वह आम जनता को लामबंद करने में पीछे नहीं रहते। आज देश का विपक्ष भी “आंदोलन विहींन” हो गया है। जनता का कहना है अभी भाजपा के खिलाफ उन्हें कोई “मजबूत नेतृत्व” दिखाई नहीं दे रहा। ओम प्रकाश चौटाला का जेल चले जाना और बुजुर्ग हो जाना भाजपा के लिए लाभदायक रहा। भूपेंद्र सिंह हुड्डा का “अहीरवाल” में विरोध होना भी भाजपा के लिए लाभदायक रहा। रही सही कसर कांग्रेस की गुटबाजी ने पूरी कर दी। हरियाणा की राजनीति में देवीलाल परिवार के वारिसो ने भी जनता को निराश किया है। अभय सिंह चौटाला को जनता ने स्वीकारा नहीं और दुष्यंत चौटाला ने पलटी मार दी। जाटलैंड में सबसे गहरी नाराजगी दुष्यंत चौटाला के प्रति है।

 इसी अवस्था का फायदा भाजपा ने जमकर उठाया। जनता में भाजपा जजपा सरकार के खिलाफ बढ़ता असंतोष और किसान आंदोलन भविष्य में एक नई “दिशा” और “विकल्प” तय करेगा। यहां यह लिखना भी तर्कसंगत होगा कि हरियाणा की राजनीति में आने वाले समय में भारी “बदलाव” की संभावना बनी हुई है। नरेंद्र मोदी की गिरती लोकप्रियता, बढ़ती महंगाई, करोना से निपटने में सरकार की विफलता, बेरोजगारी और सरकार से कार्यकर्ताओं की दूरी आदि मुद्दे राजनीति की नई परिभाषा तय करेंगे। तब न तो भाजपा को राष्ट्रवाद बचा पाएगा न ही धार्मिक कट्टरता। 

वैसे कुमारी शैलजा ने बिना किसी बड़े तामझाम और शोर-शराबे के एक एक कदम आगे बढ़ाते हुए खुद और कांग्रेस दोनों को मजबूत करने की “सही” दिशा में कदम बढ़ाए हैं। अगर वह इसी तरह से आगे बढ़ती रही तो कांग्रेस 2024 में भाजपा को बराबर की चुनौती देते हुए नजर आएगी।