-कमलेश भारतीय

बेबी को अब बेस पसंद नहीं रहा । बेबी को अब मास्क पसंद है । यही समय की पुकार है लेकिन मास्क को पहनाने के लिए पुलिस को चौक चौराहों पर चालान क्यों काटने पड़ रहे हैं ? क्या हमें हमारी ज़िंदगी प्यारी नहीं ? जिस तरह कोरोना का संक्रमण तेज़ी से बढ़ता जा रहा है , उससे एक बार फिर लाॅकडाउन जैसी स्थिति बनती जा रही है तो क्या हम सेल्फ लाॅकडाउन नहीं लगा सकते ? इसके लिए हमें प्रशासन के नियम कायदे कानून ही जरूरी क्यों ? कोरोना का बढ़ता संक्रमण देख कर भी पश्चिमी बंगाल में जिस तरह भाजपा के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय राहुल गांधी और कांग्रेस का मज़ाक उड़ा रहे हैं , उसे देख पढ़ कर भाजपा की सोच झलकती है । राहुल की कोई रैली थी ही नहीं । कांग्रेस का कुछ रहा ही नहीं । फिर रैली करो या न करो । पर आप तो अपनी जीत पर आश्वस्त हैं न । फिर आप पांच पांच सौ वाली रैलियां भी क्यों करो ? बहुत हो लिया प्रचार । अब थोड़ा जन कल्याण भी सोचो । वैसे भी कोरोना के साथ आपकी दोस्ती है और कोरोना को भी चुनाव ज्यादा पसंद हैं । यह बाद की बात है कि जब चुनाव खत्म होंगे तब कोरोना बम फूटेगा, फिर अहसास होगा । कोरोना को बहुत हल्के में न लीजिए साहब। यह मुआ अब छोटे बड़े का लिहाज भूल गया है और नेताओं को भी इसका स्वाद मिल रहा है । कोरोना को स्कूल काॅलेज बहुत पसंद हैं । इसलिए सबसे पहले वहीं जाता है और पढ़ाई बंद करवा देता है । फिर भगवान् के घर यानी मंदिर बंद करवाता है। नहीं करवाता तो चुनाव रद्द नहीं करवाता । नहीं करवाता तो रैलियां रद्द नहीं करवाता। जलसे जुलूस रद्द नहीं करवाता ।

इधर केंद्र सरकार किसान आंदोलन को कोरोना की आड़ में खत्म करवाने की फिराक में है । गोदी मीडिया खबर चला रहा है कि ऑक्सीजन सिलेंडर दिल्ली पहुंचाने में इस लिए दैरी हो रही है क्योंकि दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के धरने हैं । कभी तो दावे करते हो कि किसान आंदोलन खत्म होने जा रहा है । तम्बू खाली हैं और कभी कहते हो कि किसान आंदोलन के चलते ऑक्सीजन सिलेंडरों की सप्लाई में देरी हो रही है । यह साफ साफ गोदी मीडिया कहीं से डायरेक्शन ले रहा है। यदि साहब को किसान आंदोलन की इतनी फिक्र है तो आंदोलनकारियों को वार्ता का न्यौता क्यों नहीं देते ? सर फोन कर लीजिए न । क्यों राजहठ किये बैठे हो ? क्यों पश्चिमी बंगाल में रैलियां स्थगित नहीं कर रहे ? आखिर चुनाव जरूरी या लोगों की जान जरूरी ? यह तो स्पष्ट कर दीजिए साहब।

जब बच्चा बच्चा मास्क लगाये घूम रहा है और कोरोना के बढ़ने की चेतावनी हर रोज़ आ रही है। लाॅकडाउन की नौबत आ गयी । अस्पताल में बैड नहीं । शमशान में प्रबंध नहीं। हिसार मे ही कल एक साथ चौदह चितायें जल उठीं । कितना दर्दनाक दृश्य । कितनी भयावह स्थिति। विस्फोटक कोरोना । जैसे कोई क्रिकेट खिलाड़ी जो बाउलर से बेकाबू हो चुका हो । साहब। कुछ तो निशानी छोड़ दीजिए अपने संवेदनशील होने की, संस्कारवान होने की । कुछ तो सोचिए और बड़ा सोचिए । पार्टी हित से ऊपर देश हित सोचिये । ये तख्तो ताज सदैव नहीं रहते । आपकी अच्छाइयां रहेंगी जैसे अटल बिहारी वाजपेयी की बची हुई है लोगों के दिल में । उन्होंने वोट खरीद कर सरकार नहीं बचाई और आपने बिना खरीदे सरकार छोड़ी नहीं । फर्क है अलबत्ता । अटल बिहारी वाजपेयी ने विरोधी इंदिरा गांधी की भी सराहना की और दुर्गा तक कहा और आपने राहुल गांधी को पप्पू साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । है न फर्क? सोचिये । कुछ बड़ा सोचिये और देश की चिंता कीजिए। जैसे अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि सरकारें आएंगी , जाएंगी लेकिन कोई फर्क नहीं। हम खरीद कर सरकार बचा सकते थे लेकिन हमें यह मंजूर नहीं । सिद्धांत भी कुछ बचा लीजिए। आओ कोरोना को मार लीजिए ।

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