सवाल करिए, और याद रखिये चौकीदार ही चोर है।
सरकार के खिलाफ बोलने पर आप देशद्रोही हो जाते है। 
आप लोकतंत्र में है, दो तरफ संवाद होता है यहां।
नेताओं ने मास्क लगाने और सोशल डिस्टेन्सिंग की धज्जियां उड़ा दीं।
जनता को मूर्ख क्यों न कहा जाये ?
इस देश को अब भी न जाने किस अवतार का इंतजार है
बीजेपी विपक्ष में रहकर बहुत अच्छा कर लेती है, सत्ता के सामने समर्पण करते भक्तों ने मोदी और अमित शाह को सत्ता का सबसे विभत्स रूप बना दिया ।
न जाने इस देश की जनता को अब और कितने समाज सुधारक, शिक्षाविद इत्यादि का उदाहरण, शिक्षा और विचार चाहिए सही बात को समझने के लिए ? 
इस महामारी में एक बात तो साफ है सारी सरकारें फेल हैं।

अशोक कुमार कौशिक

 अफवाहों, पेड न्यूज, फेक न्यूज, मीडिया प्रचार प्रकोष्ठों का इतना बाजार गरम है कि किसी मित्र से फोन पर बातचीत हो तो सनातन सवाल होता है,भाई क्या खबर है? गृह युद्ध से बिखरते जा रहे महाभारत के वन पर्व में सत्ता से जबरन बेदखल जंगल में छिपे हुए पांडवों के बड़े भाई युधिष्ठिर से यक्ष भी यही अजर-अमर सवाल पूछता है। युधिष्ठिर का जवाब भी उतना ही अजर-अमर है : भूतानि काल: पचतीति वार्ता। इस महामोह भरी कढ़ाई में दिन-रात धूप-ठंड में पक रहे लोगों को मौत खा रही है। कुल मिला कर भरोसेमंद होने की कसौटी पर यही समाचार तब भी सच था, आज भी है। पर सच भी बदलता रहता है क्योंकि राजा ही समय को बनाता है, राजा कालस्य कारणं।

प्रमुखों के काम, नीतियां इन्हें पढ़ने समझने की जरूरत है, क्यो फ़िनलैंड दुनिया का सबसे खुशहाल देश है, न्यूजीलैंड से ज्यादा कोयला हमारे देश मे है फिर हम अमीर देश क्यों नही बन पा रहे, क्यो कनाडा इतना शांतिप्रिय देश है और हम क्यो सालभर केवल चुनाव को लेकर भिड़े रहते है ?

इन देशों की शिक्षा नीतियों पर गौर करिए, स्वस्थ सुविधाओ पर ध्यान दीजिए, रोजगार और उद्योग नीतियों को पढ़िए, कुल मिलाकर जो अच्छा हो उसे नोट करिए और जिसको वोट दे रहे है उससे मांग कीजिये। जब तक पार्टी का घोषणापत्र पढ़ कर वोट करेंगे आपके हाथ साम्प्रदायिकता और रोजगार के नाम पर मंदिर का घंटा और पकोड़ा योजना ही हाथ आएगी। क्या बोल रहे है, आपने कभी कोई संवाद नही किया, केवल ऊपर से व्हाट्सएप्प फारवर्ड आते रहे है, अरे आप भूल गए आप लोकतंत्र में है, दो तरफ संवाद होता है यहां।

क्या ऐसा नही हो रहा है, कब से ? साल भर, दो साल, 7 साल या उससे भी ज्यादा हो गया। कैसे होने दिया ये आपने, अभी हाल ही में तो आप और हम ने मिलकर कोलगेट स्कैम का भांडा फोड़ कर सरकार की नींद उड़ा दी थी, निर्भया के लिए सड़कों पर उतर कर सरकार को मजबूर कर दिया था कड़ा कानून बनाने। क्या बोल रहे है, अब रेप पीड़िता पुलिस के द्वारा रात के अंधेरे में जला दी जाती है, सरकार के खिलाफ बोलने पर आप देशद्रोही हो जाते है। ये सब कैसे होने लगा ? आपको पता नही चला? अच्छा आप व्हाट्सअप फारवर्ड खेल रहे थे? 1.5 gb बचा है ना कोई बात नही लगे रहिये या फिर सरकार की परिभाषा में देशद्रोही बन जाइये।

सवाल करिए और याद रखिये चौकीदार ही चोर है।

आखिर इस मर्ज की दवा क्या है ? जब आँखों के सामने मौत का तांडव चल रहा हो और जनता चुनावी रैलियों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले तो फिर कोई क्या कर सकता है ? आखिर ऐसे नाजुक दौर में चुनावी रैली में भाग लेने वाले कौन लोग हैं ? ऐसे लोगो को कैसे समझाया जा सकता है ? धृष्टता हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ लेकिन यह सच है कि जिस देश में इतने अधिक थोक में मूर्ख मौजूद हों, वहाँ धूर्तों के निर्लज्ज शासन की नियति बनी रहेगी ।

लिहाजा टीका उत्सव के दूसरे ही दिन अपने ब्लॉग में प्रधानमंत्री ने इस अभियान को कोरोना के खिलाफ दूसरे महायुद्ध की शुरुआत बताया। ज्ञान के धरातल पर टॉल्सटॉय, रवींद्रनाथ, रायकृष्ण दास और वासुदेव शरण अग्रवाल सरीखे चिंतकों से प्रभावित यह लेखक कुछ भ्रमित हुआ। मनीषियों ने बार-बार कहा है कि दीवाली, होली हों या ईद, बकरीद अथवा क्रिसमस और ईस्टर, भारत में मनाया जाने वाला हर उत्सव आम तौर से सामाजिक खुशी की सामूहिक अभिव्यक्ति से जुड़ता है। जबकि युद्ध एक उन्मादी अवस्था है जिसका अंत हमेशा विनाशकारी होता है, चाहे कोई भी पक्ष जीते। इसलिए शांति और प्रेम के नाश के बाद घृणा से निकली ऊर्जा के विनाशोन्मुख विस्फोट की मनस्थिति से समझदार नेतृत्व देश को यथा संभव बचाते हैं। नफरत और भेदभाव से हिंसा उपजती है, यह हर कोई जानता है। 

ऐसी कई मौतें चुनावोन्मुख बंगाल में भी हुई हैं। महामारी से भी और पुलिस की गोलियों से भी। कूच बिहार के पोलिंग बूथ में सशस्त्रबलों की गोली से चार लोग मारे गए। केंद्रीय गृहमंत्री का आरोप है कि गलती हथियारबंद सिपाहियों की नहीं बल्कि उन निहत्थे लोगों की थी जिन्होंने सरकारी बलों पर हमला कर दिया। उनका कहना था कि इन मौतों की जिम्मेदार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं। न वह लोगों को हिंसा के लिए भड़कातीं, न सशस्त्र बल गोली चलाते। पर विनाश काल में विपरीत बुद्धि!

जब कोविड की नई मार से कई सूबों, जनपदों में दोबारा तालाबंदी की बात उठ रही है, उसी समय उधर उत्तराखंड में लाखों की भीड़ के साथ कुंभ मेला शुरू हो गया। दूसरे स्नान मौनी अमावस को लाखों लोगों ने प्रधानमंत्री की कोरोना के खिलाफ महायुद्ध से जुड़ी घोषणा के दो जरूरी नियमों : मास्क लगाने और सोशल डिस्टेन्सिंग के पालन, की धज्जियां उड़ा दीं। यह तब, जबकि स्नान की पूर्व संध्या पर कई धर्मशालाएं तथा अखाड़े कोविड से बुरी तरह संक्रमित पाए जा चुके थे। उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश से भी बुरी खबरें आ रही हैं। इनसे छाती ठोक कर पहली तालाबंदी के बीच रामजन्म भूमि का शिलान्यास कर कोरोना से सुरक्षित रहने का उत्तर प्रदेश सरकार का दावा खोखला दिख रहा है। 
खबर है कि वहां टीके कम पड़ चुके हैं, सघन चिकित्सा कक्षों में तिल धरने की जगह नहीं रही। सबसे दारुण खबर यह, कि भारत का महती टीका निर्माता होने का दावा करने के बावजूद देश के कई राज्यों में, जिनमें दिल्ली भी शामिल है, आज वैक्सीन और ऑक्सीजन की घोर किल्लत है। अधिक मार झेल रहे राज्यों में रोगग्रस्त लोगों के लिए प्राणरक्षक ऑक्सीजन, वेंटिलेटर, या रामदेसिविर जैसी दवाएं गायब होती जा रही हैं।

जिनको देश में हॉस्पिटल की कमी नहीं लग रही, उनके लिए सूचनार्थ सादर। भारत में प्रति दस हज़ार लोगों में पाँच बेड हैं। 155 वी रैंक है भारत की। सिर्फ 12 देश ही इससे बदत्तर स्थिति में हैं। प्रति दस हज़ार लोगों में 8.5 डॉक्टर है। खुद सरकार ने ये आँकड़ा दिया है। मतलब बात ये नहीं हैं कि घर में 6 लोगों को एक साथ दस्त लग जाये तो सबके लिए अलग अलग टॉयलेट नहीं होता। मसला ये है कि छः हजार लोगों के बीच में भी एक टॉयलेट नहीं हैं। दस्त लगे न लगे आपकी हालत पस्त होनी तय है। 

आई टी सैल के प्रोपोगेंडा में पड़कर , अपने नेताओं की मुर्खता को डिफेंड करने में सारी ऊर्जा व्यर्थ मत कीजिये। जहाँ भी ऐसे लोग मिलें तबियत से रगड़ दीजिये। फिर चाहे वो मोदी हो ,शाह हो या आईटी सैल का कोई चिलाल्टू। राहुल हो ममता हो कोई हो सब को बता दीजिए कि अब और नहीं। जो लोग कह रहे हैं कि राहुल गाँधी होते तो क्या उखाड़ लेते? उनके लिए बता दूँ कि राहुल गाँधी होते तो बीजेपी ने तीन चार इस्तीफे तो करवा ही लिया होता। बीजेपी जनता के साथ मिलकर सरकार और प्रशासन पर इतना दबाव बना देती कि उन्हें झक मारकर काम करना पड़ता। बीजेपी विपक्ष में रहकर इससे बहुत अच्छा कर लेती है। सत्ता के सामने समर्पण करते भक्तों ने मोदी और अमित शाह को सत्ता का सबसे विभत्स रूप बना दिया है। इस महामारी में एक बात तो साफ है सारी सरकारें फेल हैं। साल भर बाद भी हम अपने लोगों की लाशें लिए वहीं खड़े हैं

शायद दुनियाँ में सबसे अधिक धर्म, सबसे अधिक संत, सबसे अधिक महापुरुष, सबसे अधिक नेता, सबसे अधिक पार्टी हमारे ही देश में हैं । लेकिन न जाने इस देश की जनता को अब और कितने समाज सुधारक, शिक्षाविद इत्यादि का उदाहरण, शिक्षा और विचार चाहिए सही बात को समझने के लिए ? इस देश को अब भी न जाने किस अवतार का इंतजार है ? हजारों वर्षों से अनेकों महापुरुष इस देश में पैदा हुये लेकिन स्थिती ढाक के तीन पात वाली ही रही है । आगे और कुछ पैदा हो भी गये तो क्या होने वाला है ?

1857 के विद्रोह को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम माना जाता है । 1857 से अनवरत संघर्षों के 90 वर्षों के बाद 1947 में आजादी मिली है । लेकिन आजादी के मात्र 75 वर्षों में देश का हश्र देखा जा सकता है । आखिर मात्र 75 वर्षों में ही आजादी के दीवानों के त्याग, बलिदान, शिक्षा और संदेशों का असर क्या रहा ? क्या ऐसी स्थिति में जनता को दोषी नहीं कहा जा सकता है ?

जब जनता अपने अधिकारों के प्रति जागरूक और एकजुट हो तथा लड़ने और मरने मारने पर उतारू हो तो मजाल है कि कोई लोकतांत्रिक सरकार जनता की अवहेलना कर दे लेकिन सरकारें जानती है कि कुछ भी हो जनता अपनी मूर्खता नहीं छोड़ सकती है । समय समय पर जनता ने खुद इसे साबित भी किया है । इसी हिसाब से सरकारें भी अपनी व्यवस्था बना कर रखती हैं । इसलिए किसी को कोसने से पहले हमें खुद के गिरेबान में झांकने की जरूरत है । अन्यथा यही हमारी नियति बनी रहेगी । जब तक जनता अपने अधिकारों के लिए नेता और पार्टी की मोहताज बनी रहेगी, तब तक यही हालात रहेंगें । हम कब तक नेता और पार्टी का विकल्प बने रहेंगें ? आखिर जनता के लिए पार्टी और नेता कब विकल्प बनेंगे ?

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