-कमलेश भारतीय

मैं राहुल गांधी का कोई समर्थक या अंध भक्त नहीं हूं । जब जब देश में कोई बड़ी बहस चली , ये महाश्य अपने ननिहाल या विदेश में चले गये छुट्टियां बिताने । कभी नववर्ष के नाम पर तो कभी नानी की बीमारी को देखते हुए विदेश पहुंच गये । यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल को लेकर सोशल मीडिया पर काफी चुटकुले भी बनाये गये जिसमें राहुल को प्यार से थपथपाते मोदी कह रहे हैं कि बेटा , अब तो इटली जा आओ , कोरोना के चलते छुट्टियां पड़ गयीं । कभी भाजपा मीडिया ने राहुल को पप्पू साबित करने में कोई कमी नहीं छोड़ी । बेशक जवाब में फेंकू भी चला और खूब चला । इसके बावजूद राहुल गांधी के हर कदम की आलोचना या कहिए घेरेबंदी लगातार जारी है । अमेठी से जीतने के बाद स्मृति ईरानी के पास बस एक ही काम है राहुल गांधी को घेरे रखना । चुनाव चाहे कहीं भी हो निशाने पर राहुल गांधी और अमेठी ही रहते हैं । टाॅपिक नहीं बदलता ।

हालांकि राहुल गांधी के दलित लोगों के घरों में रात बिताने की आलोचना की जाती रही लेकिन बाद में भाजपा ने भी इसे अपनाया और अमित शाह व संबित पात्रा इसी तरह दलितों के घर भोजन पर दिखे । अरविंद केजरीवाल भी इस राह पर चले । फिर भी राहुल को किसी ने गंभीर नेता या परिपक्व नेता नहीं माना । खासतौर पर शीला दीक्षित ने भी कहा कि राहुल बाबा को मैच्योर होने का समय चाहिए । इस तरह कांग्रेस के अंदर भी राहुल स्वीकार्य नहीं अभी तक । फिर भी कुछ बात तो है राहुल में ।

जैसे पश्चिमी बंगाल के चुनाव और कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते राहुल गांधी ने अपनी शेष सभी रैलियां रद्द करने की घोषणा की है । हालांकि भाजपा के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय यह कहने से बाज नहीं आए कि राहुल गांधी की रैलियों में भीड़ ही नहीं आती। अब सूरत बचाने को रैलियां रद्द कर दीं । राहुल रैली करें या न करें , कोई फर्क नहीं पड़ता है । हो सकता है । इसमें कोई दो राय नहीं पर आप तो मुकाबले में लोगों को कोरोना से बचाने के लिए रैलियां रद्द करके दिखाइए । जान माल की सुरक्षा कीजिए या चुनाव ही सर्वोपरि हैं ? ममता बनर्जी के सांसद सौगात राय भी कह रहे हैं कि जब तक भाजपा रैलियां जारी रखेगी तब तक हम भी रैलियां करेंगे । वैसे आंकड़े बता रहे हैं कि मार्च में चुनाव शुरू होने पर पश्चिमी बंगाल में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या 171 थी जो इस दौरान बढ़ कर 8419 तक पहुंच गयी है । ऐसे में रैलियों का क्या औचित्य ? किसके लिए ? सिर्फ चुनाव जीतने की होड़ के लिए ?

सम्राट अशोक ने कलिंगा युद्ध जीत लिया था लेकिन बाद में सैनिकों के शव देख कर बौद्ध धर्म अपना कर शांति का संदेश दिया। क्या यह किसी विदेशी का संदेश है ? हमारी ही मातृभूमि का संदेश है । इसी तरह जब नोआखली में जब आंदोलन उग्र हुआ था तब महात्मा गांधी ने आंदोलन वापस ले लिया था । हमारी राजनीतिक पार्टियों को जीत हार भूल कर तुरंत ये रैलियां और चुनाव जनसभायें रद्द करने की घोषणा करनी चाहिए। पी चिदम्बरम ने भी प्रधानमंत्री द्वारा कोरोना की समीक्षा बैठक पर चुटकी लेते कहां कि शुक्र है कि मोदी जी को पश्चिमी बंगाल के बीच कोरोना की सुध आई ।

काश , आप कोरोना को गंभीरता से लें और ताली थाली बजाने जैसे या टीका उत्सव जैसी मीडिया इवेंट छोड़ कर कोरोना से लड़ाई को जारी रखिए । यही याद रहेगा। पश्चिमी बंगाल कौन जीता, कौन हारा , कोई बड़ी बात नहीं। इतिहास मे दर्ज होगा कि जब देश कोरोना से लड़ाई लड़ रहा था और शमशान व कब्रिस्तान भरे पड़े थे तब आप एक चुनाव जीतने में व्यस्त थे । यह बहुत दुखदायी होगा । आप लौट आइए । राहुल गांधी जैसा भी है, उसने एक सही कदम उठाया है। तभी तो गज़ल की पंक्ति याद आ रह है:
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
दिल में आई लहर सी उठी है अभी,,,