# हर मास्टरस्ट्रोक पिछले वाले से कहीं ज्यादा घातक।
# चुने हुए प्रधानमंत्री हैं, आपको विरोध का हक़ नहीं है।
# क्या पीएम केयर फंड एक घोषित घोटाला है? अगर नहीं तो उसका ऑडिट क्यों नहीं?
# सवाल पूछिये कि देश की जनता ने महामारी से निपटने के लिए जो पैसा दिया था वह कहां गया?
# पिछली बार करोना की आड़ में साहिन बाग निपटाया, इस बार किसान निपटाने की तैयारी।
# खिलाड़ी के चोटिल अंगूठे पर आंसू बहाने वाले मजबूत प्रधानमंत्री गायब,  वे जनता के दुख में उनके बीच कभी दिखाई नहीं देते।
# हर राज्य में चुनी हुई सरकार, चलाने वाले मुखिया हैं तो राज्यपाल के साथ बैठक क्या है? राज्य मुख्यमंत्री चलाते हैं या राज्यपाल? 

अशोक कुमार कौशिक 

देश धन्य हो गया था मई 2014 में ही लेकिन समझ अब आ रहा है। एक ऐसे बंदे के हाथ में देश की कमान दे दी गई जिसके पास विज़न, प्लानिंग, नीतियां नाम की कोई चीज़ भले न हो लेकिन जबान मीलों लंबी थी। आप किसी समस्या को अभी देख भी नहीं पाए, समझ नहीं पाए और अगला एक मास्टरस्ट्रोक के साथ तैयार खड़ा मिलता है। और यहीं से भारत देश के धन्य होने के सारे कारण तैयार होने लगते हैं। 

अच्छा हर मास्टरस्ट्रोक पिछले वाले मास्टरस्ट्रोक से कहीं ज्यादा घातक। आप शुरू से देखिए। 2016 तक खाली बातें थी। अचानक नवंबर 2016 में पहला मास्टरस्ट्रोक नोटबंदी आया और सोए हुए, खाये, पिये अघाये देश की नाक में दम हो गया। 100 से ज्यादा कीड़े मकोड़े खर्च हो गए। हर मौत पर भीड़ की तालियों की गड़गड़ाहट बढ़ती जाती थी। फिर जुलाई 2017 में आधी रात को जीएसटी लागू हुआ और महीने भर के अंदर लाखों बेरोजगार, हजारों कंपनी बंद और देश का राजा मुस्कान के एक नए कलेवर के साथ देश के सामने खड़ा था। 

फिर तो मास्टरस्ट्रोक की झड़ी लग गई। दुनिया में कोई ऐसी स्कीम, जिससे देश की जनता का नुकसान होना हो, राजा साहब ने अपने देश में लागू की। तुर्रा यह की चुने हुए प्रधानमंत्री हैं, आपको विरोध का हक़ नहीं है। 14 अप्रैल को दो लाख मरीज़ निकले हैं। अब पिछली बार का मास्टरस्ट्रोक लॉकडाउन गायब है। वित्त मंत्री कह रही हैं की अर्थव्यवस्था ठप नही कर सकते। तो मोहतरमा पिछली बार क्योंकि? तब तो दीया थाली भी था। केंद्र ने गेंद राज्य के पाले में छोड़कर अपनी तरफ से जनता को मरने के लिए छोड़ दिया है। 

अब महामारी से मुकाबला आपके अपने हाथ में है। चाहें तो जाइए कुंभ नहा लीजिए, अगर “असली” हिंदू हो आप। या फिर शांति से घर में बैठकर अपने और परिवार के स्वास्थ्य का ध्यान रख लीजिए। सरकार सिर्फ चुनाव लडेगी, पप्पू को गाली देगी और स्पूतनिक वैक्सीन का इंतजार करेगी। 

उम्मीद है की अर्थव्यवस्था अभी और डुबकी लगाएगी। लेकिन आपको क्या ? आप तो मंदिर, 370, तीन तलाक, सर्जिकल स्ट्राइक में फंसे हैं, फंसे रहिए। जिंदा रहे तो मोदी जी एक प्लॉट देने की सोचेंगे। खर्च हो गए तो आपकी किस्मत। कीड़े मकोड़ों में अपनी गिनती करवाने की जहमत नहीं उठानी पड़ेगी। सरकार यह काम बखूबी करती है। नोटबंदी के 100+ से कोरोना के 2,17,353 देखकर यह तो पता लगता है की विकास तो हुआ है।

क्या पीएम केयर फंड एक घोषित घोटाला है? अगर नहीं तो उसका ऑडिट क्यों नहीं हुआ? महामारी के एक साल बाद भी हम वहीं क्यों खड़े हैं? देश में आज भी मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर की दुर्दशा वैसी ही क्यों है जहां न वेंटिलेटर हैं, न दवा, न बिस्तर, न एम्बुलेंस? मरते हुए लोगों को अस्पताल में बेड, दवा, डॉक्टर, वैक्सीन, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन, किट, कुछ भी क्यों नहीं मिल रहा?

सवाल पूछिये कि देश की जनता ने महामारी से निपटने के लिए जो पैसा दिया था वह कहां गया? पीएम केयर का धन कहां गया? अगर वह पैसा लोगों की जान बचाने में खर्च नहीं होना था तो कोरोना के नाम पर वसूली क्यों की गई थी? क्या पीएम केयर फंड खुलेआम लूट के लिए लॉन्च की गई योजना थी?

क्या हमारी 24 कैरेट की राष्ट्रवादी सरकार महामारी में भी राष्ट्र को लूटने से नहीं चूकी? क्या कोई बता सकता है कि 20 लाख करोड़ का राहत पैकेज और हजारों करोड़ का पीएम केयर फंड कहां गया? क्या इसी लूट को राष्ट्रवाद का रंग-रोगन चढ़ा कर बेचा जा रहा है?

 खिलाड़ी के चोटिल अंगूठे पर आंसू बहाने वाले प्रधानमंत्री गायब हैं। वे जनता के दुख में जनता के बीच कभी दिखाई नहीं देते। वे जनता के बीच सिर्फ जनता को उल्लू बनाने और झूठ से भरा भाषण देने जाते हैं। वे जनता का भयादोहन करते हैं, लेकिन जनता दुख में हो तो सांत्वना देने कभी नहीं पहुंचते। 

पिछले वाले प्रधानमंत्री महज स्वभाव से घुन्ने थे, लेकिन उनका तंत्र प्रतिक्रिया देता था। प्रदर्शन करके उनसे लोकपाल या आरटीआई जैसी कोई मांग मनवाई जा सकती थी। 

अबकी बार वाले महापुरुष धूर्त हैं। ऐसे 24 घण्टे भोंपू की तरह बजते रहते हैं लेकिन जब भी जनता में हाहाकार मचता है इनको सांप सूंघ जाता है। इनकी करनी से देश भर में पलायन हुआ तब भी ये चुपाई मार के सोते रहे। आज देश में चीत्कार है, तब भी ये खामोश हैं। देश मे हाहाकार मचता रहे, ये आदमी कान में रुई लगाए अपना कुछ नया षड्यंत्र रचता रहता है। 

पिछली लहर में चोर दरवाजे से कृषि कानून लागू कर दिया। पिछली बार करोना की आड़ में साहिन बाग निपटाया, इस बार किसान निपटाने की तैयारी है। इन्हें आंदोलनजीवियों से घृणा है । पीएम केयर फंड बनाया और उसे गोल कर गए। इस बार मुख्यमंत्रियों को छोड़कर राज्यपालों के साथ बैठक कर रहे हैं। 

पिछले एक हफ्ते से देश भर में भयावह हालात हैं लेकिन  प्रधानमंत्री का मुख्य फोकस सिर्फ रैली पर रहा। अब कल इन्होंने राज्यपालों के साथ बैठक की। ये इस तरह की पहली बैठक थी, जिसमें प्रधानमंत्री ने राज्यपालों से संवाद किया। हर राज्य में चुनी हुई सरकार है, उसे चलाने वाले मुखिया हैं, तो राज्यपाल के साथ बैठक का क्या मतलब है? राज्य मुख्यमंत्री चलाते हैं या राज्यपाल चलाते हैं? इनका हर कदम मौजूदा व्यवस्था, संविधान और कानून के विरुद्ध होता है। महामारी को इन्होंने “आपदा में अवसर” घोषित किया और अवसर को लूटने में ये कोई कसर नहीं छोड़ रहे।  

देश में प्रधानमंत्री नाम की संस्था की मौत हो चुकी है। उस कुर्सी पर एक व्यक्ति जरूर बैठा है जो सिर्फ अपनी पार्टी के प्रसार और चुनाव जीतने के बारे में सोचता है। ऐसा लगता है जैसे कोई आक्रांता हो जो पूरे देश पर कब्जा कर लेने का सपना देख रहा है। कोई प्रधानमंत्री उसी दिन 3 चुनावी रैली कैसे कर लेता है जिस दिन देश में महामारी से हजार मौतें हुई हों और डेढ़ लाख केस आये हों? 

आपदा में जनता नेतृत्व की ओर देखती है। लेकिन आपदा में इनके मुंह से बक्कुर नहीं फूटता। वैसे ये भाई साब इतने फुरसतिया हैं कि किसी खिलाड़ी के अंगूठे में चोट लगने से बड़े दुखी हो जाते हैं। क्या प्रधानमंत्री के कुछ सार्वजनिक बयानों और कुछ निर्देशों से जनता को राहत नहीं मिलती?

हे व्हाट्सएप विष-विद्यालय में जागे हुए हिंदुओं, श्मशान के बाहर लाशों की कतारें देखो। जो लोग ऑक्सीजन, रेमिडेसिविविर और वेंटिलेटर से बचाये जा सकते थे, उन्हें जलाने के लिए लकड़ी तक नहीं है। तुम जागे नहीं हो, तुम जागने के नाम पर मुर्दा बना दिये गए हो जिसके अन्तर्मन में सिर्फ और सिर्फ विष भरा है। तुम अपने पेट की रोटी मांगना तो दूर, अपने लिए दो गज जमीन मांगना भूल गए हो। तुम जागे नहीं हो, तुम दरअसल मुर्दा हो चुके हो और एक कौम के मुर्दा हो जाने से बुरा कुछ नहीं होता।

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