अब क्या हुआ ? कोरोना ने ऐसा डंक मारा की पूरा देश सिर्फ त्राहिमाम बोलने लायक रह गया है। भाजपा में बकलोली की होड़, किसी में इतनी हिम्मत नही की खड़ा होकर बोल सके की हे मोदी आप गलत हैं।झूठे वादों, जुमलों और झूठे आंकड़ों के सिवा इस सरकार के पास सिर्फ दंगा कराने का फॉर्मूला है।हमने शरीर को सिर्फ़ कोरोना से बचने के लिए तैयार किया लड़ने के लिए नहीं , परिणाम ये हुआ की हमारा इम्यून सिस्टम और कमजोर हो गया ।आयुर्वेद कहता है “शरीर को कष्ट दोगे तो शरीर आराम देगा और शरीर को आराम दोगे तो शरीर कष्ट देगा “। अशोक कुमार कौशिक खुदा कसम, नड्डा जी से बड़ा गड्ढा नहीं देखा होगा हिंदुस्तान ने। भाई जी का मुंह खुलता है और बेवकूफी के झरने बहने शुरू हो जाते हैं। अभी कितने दिन हुए जब नड्डा चिल्ला चिल्ला कर देश को सरदर्द दे रहे थे की मोदी ने 130 करोड़ भारतीयों को कोरोना से बचा लिया ? बिहार चुनाव में बोला था। राजनाथ, अमित शाह, रवि शंकर सब सुर में सुर भी मिला रहे थे। अब क्या हुआ ? कोरोना ने ऐसा डंक मारा की पूरा देश सिर्फ त्राहि माम बोलने लायक रह गया है। अगर 130 करोड़ तभी बचा लिए गए थे तो अब यह 1.5 लाख डेली क्या हिंदुस्तानी नहीं हैं ? भाजपा में बकलोली की होड़ लगी है। किसी में इतनी हिम्मत नही की खड़ा होकर बोल सके की हे देवताओं के देवताधिराज मोदी आप गलत हैं। अभी देखिएगा इसी पोस्ट पर कुछ चिंटू टाइप अनपढ़ लोग आएंगे और बरुआ का इंदिरा इज इंडिया दोहराएंगे। लेकिन यह चिंटू लोग यह भूल जायेंगे की नेहरू हो या इंदिरा, राजीव हो या राव, सोनिया हो या मनमोहन सबको कांग्रेसियों ने ही टोका। लेकिन भाजपा में ऐसे लोगों की बहुत कमी है और इसीलिए दाढ़ी वाले बाबा निरंकुश हैं। दवा नहीं है, वैक्सीन की भी कमी हो गई। वह डॉक्टर बेचारे जिन पर पिछली बार फूल बरसाए जा रहे थे, आज बेबस हैं। भाजपा के गुजरात अध्यक्ष गुजरात मॉडल को फॉलो करते हुए सारी रेमडिसिविर खुद ही जमा करके ब्लैक में बेचने के जुगाड़ में थे। अच्छा वह राफेल से फूल बरसाने का प्रोग्राम हो या दीया, मोमबत्ती, ताली थाली बजाने का। सब गायब है क्यों ? डॉक्टरों को अब प्रोत्साहन नहीं चाहिए ? असल बात यह है की भाजपा नामक विषैला सांप इस समय सारा जहर बंगाल में उगल रहा है। और कहीं तो चला नहीं। बंगाल आखिरी आस हैं। और जैसे ही मोदी, चाणक्य और नड्डा सड्डा गड्ढा फ्री होंगे, तुरंत कोरोना की गिनती कम हो जायेगी। बताया जायेगा की मोदी का मास्टरस्ट्रोक है जिसकी वजह से कोरोना कम हुआ है। झूठे वादों, जुमलों और झूठे आंकड़ों के सिवा इस सरकार के पास सिर्फ दंगा कराने का फॉर्मूला है, रामजादे, हरामजादे, कब्रिस्तान शमशान के गुण सूत्र हैं। हमारे देश में कोरोना की दूसरी लहर काफ़ी घातक सिद्ध हुई है , काफ़ी लोग संक्रमित भी हुए हैं , और बहूत से लोगों की मृत्यु भी हुई है । जब से कोरोना काल शुरू हुआ , हमने शरीर को कोरोना से बचाने के लिए काफ़ी तरीक़े अपनाए , जैसे मास्क लगाना , सोशल डिस्टन्सिंग , सैनिटायज़ करना , काढ़ा पीना , बार बार हाथ मुँह धोना आदि , पर क्या उससे हम कोरोना से जीत पाए ? जवाब है नहीं , क्यूँकि हमने शरीर को सिर्फ़ कोरोना से बचने के लिए तैयार किया लड़ने के लिए नहीं , जिसका परिणाम ये हुआ की हमारा इम्यून सिस्टम और कमजोर हो गया । आयुर्वेद कहता है “शरीर को कष्ट दोगे तो शरीर आराम देगा और शरीर को आराम दोगे तो शरीर कष्ट देगा “। पिछले एक साल में लोग ज़्यादातर घर में बंद रहे ना धूप में निकले ना ज़्यादा खुली हवा में , ना कोई व्यायाम वर्जिश या योग किया बल्कि और अधिक आराम पसंद हो गए , एक जैसे टेम्प्रेचर के आदि हो गए जिसके परिणाम स्वरूप शरीर की लड़ने की क्षमता कम हुई ।आप को याद होगा पिछले साल गर्मियों में लोगों ने जम के काली मिर्च ,लोंग , अदरक का काढ़ा पिया , जिस मौसम में लोग दही , छाछ , केरी का पना , निम्बू पानी , सत्तू आदि लेते थे उसमें लोग काढा पीते रहे तो उसके दुष्परिणाम तो होने ही थे कई लोगों को पाइल्ज़ हाइपर असिडिटी , अल्सर जैसे रोग हुए , साथ ही साथ इम्यून सिस्टम भी काफ़ी प्रभावित हुआ। कुछ लोगों का मास्क प्रेम तो यहाँ तक देखने में आया की सुबह की सैर के समय भी मास्क लगा के घूम रहे होते हैं । हमारे बुजुर्ग लोग सुबह की हवा के बारे में कहते थे की सौ दवा और एक हवा, और वे ग़लत नहीं कहते थे जिस मात्रा में शुद्ध ऑक्सिजन सुबह मिलेगी वो दिन भर नहीं मिल सकती , पर लोगों की सनक का इलाज नहीं , ना सुबह ज़्यादा लोग होते है ना भीड़ ना बंद जगह में सैर फिर भी मास्क लगाना है तो भैया ऐसे ही काफ़ी समय वही कार्बन डाई आक्सायड दिन भर मास्क से अंदर ही खींचना है तो सुबह क्यूँ मास्क लगा रहे हैं पर नहीं लगाना तो है ।मान लीजिए टीका लगवाने वाला पहले से बिना लक्षण वाला संक्रमित है। टीका लगवाने के बाद उसे टीके के असर से या संक्रमण के ही कारण बुखार आ जाता है और जांच में संक्रमण की पुष्टि होती है, तो धारणा यह बनती है कि टीका लगवाते ही कोरोना हो गया। कुछ लोगों को टीके के बाद कोरोना होने की यह वजह भी हो सकती है। कुछ लोगों को कोरोना हो कर निकल जाता है। हल्का फुल्का-बुखार, सर्दी खांसी, दो-चार छींक। मगर वे जांच नहीं करा पाते। कायदे से ऐसे लोगों को भी तीन महीने बाद टीका लगना चाहिए। बिना फटाफट जांच के टीका लगवाना क्या उचित है? कुल मिला कर अब जो काफ़ी ज़्यादा लोग संक्रमित हो रहे है उसमें कहीं ना कहीं वे ख़ुद भी ज़िम्मेदार हैं , ना उन्होंने साल भर में शरीर को मज़बूत बनाने के लिए कोई परिश्रम किया , ना ताजी हवा का लाभ लिया , ऊपर से उल्टी सीधी चीज़ों का सेवन किया , ना सोने का सही समय ना उठने का और फिर उम्मीद करते हैं की इम्यून सिस्टम मज़बूत हो तो साहेब होने से रहा । यहाँ इस बात का कोई फ़ायदा नहीं की कोरोना है या नहीं या षड्यन्त्र है या नहीं , बस इतना समझिए लोग संक्रमित हो रहे हैं मर भी रहे हैं , तो आप को अगर स्वस्थ रहना है तो शरीर को सिर्फ़ कोरोना नहीं दूसरी बीमारी से भी लड़ने को तैयार कीजिए , नियमित पैदल चलिए , साइकल चलाइए , या योग प्राणायाम कीजिए , या कोई भी व्यायायाम कीजिए , मौसम के अनुसार खाना खाइए , हेल्थी फ़ूड खाइए , सुबह जल्दी उठिए , रात में जल्दी सोने की कोशिश करें , थोड़ी धूप भी लें , अपने शरीर को लड़ने के लिए भी तैयार कीजिए , तब हम कोरोना तो क्या किसी भी बीमारी से बेहतर ढंग से लड़ पाएँगे। ताज्जुब है की अभी भी देश की आंखें नहीं खुल रही। मत खोलिए, सब मरेंगे और फिर ऊपर जाकर भी कांग्रेस – भाजपा करेंगे। देश और देश की जनता तो चूल्हे में जा ही चुकी है। देश की मरी हुई जनता के लिए दो मिनट का मौन एक राष्ट्रीय त्यौहार / उत्सव बना देना चाहिए। Post navigation जलियावाला बाग का बर्बर नरंसहार दुनिया के इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज है : विद्रोही नव वर्ष प्रारंभ होने पर श्री गौड़ ब्राह्मण सभा ने सर्वजन कल्याण व आरोग्य हेतु किया हवन