अघोषित लॉकडाउन की तैयारी जैसा माहौल क्यों?

भारत सारथी/कौशिक

नारनौल । जिला महेंद्रगढ़ पुलिस अपराधियों पर भले ही नकेल डालने में बेबस हो पर मनमानी करने में पीछे नहीं । लगता है जिला मुख्यालय पर पुलिस ने लॉकडाउन कि फिर से तैयारियां आरंभ कर दी है। देश के साथ-साथ नारनौल की जनता ने भी लॉकडाउन अंदर भारी परेशानियों का सामना किया । तब पुलिस की सख्ती भी सामने आई थी। पर जनता ने सरकार व प्रशासन के हर आदेश में सहयोग दिया। 

हम मास्क न लगाने वालों के पक्षधर नहीं है पर जिस तरह पुलिस कार्रवाई कर रही है गलत है। क्या घर में मास्क लगाना जरूरी है? क्या दिनचर्या का सामान लाने ले जाने के समय दुकान वाले से सोशल डिस्टेंसिंग रखते हुए मास्क का हटाना गलत है? क्या अब जिला पुलिस व्यक्तिगत जिंदगी में भी दखल देगी और दुकानों के अंदर और घरों के अंदर धावा बोलना शुरू करेगी। कुछ ऐसे प्रश्न है जिस पर पुलिस को सहानुभूति पूर्वक विचार करना होगा। वैसे पुलिसवाले जिस मास्क लगाने को लेकर जनता का चालान काट रहे हैं वह स्वयं इसको लेकर कीतने गंभीर है, यह भी खुलेआम देखा जा सकता है। 

यदि आप नारनौल में किसी दुकान पर सामान लेते समय यदि अपना मास्क हटा लेते हैं तो यह पुलिस की नजर में बहुत बड़ा संगीन अपराध है। भले ही मुख्य सड़कों पर बिना मास्क के सैकड़ों आदमी गुजर जाए। पुलिस को आमजन से व्यवहार समझाने की बजाय उनको दंड दे अपना पुलिसिया रुतबा दिखाने में ज्यादा मुनासिब लगता है। यह तब है जब जिला महेंद्रगढ़ के पुलिस कप्तान चंद्रमोहन बड़े असूल वाले व्यक्ति बताए जाते हैं कप्तान साहब क्या नारनौल की पुलिस का यही असूल है?

आज सिविल अस्पताल के पीछे स्टेट बैंक के पास बोहरा इलेक्ट्रिकल्स की दुकान पर लगभग दोपहर 3:00 बजे एक ग्राहक अपना सामान ठीक करवाने के लिए आया। अभी वह आकर दुकानदार से बात कर रहा था कि अचानक सरिता नाम की एक महिला पुलिसकर्मी जिसके साथ एक अन्य महिला पुलिसकर्मी व एक पुरुषकर्मी उसके पीछे-पीछे दुकान में आ धमके। ग्राहक को बिना मास्क होने के एवज में चालान काटने के लिए उसका नाम पूछा। 

वैसे पुलिस का स्लोगन है अपराधियों में खौफ, जनता में विश्वास। पर हो रहा है असल में बिल्कुल इससे उलट।  पुरुष पुलिसकर्मी तो अक्सर आम नागरिकों पर रौब झाड़ते देखे जा सकते हैं पर महिला पुलिसकर्मी भी अब अछूती नहीं है। महिला पुलिस कर्मियों की बेअदबी महिला थानों में सरेआम देखी जा सकती है। वैसे जिले में हाल ही में यह दूसरा मामला है । इससे पहले नगर परिषद की चेयरपर्सन भारती सैनी के पति संजय सैनी के मामले में महिला पुलिसकर्मी की कार्यशैली उजागर हो चुकी है। अगर पुलिस बेवजह ऐसी परेशानी पैदा करेगी तो क्या इसे नारनौल में अघोषित लॉकडाउन की शुरुआत नहीं माना जाए?

क्या कानून गरीब और बेबस लोगों  के लिए ही बना है? अमीर और राजनीतिक में पैठ रखने वाले लोग कानून के शिकंजे के गिरफ्त में भी नहीं आते।

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