*  300 किसान शहीद हो गए आंदोलन में, दिखा कहीं सहानुभूति या संवेदना का एक शब्द ।
* कर्म है घूम के आता हैं।
* पार्टी से ज्यादा जनता को प्राथमिकता नहीं दी और जनता विपक्ष बनी तो अरुण नारंग बस आगाज भर है।

अशोक कुमार कौशिक

 कल भक्तों के एक चाचा की पिटाई कर दी जनता ने। भक्तों को बहुत बुरा लगा होगा। सही बोलूं तो बुरा मुझे भी लगा। शायद भक्तों से ज्यादा। लेकिन यह भी सही है की यही दो कौड़ी के भक्त तब किसी को बुरा लगने की चिंता नहीं करते जब पीटने वाला इनके अपने जंगली समूह से हो। तब यह बड़े शान से उस बेचारे की लहुलुहान फोटो चार छह स्माइली के साथ पोस्ट करते हैं। 

अभी बहुत दिन नही हुए आप नेता को पुलिस ने पीटा तब भी यही हालत थी। 300 किसान बेचारे शहीद हो गए आंदोलन में। दिखा आपको कहीं सहानुभूति या संवेदना का एक शब्द ? लिंचिंग के आरोपी को जयंत सिन्हा माला पहनाते हैं, योगी और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों के मुकदमे बेशर्मी से वापस हो जाते हैं, चिन्मयानंद का बलात्कार का मुकदमा खत्म हो जाता है और हम कुछ नही करते। 

 पंजाब के मलोट में अबोहर से बीजेपी विधायक अरुण नारंग को बेरहमी से पीटा गया, उनके ऊपर स्याही फेंका गया और यहां तक कि उनके कपड़े फाड़ दिया गया। इस घटना की मैं साफ़ शब्दों में कड़ी निंदा करता हूं। क्योंकि ” हिंसा को कहीं से भी जायज नहीं ठहराया जा सकता है। “

बीजेपी विधायक के साथ गुस्साए किसानों ने जो बर्ताव किया, बिल्कुल असंवैधानिक है। अगर आपको विरोध करना है तो शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कीजिए न। किसी व्यक्ति को बेरहमी से पीटना, उनके कपड़े फाड़ना ये कहां तक उचित है, ये तो विरोध करने का तरीका नहीं है। 
ये मैं भी मानता हूं कि सरकार (नेताओं) के व्यवहार भी किसान आंदोलनकारियों के प्रति पिछले दिनों से बेहद क्रूर और घृणित भरा रहा है। उनपर तरह-तरह के झूठे आरोप लगाए गए। उनको यहां तक कि ‘ खालिस्तानी आतंकवादी ‘ कहा गया।

लेकिन एक बार आप शांत मन से सोचिए कि सरकार (नेताओं) के साथ हम भी नीचता और कायरों जैसी हरकतें करने लगे, यह तो सही नहीं है, संवैधानिक नहीं। और तो और हिंसा किसी भी मसला का हल भी तो नहीं है। यह कहीं न कहीं उस मसला को और भी उलझाऊं बना देता है। इसलिए किसान भाईयों को इस घटना से सबब लेकर आगे से इस तरह की  घटनाओं से बचना चाहिए। जो देश और किसान भाईयों के हित में होगा। देश में जो किसान आंदोलन सही दिशा में चल रहा है उसको और तीव्र गति प्रदान करेगा।

कर्म है घूम के आता हैं

पंजाब में हुई विधायक अरुण नारंग के साथ इसे आप किसी भी एंगल से देख सकते हैं। एक विधायक का जनता के गुस्सा का सामना करना पड़ता हैं, कभी अपने किये वादे को नही पूरा करने के एवज में, एक आपकी पार्टी के शीर्ष द्वारा गलती किये जाने के एवज में। दूसरा लोकतंत्र में नेता जब अपने आप को जनता के ऊपर समझने लगे तब। 

इस घटना को हम दूसरे एंगल से देखते है, क्योंकि वादे पूरा नही होने पर इस तरह जनता को गुस्सा होते कम ही देखा हैं। अभी पिछले 6-7 साल में जिस तरह से जनता की बिना मर्जी के जबरदस्ती अपने फैसले लादे जा रहे हैं,  जैसे रातों रात नोटबन्दी, फिर जीएसटी , फिर CAA, NRC, फिर छात्रों के साथ फीस हाईक, फिर किसान को जबरदस्ती फायदा पहुचाने की कोशिश, पेट्रोल डीजल गैस के दामों में लगातार बढ़ोतरी, उसके बाद महंगाई, फिर सरकारी कंपनियों की बिक्री ये सब ऐसे मसले है, जो आम जनता के दिल मे धीरे धीरे आक्रोश पैदा कर रहे हैं। आम जनता मतलब नो लेफ्ट नो राइट न अंधभक्त न चमचा।

इस घटना को हम विद्रोह के आगाज के रूप में देख सकते हैं । आगे देखते हैं क्या क्या होता हैं ? आज नारंग जी पूरा दिख गए बिना कपड़ों के, क्योंकि आगे हमे बहुत कुछ दिख रहा हैं। बाकी 4 दिन पहले बिहार में विधायकों को सत्ता पक्ष ने पुलिस और गुंडे बुलवा के पिटवा दिया। आज उसी गठबंधन के एक पार्टी के विधायक को नंगा करके दौड़ा कर जनता ने बजा दिया। ऐसा बजाया की फ़ोटो काट के डाल रहे है पूरा डाल भी नही सकतें। कर्म है घूम के आता ही हैं।

जनता विपक्ष बनी तो हाल भयावह होंगे

भाजपा और आरएसएस के अलावा राजनीतिक पार्टियों के लिए पंजाब के भाजपा विधायक अरुण नारंग की पिटाई एक नजीर है। सीख जाएं तो बेहतर है, नहीं सीखे तो भविष्य मे इस तरह की और घटनाओं के लिए तैयार रहें। ये घटना दुःखद लेकिन जनता की अपने नेताओं के प्रति गुस्से की पराकाष्ठा है।

प्रधानमंत्री मोदी और आरएसएस इस गलतफहमी में हैं कि विपक्ष को खत्म कर देने के बाद वो भारत की जनता को निरीह बनाकर शोषण का माध्यम बना सकती है। इस गलतफहमी का अंजाम समझना है तो कांग्रेस का अंजाम देख ले। 

2009 का चुनाव जिस तरह से कांग्रेस ने 2004 से ज्यादा सीटों से जीता था वो आश्चर्यजनक था। तब कांग्रेस की सीट 145 से 206 हो गई यानी पिछले चुनाव से 61 सीट ज्यादा। लेकिन 2010 से पी चिदम्बरम, कपिल सिब्बल आदि ने जो अनीति मचाई थी उसका परिणाम 2014 रहा। 

2009 में सबको ये यकीन हो चुका था कि विपक्ष खत्म हो चुका है। सेमी पेन इंडिया प्रोजेक्शन वाली भाजपा अब खत्म होने वाली है। फिर अनीति के खिलाफ जनता ही विपक्ष बन गई। भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन में जब भाजपा और आरएसएस खुलकर आगे आने से डर रही थी तब आम जनता खड़ी हो गई। जनता ही विपक्ष बन गई और जब जनता विपक्ष बनती है तो अंजाम 2014 होता है।

मोदी और शाह खुद को नेपोलियन मानकर जो मनमानी कर रहे हैं उन्हें कांग्रेस का अंजाम देख लेना चाहिए। फिर अरुण नारंग का अंजाम ये बता रहा है कि इन दोनों ने अपनी मनमानी नहीं छोड़ी तो फिर कितने अरुण नारंग जनता की अदालत में इंसाफ की बेदी पर चढ़ेंगे ये कोई नहीं बता सकता। 

अब तो खुद आरएसएस इस मुगालते से बाहर निकल जाए कि वो स्वयं को कांग्रेस से ज्यादा राष्ट्रवादी बताकर युवाओं में राष्ट्रवाद का नशा घुसा पाएगी। आरएसएस की जो पूंजी उसने कमाई है वो तब तक की है जब तक आरएसएस के पुरोधाओं के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान पर रिसर्च के दस्तावेज बाहर नहीं आये थे। 

मोदी, शाह और आरएसएस स्पष्ट समझ लें कि उनके पास लोक कल्याणकारी बनने के अलावा अब कोई विकल्प नहीं है। जनता भी बार बार सरकारें बदलने के बाद भी सड़ांध मारती व्यवस्था को झेलते झेलते तंग आ चुकी है। चुनाव जीतने के बाद जनता की बजाय पार्टी हाइ कमान की वफादारी करने वाले जनप्रतिनिधि भी ये समझ जाएं कि पार्टी से ज्यादा जनता को प्राथमिकता नहीं दी और जनता विपक्ष बनी तो अरुण नारंग बस आगाज भर है।

मैं किसानों का शुक्रिया अदा करता हूँ कि उन्होंने अपना क्रोध समय रहते काबू किया। भाजपा विधायक अरुण नारंग को सिर्फ पीट के नंगा किया। वरना भाजपा ने तो देश में मोब लिंचिंग से प्राण लेने की प्रथा चला रखी है। हाल ही में यूपी,हरियाणा व पंजाब के विधायकों ने अपने नेताओं को स्पष्ट कर दिया था कि जनता हमें मारेगी। राहुल गांधी ने 8 महीने पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि जनता भाजपा के लिए लट्ठ लिए बैठी है। 

यह जनता ही राजा है और इस जनता ने अपने एक नेता को सबक सिखाया है। एक बात और समझ लो। यह सिर्फ उसी सब की प्रतिक्रिया है। प्रतिक्रिया जरूरी नहीं की केवल कारसेवकों के मरने पर ही हो। सिर्फ शुरुआत आपने करी है। खत्म तो जनता ही करेगी। आज नही तो 2024 में। ऐसा हमेशा से होता आया है। इतिहास गवाह है। जितने आततायी हुए आज तक उनका यही हश्र हुआ। आत्महत्या या जनता द्वारा ठिकाने लगाए गए। 

अभी भी समय है। किसानों से बात करके, उनकी मांगें मानकर मामले को खत्म किया जा सकता है। सत्ता की हेकड़ी दिखाने से बात बिगड़ेगी। यह बात जितनी जल्दी महामानव और उनके अनुयायियों को समझ में आ जाए उतनी जल्दी देश का भला हो सकता है। नहीं तो गर्त में तो देश जा ही चुका है।

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