जब विपक्ष समाप्त हो जाता है तो जनता विपक्ष का काम करने लगती है और जनता को जनता जनार्दन कहा जाता है अर्थात ईश्वर। अब उससे कैसे लड़ेगी सरकार?

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

सर्वप्रथम तो मैं कामना करूंगा कि समस्त देशवासियों के सुख-समृद्धि और उत्साह की। वर्तमान में देश में किसान आंदोलन बड़े जोर-शोर से चल रहा है। आज भी किसानों ने तीन कानूनों की प्रतियां होली में विसर्जित की हैं। ऐसे समाचार अनेक स्थानों से मिले हैं। 

अब बात करें सन्नाटे की। जो उत्साह-उमंग गत वर्षों देखी जाती थी, इस त्योहार के मौके पर वह इस दफा नदारद दिखाई दे रही है। इसके पीछे बड़ा कारण कोरोना ही हो सकता है। दूसरा कारण किसान आंदोलन भी हैं, जहां इतने किसान आंदोलनरत हैं तो उनको त्योहार की खुशियां मनाने का कहां ख्याल आता है। इस बात को ऐसे भी सोचा जा सकता है कि कोरोना और किसान आंदोलन के अतिरिक्त आम आदमी भी महंगाई की चक्की में पिस रहा है। पिछले दिनों कोरोना के कारण अनेक लोगों के रोजगार गए थे। अब तक यह स्थिति सामान्य नहीं हो पाई और अब फिर कोरोना बढऩे की आहट लोगों के मन में अपने जीवन में कठिनाईयां ही कठिनाईयां दिखाई दे रही हैं। मन के उल्हास-उत्साह का स्थान चिंता और मंदे ने ले लिया है।

अब बात करें किसान आंदोलन की तो किसानों द्वारा भारत बंद के पश्चात एक अजीब सी बात देखने में आ रही है कि जो राजनैतिक लोग किसानों के साथ होने का रोज बड़े जोर-शोर से दम-खम भरते थे, अब भारत बंद के पश्चात किसी का कोई ब्यान प्रेस में नहीं आया है। इसके पीछे क्या कारण है, यही किसानों और समाज में चर्चा का विषय बना हुआ है। हरियाणा में सबसे अधिक मुखर चौ. भूपेंद्र सिंह हुड्डा, दीपेंद्र सिंह हुड्डा, अभय चौटाला रहते थे। उनका कोई ब्यान बंद की सफलता-असफलता, असर आदि पर नहीं आया है। इसी प्रकार महम से निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू भी अपनी प्रतिक्रिया देते रहते थे। उनकी तरफ से भी चुप्पी है। हां, सोमबीर सांगवान अवश्य कितलाना टोल पर डटे हुए हैं।

अब बात करें होली-धुल्हैंडी पर्व की तो यह पर्व पाप के नाश का सूचक है। होलिका पाप पर्याय मानी जाती है और प्रहलाद पुण्य का तथा होलिका दहन की बारे में कहा गया है कि हरिण्यकश्यप ने प्रहलाद को जलाने के लिए होलिका की गोद में बिठाकर अग्नि में प्रज्जवलित कर दिया था, जिसमें होलिका जिसे वरदान था अग्नि में न जलने का वह भस्म हो गई और प्रहलाद बच गया।वर्तमान में प्रहलाद के प्रतीक रूप एक लकड़ी होली में लगाई जाती है और अग्नि प्रज्जवलित करते ही उसे निकाल लिया जाता है। अर्थात सत्य और पुण्य को बचाया जाता है। यही संदेश है।

किसान आंदोलन में भी स्थिति यही बनती जा रही है। अधिकांश जनता यह मानने लगी है कि सरकार पाप कर रही है और किसान पुण्य के रास्ते पर हैं। अत: पुण्य को बचाने के लिए वह किसानों के साथ हैं।

यह मानने में कोई गुरेज नहीं कि राजनैतिक दल इस मौके का लाभ उठाने में चूक नहीं रहे हैं और भारत बंद के बाद उनकी चुप्पी से ही यह सवाल उठता है कि आखिर इतना सन्नाटा क्यों है?

सरकार के लिए यह स्थिति कष्टप्रद अवश्य होगी। जब विपक्ष समाप्त हो जाता है तो जनता विपक्ष का काम करने लगती है और जनता को जनता जनार्दन कहा जाता है अर्थात ईश्वर। अब उससे कैसे लड़ेगी सरकार?

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