कमलेश भारतीय जी हां । कवि या रचनाकार को अपने लिए नहीं दूसरों के लिए ख्वाब बुनने होते हैं यानी समाज के लिए । वह स्वार्थ से बहुत ऊपर होता है । मानव मन के भाव बेशक रेशम जैसे बहुत नर्म, नाजुक और,मुलायम होते हैं लेकिन कविता में उतर कर ये समाज के लिए संदेश देते हैं । अपने जीवन में आई भावों की रेशम जैसी रस्सियाँ ही धीरा खंडेलवाल के काव्य संग्रह रेशमी रस्सियों की भाव भूमि हैं , आधार हैं । सृजन की भूमि हैं । जब जब धीरा खंडेलवाल की कविताएं पढ़ता हूं तब तब एक उन्मुक्त लेकिन सजग प्रहरी पाता हूं । लड़कियां कविता हो या फिर लक्ष्य धूमिल या फिर बदनसीब लड़कियां इनकी सजगता और सहजता की प्रमाण हैं । अकसर कविता में एक कल्पना की है कि पुरूषों की तरह महिलाओं के लिए भी हर शहर , हर चौपाल और गांव में सिर्फ महिलाओं के लिए होते चौपाल और चाय के टी स्टाल । रौनक रहती सांझ सकारेया किसी भी वक्तजहां जमा हो जातींस्त्रियां जब तबठहाकों से गूंज उठताचौपाल का चबूतरा ,,,, कवि जैसे आइना होते हैं , तभी तो धीरा कहती हैं :हम आइना हैंसंभल कर गुजरनाहमारे सामने सेअक्स तुम्हारामेरे दिल में उतर जायेगा ,,, बिल्कुल सही कहा । हमारी खुशी की चाबी हमारे पास है लेकिनवो कहते हैंमेरी खुशी की चाबीहै उनके पासहंसी आती है मुझेचाबी का भ्रमउन्हें कैसे आया ?समाज के सामने कैसे रहना व दिखना है ?दुख हमारे भीतर कितना भी होचेहरा रखना हैखिला खिला,,,,,,,,,,अच्छा ही हुआजो न कुछ कहाशब्दों का स्वाभिमानसुरक्षित रहा ,,,,,,,,,,लो फिर उड़ गयी नींदजा बैठीउलझनों के नीड़ मेंउधेड़ने लगी यादों के धागेपरेशानियों की भीड़ में ,,,,आप धीरा खंडेलवाल की कविताओं मे से गुजरो तो बचपन , लडकियां और समाज का चेहरा आसानी से दिख जायेगा । कविता की चिंताएं और सार्थकता भी मिल जायेगी । जारी रखिए लिखना । बधाई । धीरा खंडेलवाल जी । Post navigation शहादत का दिन और हम यह लोकतंत्र की कैसी मान मर्यादा ?