भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

संपत्ति क्षति वसूली विधेयक विधानसभा में प्रस्तुत होने के पहले से ही चर्चा में आ गया और पिछले दो दिन से तो हरियाणा की संपूर्ण राजनीति इसी पर केंद्रित होकर रह गई है। प्रश्न उठता है कि आखिर इतने वर्षों के बाद इस विधेयक की आवश्यकता क्यों आन पड़ी? और जवाब भी सीधा है कि किसान आंदोलन के कारण।

किसान आंदोलन जब आरंभ हुआ था, तभी हमने लिखा था कि हरियाणा की राजनीति में विपक्ष नहीं है और वह किसान आंदोलन के जरिये अपना जनाधार बढ़ाने की चेष्टा करेगा और हुआ भी वही। विपक्ष में इनेलो और कांग्रेस के नाम लिए जा सकते हैं और दोनों ही खुलकर किसानों के समर्थन में आए हुए हैं। दूसरी ओर जाट राजनीति के चलते जो निर्दलीय विधायक सोमबीर सांगवान और बलराज कुंडू भी अपना जनाधार बढ़ा रहे हैं। ऐसे में प्रश्न यह जरूर उठता है कि इसका लाभ किसको मिलेगा?अनेक राजनैतिक विश्लेषकों से बात कर इस निर्णय पर पहुंचे हैं कि इसका लाभ किसी राजनैतिक दल को मिलने वाला नहीं है। समय और परिस्थितियां शायद किसान आंदोलन से एक नए दल का उदय भी करा सकती हैं। हमारी हरियाणवी राजनीति के दिग्गज, वर्तमान में भाजपा के चौ. बीरेंद्र सिंह से बात हुई। उनका भी यही कहना था कि यह आंदोलन किसानों का है और राजनीतिज्ञों का इसमें कोई एक प्रतिशत भी योग नहीं है। उन्होंने भी कहा कि पंजाब और उत्तर प्रदेश के चुनावों के परिणाम बहुत कुछ तय कर देंगे और उनमें किसी किसान आंदोलन से निकली पार्टी का भी हिस्सा हो सकता है।

हम बात कर रहे हैं हरियाणवी राजनीति की। यहां मुख्य दो दल हैं भाजपा और कांग्रेस। दोनों ही दलों में वर्तमान में कुछ समानताएं नजर आ रही हैं। जैसे दोनों दलों के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और भाजपा वर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर दोनों ही अपने अहम के लिए जाने जाते हैं और दोनों पार्टियों को ही उनके अहम का खामियाजा उठाना पड़ रहा है।

दूसरी बात दोनों ही पार्टियां आंतरिक कलह से जूझ रही हैं। कांग्रेस की कलह तो जगजाहिर है और वर्तमान में जी-23 से भूपेंद्र सिंह हुड्डा की मुश्किलें पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में बढ़ी ही हैं।

तीसरी ओर मुख्यमंत्री मनोहर लाल अभी सर्वे में पाया गया था कि उनकी गिनती नीचे से दूसरे पायदान पर है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री जिनकी गिनती पहले पायदान पर थी, उन्हें तो बदला जा चुका है और मुख्यमंत्री के बारे में भी कयास लगाए जा रहे हैं कि शायद अगला परिवर्तन हरियाणा में ही हो।

मुख्यमंत्री जब अविश्वास प्रस्ताव में भी विजयी हुए, जैसा कि पहले ही दिखाई दे रहा था और अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत करने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कथन भी यही था कि वह केवल मुखौटे उतारना चाहते हैं, सरकार गिराने की बात तो उन्होंने की ही नहीं थी। उसके पश्चात उन्होंने कहा कि मुखालफत से मेरी शख्सियत बढ़ती है। यह एक वाक्य ही यह दर्शाने के लिए काफी है कि वह अंदर से डरे हुए थे। उसके पश्चात जब सत्र समाप्त हुआ तो उन्होंने कहा कि महफिल में चल रही थी मेरे कत्ल की तैयारी, जब पहुंचा तो बोले बहुत लंबी उम्र है तुम्हारी। यह वाक्य भी दर्शाता है कि वह इसे अपनी निजी हार या जीत से जोडक़र ले रहे हैं। अत: कह सकते हैं कि दोनों दलों के मुखिया ही अपने आपको ही पार्टी समझते हैं।

इधर कुछ यह भी अफवाहें सुनी जा रही हैं कि भाजपा के कुछ सांसद पार्टी छोड़ सकते हैं। लगता तो नहीं लेकिन अफवाहों में भी कहीं कुछ तो होता ही है।

इधर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए थे ओमप्रकाश धनखड़। आते ही बड़ी उम्मीदें थीं और उनका कहना था कि हफ्ते-15 दिन में मैं अपनी कार्यकारिणी बना लूंगा। कभी कोरोना, कभी विधानसभा उपचुनाव, कभी निकाय चुनाव तो कभी विधानसभा सत्र करते-करते इतना समय बीतने के बाद भी कार्यकारिणी गठित नहीं हुई है और यही स्थिति कुछ मुख्यमंत्री के साथ है। लगभग डेढ़ वर्ष होने को आया, न तो ये अपना मंत्रीमंडल पूरा कर सके हैं और न ही चेयरमैनों की नियुक्ति।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कहा जाता है कि पार्टी में कहीं असंतोष न बढ़ जाए, इसलिए इन कार्यों में देरी हो रही है।

अभी विश्लेषकों का कहना है कि दो मई को पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के पश्चात हरियाणा की राजनीति में भी कोई बहुत बड़ा धमाका हो सकता है। जो लोग मोदी की लोकप्रियता भुनाने आए थे, वे लोकप्रियता जाते देख अपना दूसरा रास्ता ढूंढेंगे।

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