और वो चाहते हैं कि इन आंसुओँ पर यकीन हो क्योंकि रोने का नाटक करने में माहिर है भाजपा वाले।
– पैररल वर्ल्ड में नेता वह है, जो सार्वजनिक रूदन करता है। 
– अविश्वास प्रस्ताव के चलते अपनी कुर्सी पर संकट देखते ही खट्टर रो पड़ा।
– ये सियासी घड़ियाल किसी के प्रति संवेदना के चलते नहीं रोते। “इस तरह अपने गुनाहों को धो देता है, वह जब भी फंसता है रो देता है।”

अशोक कुमार कौशिक

अमूमन सार्वजनिक जीवन के शीर्ष पर बैठे लोग भावनाओं, भय और आंतरिक टूट का प्रदर्शन करने से बचते हैं। केनेडी की मौत के वक्त जैकलीन एक बड़ा काला चश्मा लगाए दिखती हैं। हाव भाव उनकी निराशा नही छुपा पाते, मगर आँखों के आंसू दुनिया देख नही पाती।

कहा जाता है कि जब लता मंगेशकर ने नेहरू के सामने “जरा आंख में भर लो पानी” का लाइव कन्सर्ट किया था, नेहरू आंख पोंछते दिखाई दिए। शायद चीन से अभी अभी वाटरलू हारे नेपोलियन की आत्मा कुछ दरक चुकी थी। गांधी के हत्या के वक्त भी उनके जार जार रोने की बातें लिखी गयी हैं। पर नेहरू की रोती हुई तस्वीरें सुलभ नही। 

इंदिरा के जीवन का सबसे बड़ा झटका बेटे संजय की मौत रही। एक तस्वीर में वह राजीव के साथ खड़ी दिखती हैं, चश्मा नही है, सो आंख और चेहरा दर्द को साफ बयान कर रहा है। मगर ज्यादातर वक्त आंख पर काला चश्मा, और संयत भाव रहे। सुबकती हुई इंदिरा हमने नही देखी। 

सोनिया इन मायनो में असल आयरन लेडी है। सास ने बांहों में दम तोड़ा, पति की आखरी शक्ल देखने लायक न छोड़ी गई। एक तस्वीर है, जिसमे वह राजीव के शरीर के समीप गुमसुम बैठी है। मगर काला चश्मा है। उन कमजोर लम्हों में भी आंसुओं को रोके रखा। 

प्रियजन को खोने के दर्द की कल्पना कीजिये। और फिर रोती हुई योगी की पुरानी तस्वीरें देखिये। कभी संसद में रोता हुआ ये शख्स आतंकित था, पुलिसिया अत्याचार से। वह विशेष सदन का सदस्य होने के नाते विशेष संरक्षण चाहता था। विशेष होते हुए भी विशेष ट्रीट न किये जाने का दुख था। वह इस दुख में जार जार रो रहा था। वक्त ने उसे अब मौका दिया है, जिसमे वह पूरे प्रदेश को जार जार रुला सकता है। रुला भी रहा है। 

जिस राज्य से चुनकर एक प्रतिनिधि आता था। उस राज्य को आपने समाप्त कर दिया। उस राज्य का राज्य होने का दर्जा ही आपने छीन लिया। फिर उस प्रतिनिधि के सदन से विदाई समारोह पर मोदी आंसू बहा रहे थे। क्या ये आंसू उस राज्य के लोगों और उनके प्रतिनिधियों का अपमान नहीं है। और आप चाहते हैं कि इन आंसुओँ पर लोग यकीन करें। ये आंसू उस राज्य के आम लोगों में भरोसा पैदा कर देंगे। 

दूसरा शख्स अपने गुरु के सम्मान में फफक रहा है। वही गुरु, जिसे आने वाले वक्त में दर-बदर करने वाला है। अर्श से नोचकर फर्श पर फेंकने वाला है। 

– यहां नेता वह है जो रोता-रुलाता है।

अब बात करते हैं ताजा रुदन का। मोदी और योगी की तरह रोने का नाटक कल हरियाणा विधानसभा में भी हुआ। आंदोलन करते हुए 250-300 किसान मर गए, खट्टर नहीं रोया। लेकिन अविश्वास प्रस्ताव के चलते अपनी कुर्सी पर संकट देखते ही खट्टर रो पड़ा।

जनता के दुख पर हंसने वाले भाजपाई अपनी कुर्सी पर संकट देखकर रो देते हैं। ये अपनी कुर्सी के लिए रो देंगे। अपनी कुर्सी के लिए रुला देंगे। कुर्सी के लिए जनता की राह में गड्ढे खोद देंगे, कील कांटे बिछा देंगे। पानी की बौछार करा देंगे। लाठी चला देंगे। कुर्सी के लिए जनता को आतंकी बता देंगे। पाकिस्तानी चीनी बता देंगे। विदेशी षडयंत्र में शामिल बता देंगे। दंगा करा देंगे। उल्टा पीड़ितों को फंसा देंगे। मुकदमे लाद देंगे। टॉयलेट का पानी रोक देंगे। पीने का पानी रोक देंगे। गुंडे भेज देंगे। बवाल करा देंगे। लेकिन जब जनता एकजुट हो जाएगी, इनका गुन काम नहीं करेगा तो किसी मंच पर या सदन में रो देंगे।

ये सियासी घड़ियाल किसी के प्रति संवेदना के चलते नहीं रोते। किसी महापुरुष ने सच ही कहा है- “इस तरह अपने गुनाहों को धो देता है, वह जब भी फंसता है रो देता है।”

खट्टर ने रोने का बहाना भी बनाया तो ये कि कांग्रेस की महिला विधायकों ने ट्रैक्टर खींचा, मुझे बड़ा बुरा लगा। इसी महिला दिवस पर हजारों हजार महिलाएं अपना घर-बार छोड़कर दिल्ली की सीमा पर इकट्ठा हुईं, तब खट्टर का ज़मीर नहीं जागा। दर्जनों घर उजड़ गए, खट्टर को जरा भी बुरा नहीं लगा।

विधानसभा में रोने वाले खट्टर का ही एक मंत्री कुछ दिन पहले किसानों की मौत के सवाल पर ठहाका मारकर हंस रहा था कि मौतें तो होती रहती हैं। तब खट्टर के आंसू नहीं आये आये थे कि अपनी जनता की मौत पर जनता का प्रतिनिधि ठहाका कैसे लगा सकता है?

किसी को रोते देख हृदय द्रवित होता है, लेकिन खट्टर जैसा नेता रो दे तो एहसास होता है कि आंसू जैसी नाजुक चीज के साथ भी अश्लीलता बरती जा सकती है। सबसे अश्लील तो ये था कि खुद के रोने का वीडियो भी खुद ही शेयर कर दिया। नौटंकी कहीं के!

 – खट्टर बाबू, तब ना रोए या रोते आप?

अब लोग खट्टर से पूछने लग गए हैं कि कलानौर विधायक शकुंतला खटीक द्वारा ट्रेक्टर खींचने पर विधानसभा में रोने के डोंडरे करने वाले आप वही हो ना जिसने 2014 में आते ही तमाम किसान जातियों की महिलाएं, ठिठरती ठंड में थानों में लाइन-हाजिर करवा दी थी, खाद के कट्टों के लिए? तब नही रोए आप? सुना है दिल्ली बॉर्डर पर धरने पर बैठी किसान-मजदूर महिलाओं के टॉयलेट्स तक जैसी बेसिक सुविधाएँ आपने उठवा दी थी? तब नहीं रोना आया आपको, तब नहीं आत्मा कांपी आपकी?

 जब भी कहीं किसी दलित/ओबीसी लड़की का रेप या अपहरण होता है तो ऐसे व्यवहार करते हैं आप जैसे ही लोग जैसे वह हिन्दू ना हो के किसी अन्य धर्म या गृह की हो? तब नहीं रोते आप?  ये रोज-रोज औरतों पे बीजेपी-आरएसएस के ही छुट्टे सांडों के जब एमएमएस वायरल होते हैं, तब नही रोते आप? अब आप नारी के सम्मान पे झुठे आंसू बहाते।   

म्हारे यहाँ ट्रेक्टर तो क्या; मैडल खींच ल्यावें छोरी| तो मैडम में हाँगा था तो खींच दिया, विधायक हैं वो कोई आम नागरिक नहीं कि किसी के दबाव या झुकाव में ऐसा किया हो। बताओ, स्टेट में जब इतनी पीड़ छिड़ी हो, ऐसे में इस महारथी को झूठा रोना ही सूझा। 

– और वो चाहते हैं कि इन आंसुओँ पर यकीन हो… 

दिल्ली की सीमाओं पर किसान 26 नवंबर से धरने पर बैठे हैं। सिंघू बार्डर, टीकरी बार्डर, गाजीपुर बार्डर, शाहजहांपुर बार्डर, पलवल, रेवाड़ी, गुड़गांव, ढांसा सभी सीमाओँ पर लाखों किसान लगातार एक उम्मीद-एक आस पर अपना घर बनाए हैं। बच्चे, बूढ़े, बुजुर्ग, जवान, महिलाएं। दादियां-नानियां-दादा-बाबा-नाती-पोते। सब। इनमें से बहुतों की उम्मीद टूट रही है। बहुतों की हिम्मत जवाब दे रही है। बहुतों को बीमारियों ने जकड़ रखा है। इस आंदोलन में शामिल दो सौ से ज्यादा किसान अब तक मौत का शिकार हो चुके हैं। कुछ ने आत्महत्या कर ली। कुछ बीमारियों से मर गए। लेकिन, उनके लिए क्या किसी ने लोकसभा या राज्यसभा में आंसुओं के सैलाब देखे हैं। 
क्या ये इतना मुश्किल है। भारतीय जनता के विरोध-प्रदर्शनों पर अंग्रेज भी तमाम कानूनों को वापस लेने पर मजबूर हो गए थे। बंग भंग आंदोलन इसका सीधा उदाहरण है। लेकिन, क्या यह सरकार अंग्रेजों से भी ज्यादा अहंकारी और क्रूर है। 

पूरी तन्मयता से इस लोकतंत्र को सर्कस मे तब्दील किया जा रहा है। इसे अप्रासांगिक बनाया जा रहा है। ताकि, इस पर लोगों का भरोसा खतम हो जाए, लोग इस पर उम्मीद न रखें। फिर जब इसे खतम किया जाए तो लोगों को ज्यादा दर्द भी न हो। 

आप लोग बहुत भावुक हैं भाजपा वालों। लेकिन, आपके आंसुओँ के दायरे में ये लाखों किसान नहीं आते। उनके हिस्से में तो आपकी कुटिल मुस्कान और आंदोलनजीवी का तमगा ही आता है। वे आज भी आपकी आंखों की किरकिरी बने हुए हैं। आपको चुभ रहे हैं। नौटंकी कहीं के!

यह भाव, यह योजना, सार्वजनिक रूप से फफकते वक्त, दिल और दिमाग मे न रही होगी, यकीन करना कठिन है। तो कैमरों के सामने पोडियम पर यह रूदन बनावटी था। हम इस रूदन पर खुद फफक पड़ते हैं। भरे दिल और भरे गले के साथ हम रूदन करते नेता के साथ खड़े हैं। रूदन प्रेमी राष्ट्र को खुद सा नेतृत्व मिला है। हम नए युग, नए वर्ल्ड में प्रवेश कर गए हैं। 

कोई लिखे या न लिखें लेकिन इतिहास इन बातों को दर्ज कर रहा है….