एचएसवीपी

हरियाणा की भाजपा सरकार ने विभागों- शहरों के नाम बदलने में जितनी तेजी और मुस्तैदी दिखाई उतनी तेजी उनको कायाकल्प करने में नहीं दिखा पाई। जैसे कि हरियाणा अर्बन डवलपेंट एथारिटी-हुडा का नाम अब एचएसवीपी कर दिया गया है। ऐसा लगा था कि इसका नाम बदलते ही इस संस्था के दिन फिर जाएंगे,लेकिन अफसोस ऐसा हो नहीं सका। हुआ ये है कि यहां सरकार ने या तो जरूरत से ज्यादा चटक या आरामपरस्त अफसर लगा दिए या फिर जरूरत से ज्यादा नैगिटिव और सुस्त अफसर जमा दिए। दोनों ही स्थिति में नुकसान एचएसवीपी को हुआ, हालांकि कुछ अफसर जरूर माल पानी बना गए। खुद को समृद्ध बना गए। आईएएस अफसरों के हाल ही में हुए तबादले में सरकार ने फिर से एचएसवीपी के सीए विनय सिंह को बदल कर यहां अजित बाला जी जोशी को तैनात कर दिया है। विनय सिंह ने यहां काम को समझना ही शुरू किया था कि उनकी बदली हो गई। उम्मीद है कि नए सीए अजित बाला जी जोशी के कार्यकाल को हरियाणा सरकार स्थायित्व प्रदान करेगी ताकि वो 13हजार करोड़ रूपए के घाटे में चले रहे हरियाणा की इस प्रीमियर ओर्गनाइजेशन को संकट से उबारने में कुछ ठोस योगदान दे सकेंगे।

कार्यभार संभालने के साथ ही जोशी को ये काम तो कर ही लेना चाहिए कि एचएसवीपी के अंदर और बाहरी विशेषज्ञों से इस संस्थान के अच्छे दिन वापस लाने के लिए सुझाव आमंत्रित करने चाहिए। उन सुझावों का एक एक्सपर्ट कमेटी से अध्ययन करवा कर एक रिपोर्ट तैयार करवा लेनी चाहिए। सरकार में भी शीर्ष स्तर से भी उनको हरी झंडी मिल जाए कि कौन कौन से काम, कैसे कैसे और कब तक निपटाने हैं ताकि एचएसवीपी की गाड़ी को दोबारा पटरी पर लाया जा सके। इसके लिए उनको इस विभाग में पहले सेवाएं दे चुके कुछ पूर्ववर्त्ती सीए और पहले के विभागीय प्रशासकीय सचिवों के अनुभवों का भी लाभ लेना चाहिए। वित्त और इंजीनियरिंग विभाग के मौजूदा और रिटायर्ड लोगों से भी सलाह लेना उचित रहेगा। इस मसले पर हमने जो इधर उधर से जो पड़ताल की है उसके आधार पर कहा जा सकता है कि एचएसवीपी को पटरी पर लाना मुश्किल नहीं है। गुड़गामा समेत विभिन्न शहरों में एचएसवीपी की जमीन पर नाजायाज कब्जे हो रक्खे हैं। इन कब्जों को छह महीने के भीतर खाली कराने का काम युद्ध स्तर पर किया जाना चाहिए।

एक अनुमान के अनुसार गुड़गामा के एक से 57 सेक्टर तक में ही करीब 1000 एकड़ जमीन पर अवैध अतिक्रमण है। इस जमीन का बाजार भाव करीब 7000 से 8000 करोड़ के करीब है। ये तो सिर्फ अकेले गुड़गामा का ही मामला है। अगर प्रदेश भर में एचएसवीपी की जमीन पर अवैध कब्जों की गणना की जाए तो ये तय मानिए इन कब्जों को हटवाने और इस जमीन को बेचने भर से एचएसवीपी न केवल अपने 13हजार करोड़ के घाटे की भरपाई पूरी कर सकता है,बल्कि एक झटके में फायदे में आ सकता है। यूं तो इस मसले पर कहने-करने-बताने-सुनाने-जताने के लिए काफी कुछ है, लेकिन अभी के लिए इतना ही। अब देखना है कि तेज तर्रार अजित बाला जी यहां क्या कुछ कर जाते हैं। कितना रंग जमाते हैं। क्या गुल खिलाते हैं। उनके सामने विराट चुनौतियों पर इतना ही कहा जा सकता है:

गुजरने को तो हजारों ही काफिले गुजरे
जमीं पर नक्श-ए-कदम बस किसी किसी का रहा

इंटरनैट

जैसा कि अब के युग में हो गया है कि पत्रकार निष्पक्ष न होकर सियासी दलों के खंूटे से बंध गए हैं। जो पत्रकार भाजपा की डुगडुगी बजा रहे है वो बजा ही रहा है। चाहे पैट्रोल-डीजल की कीमत 200 रूपए लीटर हो जाए,लेकिन इन भाजपाई पत्रकारों ने ये ही कहना है कि अगर मोदी जी ने कीमत बढाई है तो कुछ अच्छा ही होगा। राष्ट्र हित में ही किया होगा। इसी तरह से जो पत्रकार विपक्ष के खंूटे से बंधे हैं उन्होंने मोदी सरकार अगर कभी कोई ठीक काम भी कर दे तो उसकी निंदा ही करनी है।

अब किसान आंदोलन का ही किस्सा लें। मोदी जी कह रहे हैं कि वो किसानों से बातचीत करने के लिए लालायित हैं और उनकी पुलिस किसानों की राह में कील बिछाने में लगी हुई है। इंटरनेट भी कई दिनों तक बंद रक्खा गया। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में सरकार ने वर्ष 2018 में 134 दफा इंटरनैट बंद किया। ये कार्यक्रम कर के ऐसा करने वाले देशों में भारत पहले स्थान पर है,जबकि पाकिस्तान दूसरे स्थान पर है। हालांकि भारत और पाकिस्तान में फासला बहोत ज्यादा है। पाकिस्तान में वहां की सरकार ने महज 12 दफा इंटरनैट बंद किया। उसके बाद ईरान और यमन में सात-सात दफा, ईथोपिया और बांग्लादेश में पांच-पांच दफा इंटरनैट बंद किया गया। कांगो में तीन और रशिया में दो दफा इंटरनैट बंद किया गया। इंटरनैट आज के युग में बिजली-पानी की तरह ही अनिवार्य है। सरकार किसी भी पार्टी की हो,लेकिन जो सरकार ऐसा शौर्य दिखलाए वो जनता की कितनी शुभचिंतक होगी इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है।

भाजपा और अमित शाह

बहोत से भाजपाईयों को लगता है कि गृह मंत्री अमित शाह की चतुर रणनीति के आगे टिकने की हैसियत किसी की नहीं है। इसीलिए ये लोग हैदराबाद नगर निगम में भाजपा की सफलता का श्रेय वहां अमित शाह के चुनाव प्रचार करने को ही देते हैं। इनका मानना है कि तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद नगर निगम में भाजपा के बढिया प्रदर्शन के बाद पार्टी वहां के विधानसभा चुनावों में है भी चमत्कारी प्रदर्शन करेगी। तेलंगाना में पहली दफा भाजपा की सरकार बनेगी। अगर अमित शाह इतने ही बड़े चाणक्य हैं तो उनको एक दफा पंजाब में हो रहे कुछ स्थानीय निकाय चुनावों में प्रचार के लिए वक्त निकालना चाहिए। पंजाब में भी कभी भाजपा की अपने बूते पर सरकार नहीं बनी है। और नहीं तो मोहाली नगर निगम में ही एक आध में वार्ड में तो शाह को जनसभा कर ही लेनी चाहिए। अगर अपनी व्यस्तताओं की वजह से शाह का साक्षात तौर पर मोहाली के लोगों को दर्शन देना संभव न हो तो उनको वर्चअुल रैली कर अपना संदेश पहुंचा देना चाहिए। भाजपा वाले तो आईटी के काम में भी माहिर हैं। मान कर चलिए कि इनकी वर्चुअल रैली का इम्पैक्ट भी जबरदस्त होगा। हो सकता है कि शाह के पराक्रम के जरिए भाजपा पंजाब में भी पहली बार अपनी सरकार बना ले। इस हालात पर कहा जा सकता है:

तुम अपने मशवरों से बाज आओ
वर्ना हम किसी दिन मान लेंगे

देवेंद्र बबली

टोहाना से जजपा के विधायक देवेंद्र बबली पिछले कुछ समय से चुप चुप से हैं। अब पता नहीं उनको चुप करवाया गया है या वो खुद ही इतने सयाने हो गए हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे सुभाष बराला को करीब 50 हजार वोट से हराने के बाद बबली के समर्थकों को लगता था कि उनको हरियाणा में कैबिनेट मंत्री बनाया जाएगा। बबली तो अभी वहीं के वहीं हैं,लेकिन बराला को सार्वजनिक उपक्रम ब्यूरो के चेयरमैन का सरकारी पद जरूर मिल गया है। बबली ने शुरू शुरू में कुछ दिन सरकार के खिलाफ तेवर भी दिखाए। विधानसभा के अंदर और बाहर अपनी आवाज बुलंद की। फिर वो एकाएक चुप से हैं। ऐसा माना जाता है कि उनको कहा गया है कि अगर वो चुप रहेंगे तो उनको सरकार में कुछ पद मिल सकता है और अगर मुखर रहेंगे तो इसी तनख्वाह पर काम करना पड़ेगा। पहले बबली ने बोल कर देख लिया और उनको कुछ नहीं मिला। अब वो इसलिए चुप हैं कि शायद चुप्पी से कुछ बात बन जाए। मंत्रीपद मिल जाए। इस हालात पर कहा जा सकता है:

मेरी हालत देखिए और उनकी सूरत देखिए
फिर निगाह-ए-गौर से कानून-ए-कुदरत देखिए
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