बात विचारों की नही संस्कारो की है।

– किसान आंदोलन से कुछ तो बदलेगा। कितना बदलेगा, ये इस बात पर निर्भर करेगा कि युवा छदम हिंदुत्व, छद्म राष्ट्रवाद की छाया से निकल पाता है या नहीं? 
– जिन्हें किसानों के ऋण माफी- सबसिडी पर ऐतराज है, पर टैक्स के पैसे पर नेताओं द्वारा की जाने वाली अय्याशी पर एतराज नहीं है।

अशोक कुमार कौशिक

रेल में यात्रा के दौरान फोन आ गया तो सभी का ध्यान मुझ पर चला गया, क्योंकि मैंने पिछले 15 दिनों से कॉलर ट्यून “मोदी जी थारी तोप कड़े हम दिल्ली आगे” लगा रखी है। फोन पर बात खत्म की तो एक भक्त किस्म के सज्जन तपाक से बोले- भाई ये आंदोलन तो आढ़तियों ने खड़ा कर राख्या है वो किसान नही है, इसमे आप भी समर्थन में हो क्या? इसके साथ ही वह तर्क देते हैं कि लोगों को पैसे देकर इकट्ठा किया जा रहा है और विदेशों से इसकी फंडिंग हो रही है।

मैं थोड़ी राहत की सांस ली कि चलो अब खालिस्तानी, पाकिस्तानी, देशद्रोही, हिंदू विरोधी व जाट वैगरह पर नही बोलना पड़ेगा।  मैंने भी पूछ लिया –“कैसे?? आढ़ती कौन होते है? तो सज्जन तुरन्त खुश होकर तपाक से बताने लगे..आढ़तियों की कमाई ठप हो गयी ये किसानों का शोषण करते थे…फलाना… धिकडा

मैंने कहा हो सकता है आप सही कह रहे हो पर जब आप खुद ही कह रहे है कि आढ़ती किसानों का शोषण करते है तो वे  किसानों के लिए एमएसपी की मांग क्यों करेंगे! और तो ओर वे क्यों एमएसपी से कम खरीद पर सज़ा देने वाले कानून बनाने की मांग करेंगे,वे साहब सकपका गए।
फिर बोले देखो 26 जनवरी को कितना बवाल मचाया। मैंने कहा है मुख्य आरोपी दीप सिंघु को तो भगा दिया और वो आज भी फेसबुक पर लाइव कर रहा है लेकिन इनका ही आदमी है इसलिए नही पकड़ रहे।अब भाई सहाब उखड़ गए और तुरन्त नेहरू गांधी पर आ गए..जी भर कोसा ओर गोडसे की खूब तारीफ की उसके “किस्से ” भी सुनाए।

जब चुप हुए तो मैंने साधारण सा प्रश्न किया बच्चे है आपके ? बोले 2 बेटे है? कितने बड़े? वह बोले एक 5 साल एक 7 का। मैंने कहा अभी तो खैर स्कूल खुल गए होंगे पर जब कभी स्कूल में फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता में क्या बना कर भेजना पसंद करोगे उन्हें….भगत सिंह आज़ाद गांधी या गोडसे??? अब वे सत्र हो गए। अब मैं थोड़ा जोर से बोला जिस दिन आप अपने बच्चे को गोडसे बनाकर स्कूल में भेजने की हिम्मत कर दोगे मैं गोडसे को पूजना शुरू कर दूँगा। मेरा नम्बर ले लीजिए नाम ये ….है, हरियाणा से हूँ।

बात अब सचिन तेंदुलकर और रेहाना के ट्वीट पर शिफ्ट हो चुकी थी। आसपास के 5-6 लोग अभी भी मुझे ही देख रहे थे।  मैंने कहा सर बिल आपने नही पढ़े होंगे। मैं हमेशा एक कॉपी ले कर चलता हूं। वास्तव में पढ़ने की इच्छा है तो ले लीजिए। 

तभी एक बुजुर्ग भी बोल पड़े की इन लोगों ने तो किसानों को अन्नदाता ही मानने से मना कर दिया। कहते है पैसे देकर खरीदते है। मैंने कहा हम्म .. वे फिर बोले ये बात कोई सामाजिक आदमी नही बोल सकता जो किसानों को ऐसा बोलते है वो जवानों को भी यही बोलते है एहसान नही करता नौकरी करता है सैलरी लेता। यंहा तक कि ऐसे लोग अपने माँ बाप को भी यही बोलते है कि हमे पालने पोसने में कष्ट उठाए तो कोई एहसान नही किया । आपके मॉ बाप ने भी आपको पाला है।

मैंने उनको तर्क के साथ समझाते हुए कहा कि आरएसएस के बगैर कोई आंदोलन इतना तेज, इतना तीखा भी हो सकता है, ये देश ने देख लिया है। ये भी देख लिया कि जब जनता के हितों पर चोट होती है तो वो उस सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर जाती है, जिसने उसे दो बार भारी बहुमत से जिता कर भेजा।  2019 में मोदी सरकार की वापसी इसलिए जरूरी थी कि जो भ्रम मोदी सरकार ने बना रखा है, वो टूट जाए। अपनी हर नाकामी को हमेशा हिंदुत्व की छतरी से नहीं ढका जा सकता। 

बहस में ही कूद पड़ा उनका कहना था-‘ठीक है, राम मंदिर बन रहा है, 370 हट गई, तीन तलाक़ बंद हो गई, इसमें हमारा क्या फायदा है? रोज़गार कहां है? हेल्थ पर कितना काम हुआ है? शिक्षा का स्तर क्यों गिर गया है? पेट्रोल डीज़ल कहां जा पहुंचे हैं। महंगाई आसमान छू रही है। इस युवा ने भी भाजपा को ही वोट दिया था। युवा ने ऐसा भी बहुत कुछ कहा, जिसे लिखा नहीं जा सकता। युवाओं का ये आक्रोश क्या राजनीति को बदल देगा? जो युवा कल तक मोदी मोदी कर रहा था, क्या उसका भ्रम टूट रहा है? ग्राउंड  पर जाकर युवाओं से बात करेंगे तो कुछ बदलता दिखेगा।

किसान आंदोलन से कुछ तो बदलेगा। कितना बदलेगा, ये इस बात पर निर्भर करेगा कि युवा छदम हिंदुत्व, छद्म राष्ट्रवाद की छाया से निकल पाता है या नहीं? अगर निकला तो भाजपा के लिए मुश्किल हो सकती है। अब देखना होगा कि अपने छीजते जनाधार को बचाने के लिए चाणक्य अपने तरकश से कौन सा तीर चलाएंगे?

इस बहस में एक और सज्जन कूद पड़े और उन्होंने तर्क रखा की बहुत सारे सत्ता समर्थक लोगों को किसान को अन्नदाता कहे जाने पर ऐतराज है और बदले में कुछ दिनों से आईटी सेल के वायरल ट्रेंड वाले कॉपी पेस्ट पोस्ट वह बड़े भावुक होकर डाल रहे हैं कि मैं भी हूं करदाता। उन सब की जानकारी के लिए इतना बता दूं इस देश की आबादी का 68% हिस्सा प्रत्यक्ष तौर पर किसान है और आज के समय में प्रत्येक व्यक्ति लगभग प्रत्येक वस्तु पर टैक्स देता है। इनकम टैक्स कितने प्रतिशत लोग देते हैं यह सभी जानते होंगे, परंतु देश की 68% से अधिक जनसंख्या जो कि किसान है प्रत्येक वस्तु पर अप्रत्यक्ष कर अवश्य देती है।

इसलिए देश का सबसे बड़ा करदाता भी देश का अन्नदाता ही हुआ। जिन्हे किसान को सब्सिडी देने पर ऐतराज है ना, वो जरा पश्चिमी देशों का अध्ययन कर लें। वहां पर हमारे देश से कई गुना ज्यादा सब्सिडी किसानों को दी जाती है। यह वही सत्ता की खुशामद करने वाले लोग हैं जिन्हें छात्रों को सस्ती शिक्षा पर दी जाने वाली सब्सिडी से ऐतराज है, जिन्हें किसानों का ऋण माफ करने पर ऐतराज है जिन्हें गरीबों को सस्ता राशन दिए जाने पर ऐतराज है, पर अपने टैक्स के पैसे पर नेता और उनके चमचों द्वारा की जाने वाली अय्याशी पर एतराज नहीं है। वह दृढ़ता से बोले कि लोग जितना मर्जी छाती पीट ले किसान अन्नदाता था और अन्नदाता ही रहेगा। हां शायद बाद में ऐसे लोगो को अपने कहे पर शर्मिंदगी जरूर होगी। वैसे गुंजाइश कम है क्योंकि उसके लिए जमीर का आजाद होना जरूरी है जो शायद लोग सरकार को गिरवी रख चुके हो।

ओर ये बात विचारों की नही संस्कारो की है। आढती बोलने वाले सज्जन अब अगले डिब्बे में जा रहे थे।जबकि स्टेशन उनका नही आया।

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