— गाजीपुर बॉर्डर इस वक्त ‘मिनी भारत’ बना, जो साबित कर रहा है कि धर्म और जाति की दीवारें दरक रही हैं।

अशोक कुमार कौशिक 

इस लेख में हम किसान आंदोलन और कृषि कानून पर विस्तार से बता रहे है । अगर आप इतिहास बनते हुए देखना चाहते हैं तो आपको गाजीपुर बॉर्डर जाना चाहिए। यहां इतिहास लिखा जा रहा है एक किसान आंदोलन का, जिसमें हर वर्ग की भागीदारी बढ़ती जा रही है। युवा, महिलाएं, सोशल एक्टिविस्ट, एडवोकेट, प्रोफेसर, डॉक्टर आदि यहां आकर अपनी बात रख रहे हैं। सबका एक सुर है-कृषि कानून वापस होने चाहिए। लोगों के आने का सिलसिला टूट नहीं रहा है। टोलियों में आकर लोग अपनी हाजिरी दर्ज करा रहे हैं। गाजीपुर बॉर्डर इस वक्त ‘मिनी भारत’ बन चुका है। यहां हिंदू हैं, मुस्लिम हैं, सिख हैं और ईसाई भी हैं। धर्म और जाति की दीवारें दरक रही हैं। मंच से सर्वधर्म सदभाव की सदाएं गूंज रही हैं। सिखों के लंगर तो चल ही रहे हैं, मुस्लिम भी वेज बिरयानी और जरदा (मीठे चावल) बनाकर लोगों को खिला रहे हैं।

यहां राजनीतिक समीकरण बनते-बिगड़ते हुए भी देखे जा सकते हैं। मुस्लिमों की हाजिरी बहुत कुछ कह रही है। मुस्लिम बुद्धिजीवी मुजफ्फर नगर दंगे को भूलकर आगे बढ़ने की बात कर रहे हैं। यहां कई मुसलमानों ने इस बात को झुठलाया कि मुजफ्फरनगर दंगे में टिकैत बंधुओं की कोई भूमिका थी। मेरठ और मुजफ्फर नगर से पहुंचे कई लोगों का कहना था कि उन्होंने कभी नहीं सुना कि राकेश टिकैत ने मुस्लिमों को मारने-काटने की बात कही है।गाजीपुर बॉर्डर पर इतिहास बन रहा है। जब इस किसान आंदोलन का इतिहास लिखा जाएगा तो यह भी लिखा जाएगा कि जब किसान हुक्मरानों के दर पर दस्तक दे रहे थे, तब कौन कहां खड़ा था? कौन उन्हें खालिस्तानी और देशद्रोही बता रहा था? ऐसा कौन बता रहा था, यह बताने की जरूरत नहीं है।

— किसी का अंधा समर्थन करने के लिए किसी का विरोध ना करे, पढ़े  समझे और फैसला ले।

लगातार हो रहे कृषि कानूनों का विरोध देख सोचा लोगो को इसे समझने जानने कि आवश्यकता है, जैसा कि सरकार का दावा था किसानों की आय दोगुनी करने का उसके चलते यह कानून बनाए गए है किन्तु क्या आप जानते है कि इन कानूनों का विपरीत असर किसानी और खाद्य सुरक्षा पर हो सकता है? तो आइए जानते है विस्तार से को आखिर इन कानूनों का विरोध हो क्यों रहा है।

1-  पहला कानून कृषि ट्रेड एंड फैसिलिटेशन पर आधारित है, अर्थात् जिस तरह से आज ऑनलाइन समान कि बिक्री होती है उसी तरह किसान को भी अपनी फसल बेचने के रास्ते दिए जा सकते है, इस बिल के अनुसार अब किसान अपनी फसल किसी भी राज्य में बिना किसी टैक्स को दिए बेच सकते है, अब इसका विरोध क्यों करना भला तो ठहरिए, १९५० में लागू हुए APMC में किसानों को अपनी फसल बेचने पर क्या वाकई नुकसान होता है, इसका उत्तर जरूर हा में दिया जा सकता है क्योंकि यह लाइसेंस धारी बिचौलिए होते है जिन्हे किसान अपनी फसल बेचता है और फिर बिचौलिए इस फसल को ट्रेड कंपनी या मार्केट के दुकानदारों को बेचता है जिसमे कमाई बिचौलियों की होती है और किसान को सिर्फ उसकी लागत और थोड़ा बहुत ही मुनाफा मिल पाता है। जिस तरह प्रारंभ में ऑनलाइन समान खरीदने पर डिलीवरी फ्री होती थी किन्तु अब नहीं होती है क्योंकि कंपनी धंधा मुनाफे के लिए करती है।

सरकार का पक्ष – इस कानून के आ जाने से किसान अपनी फसल किसी भी राज्य में प्राइवेट मंडियों में बेच सकता है, हालाकि किसानों को अभी भी दूसरे राज्यों में जाकर अपनी फसल बेचने का अधिकार है मगर बिचौलिए सिर्फ अपने लाइसेंस अधिकृत APMC में ही बेच और खरीद सकता है।

विपरीत असर – इस कानून के लागू होने के बाद धीरे धीरे APMC का उपयोग ना होने से उन्हें बंद होने की संभावना है फिर किसानों के पास सिर्फ प्राइवेट मंडी ही बचेगी जहा उसे अपने मन मुताबिक दाम नहीं मिलेंगे और मजबूरी में किसानों को फसल को कंपनी के अनुसार दिए दामो पर बेचना होगा। एक राज्य से दूसरे राज्यों में कई किलोमीटर दूर अपनी फसल ले जाने के बाद खर्चों का वहन किसे करना है यह पता नहीं होगा, सरकार अपने पक्ष में कह रही है कि APMC बंद नहीं होगी मगर इसका कोई लिखित प्रावधान नहीं है। इससे MSP की भी कोई गारंटी नहीं होगी की अगर कोई कंपनी फसल की लागत से कम दाम दे तो किसानों के पास दूसरा कोई रास्ता नहीं होगा अपनी फसल बेचने का। साथ ही राज्यों को मिलने वाला टैक्स भी समाप्त हो जाएगा जो उसे मंडियों के माध्यम से मिलता है।

आम जनता पर असर – मंडियों में काम करने वाले मजदूर, अकाउंटेंट, सफाईकर्मी, ट्रांसपोर्ट से जुड़े लोगों के पास रोज़गार जाने की पूरी संभावना है। जनता को पैकिंग फूड खरीदने के लिए विवश होना पड़ेगा जो कि उसे महंगे दामों में मिलने की संभावना होगी।

2-  कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग – कृषि कानून कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लीगल करके किसानों को अधिकार दे रही है कि जिन फसलों का दाम उसे सही मिले या जिस कंपनी से उसका कॉन्ट्रैक्ट होगा उसी फसल की खेती करे। किसान कॉन्ट्रैक्ट को रद्द कर सकता है मगर कंपनी नहीं कर सकती है।

विपरीत असर – जब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की जाएगी तो ८५ प्रतिशत किसान जो की छोटे किसान है अर्थात् २ एकड़ से कम  के मालिक है या लीज़ पर जमीन लेकर किसानी मजदूरी का काम करते है, जो की बहुत ज्यादा फसल नहीं उगा पाएंगे और उन्हें बड़े किसानों या बिचौलियों के साथ जुड़कर है अपनी फसल को बेचना पड़ सकता है। अगर किसी भी प्रकार का घोटाला होता है तो राजस्व विभाग का SDM ही उनके केस का निर्णय करेगा और राजस्व विभाग का भ्रष्टाचार किसी से छुपा नहीं है, इससे घोटाले बड़ सकते है और किसानों के शोषण कि भी संभावना है। अगर किसान के साथ कोई बेईमानी होगी तो कितने समय में उसका निराकरण होगा। साथ ही मौसम के कारण हुए नुकसान का क्वालिटी पर असर होगा और किसानों को नुकसान होगा उन्हें उस फसल की MSP भी नहीं दी जाएगी जो दाम कंपनी देगी वह लीगल होगा।

आम जनता पर असर – जिन फसलों के दाम किसानों को अच्छा मिलेंगे वे उसी की खेती करेंगे और यह पूर्व में ही फसल को खरीदने का कॉन्टैक्ट होगा जिससे आम जनता को वहीं खरीदना पड़ेगा और इतना ही दाम देना होगा जो कंपनी चाहती है। बड़ी कंपनी में अधिकतर कार्य मशीनों से होते है इससे बेरोज़गारी बड़ सकती है।

3- एसेंशियल, स्टोरेज – सरकार ने इस कानून में अनिश्चित मात्रा तक कंपनियों को स्टोरेज करने की सुविधा दी है वह किसानों से खरीद कर अपने पास स्टोर कर सकती है।

विपरीत असर – इस कानून के जरिए देश में कालाबाजारी बड़ सकती है कंपनिया तय करेगी कि फ़सल को किस दाम पर देश में बेचना है, कंपनियों का एकाधिकार है जाएगा और अधिक भाव देकर जनता को चीजे खरीदना पड़ेगी महंगाई सातवे आसमान पर पहुचनें की संभावना होगी। जिस वर्ष कंपनी के पास स्टोक में पर्याप्त मात्रा में फसल होगी उस वर्ष किसानों को सही दाम ना मिलने की भी संभावना है।

यह बात जरूर है कि APMC या कृषि मंडियों में कमिया जरूर है मगर उन्हें रिफार्म करने की  जरूरत है ना कि दूसरी प्राइवेट मंडियों को लाना। 

आम आदमी और किसानों के तौर पर सोचिए और फैसला कीजिए, क्या यह कानून सही है?

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