भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

सारा देश गणतंत्र दिवस मना रहा है। सभी के मनाने के तरीके अलग-अलग हैं। इस बार जनता में दूसरे प्रकार का माहौल है। देशभक्ति के गानों के स्थान पर किसान आंदोलन की चर्चा भारी है। गणतंत्र दिवस पर सारा देश एक झंडे के नीचे एकत्र होता था परंतु इस बार गणतंत्र दिवस पर किसान आंदोलन के कारण किसान ट्रैक्टर परेड पर अपना झंडा अलग भी लगा रहे है। सरकार कार्यक्रम के सफलतापूर्वक होने पर चिंतित नजर आ रही है। हालांकि यह कहा जा रहा था कि चिंता किसान आंदोलन से है, अब उसमें पाकिस्तान से खालिस्तानी ट्वीटों से चिंता और बढ़ गई है मुख्य कार्यक्रम की भी और किसान ट्रैक्टर परेड की भी।

गणतंत्र दिवस देश के संविधान को याद करने और उसके सम्मान के लिए मनाया जाता है। परंतु इस वर्ष संविधान पर ही चर्चा है। किसानों का कहना है कि सरकार जो जनता द्वारा चुनी जाती है और जनता की इच्छा अनुरूप कार्य करती है, वह जनता की इच्छाओं का ध्यान नहीं कर रही। प्रश्न यह भी उठ रहे हैं कि सरकार संविधान को अपने अनुसार चलाना चाहती है, जबकि जनता से आवाज उठ रही है कि संविधान सरकार से ऊंचा है।

अब बात करें किसान आंदोलन की तो आंदोलन तो बहुत देखे परंतु ऐसा आंदोलन कभी नहीं देखा। यह बात मैं ही नहीं, सारा विश्व देख रहा है। यूं तो हमारे देश के गणतंत्र दिवस की हर वर्ष ही संपूर्ण विश्व में चर्चा होती है परंतु इस वर्ष किसान आंदोलन के कारण कुछ अधिक ही चर्चा में है और सूत्रों के अनुसार अनेक देशों के पत्रकार इस बार का गणतंत्र दिवस कवर करने के लिए आए हुए हैं। तात्पर्य यह है कि सारा विश्व ही इस आंदोलन को बहुत उत्सुकता से देख रहा है और शायद यह विश्व का सबसे बड़ा आंदोलन भी हो तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

इस आंदोलन में सबसे मुख्य और आश्चर्यजनक बात यह है कि सरकार और किसान दोनों ही अपने आपको वार्ता के लिए तैयार बताते हैं। वार्ताएं हो भी रही हैं लेकिन वार्ताओं में संवाद नदारद है। दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी जिद पर अड़े हैं। सरकार का कहना है कि तीनों कानून किसानों के हित में है, जबकि किसानों का कहना है कि पहले कानून निरस्त करो, फिर करेंगे आगे बात।

इस आंदोलन की अब तक विशेषता यह रही है कि इसमें अनुशासन बहुत भली प्रकार बना रहा है। महात्मा गांधी के आंदोलन भी जब कभी बड़े हुए तो कहीं न कहीं जोश में व्यक्ति अनुशासनहीनता और हिंसा पर उतर आते थे परंतु इस आंदोलन में ऐसा नहीं है और सबसे अधिक प्रभावित करने वाली बात यह है कि इस आंदोलन को देश का हर वर्ग साथ दे रहा है, चाहे वह कर्मचारी हों, चाहे व्यापारी हों, चाहे कामगार हो, युवा हों, वृद्ध हों, बच्चे हों, या फिर महिलाएं हों और इस समर्थन को पाकर आंदोलनकारी किसानों और किसान नेताओं के हौसले आसमान छू रहे हैं और उन्हें विश्वास है कि हम अपनी मनवा ही लेंगे।

इस आंदोलन में सरकार के विरूद्ध जितने भी राजनैतिक दल हैं वह किसानों को सहयोग कर रहे हैं। उनकी बात तो यह मानी जाती है कि वह विपक्ष में हैं, सरकार को कमजोर करना उनका काम है परंतु व्यापारी, कर्मचारी और कामगार वे भी इस आंदोलन में अपनी क्षमताओं अनुसार पूर्ण सहयोग कर रहे हैं। उसके पीछे कारण यह भी हो सकता है कि वे कानूनों को किसान के लिए घातक मानते हों और यह भी हो सकता है कि पिछले समय से ये वर्ग भी पीडि़त और शोषित थे तथा इनमें सरकार के विरूद्ध आवाज उठाने की हिम्मत ही नहीं थी। अब उन्हें लगता है कि इनके साथ होकर हम अपनी आवाज भी उठा रहे हैं।अब हरियाणा की ओर देखें तो सरकार आरंभ से ही यह मान ही नहीं रही कि हरियाणा का किसान इस आंदोलन में शामिल है। उनका कहना है कि यह सब कांग्रेस का फैलाया हुआ जाल है। भाजपा की गठबंधन सरकार और भाजपा संगठन दोनों ने मिलकर जनता और किसानों को समझाने पूर्ण प्रयास किए कि ये कानून उनके हित में हैं परंतु क्या कहें। या तो किसान अल्पबुद्धि हैं जो समझ नहीं पा रहे या फिर अध्यापक यानी कि सरकार वह नालायक है, जो समझा नहीं पा रही। या फिर ये कानून किसानों के लिए घातक हैं।

वर्तमान में सरकार की स्थिति यह है कि वह जनता में विश्वास खो चुकी है। मंत्री, मुख्यमंत्री अपनी मर्जी से सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं कर पा रहे। इन परिस्थितियों में भी सरकार और संगठन ने एक दिन कांग्रेस और किसान नेता चढूणी के पुतले फूंकने का कार्यक्रम बनाया पर उस कार्यक्रम का हष्र देख आगे भाजपा के सभी नेता, मंत्री चुप्पी साध गए हैं। सुना तो यह भी जाता है कि इस बात के लिए मुख्यमंत्री को दिल्ली तलब किया गया।

सरकार का डर इस बात से ही प्रकट हो रहा है कि गणतंत्र दिवस समारोह के लिए मंत्रियों के नाम बार-बार बदलने पड़ रहे हैं। राज्यपाल का राजभवन में ही ध्वजारोहण का कार्यक्रम रखा है। अब भी सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि कार्यक्रम में कोई मंत्री नहीं पहुंचा तो वहां के उपायुक्त ध्वजारोहण करेंगे। खैर, गणतंत्र दिवस शांति से संपन्न हो, देश का मान न घटे इसी कामना के साथ।

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