रेखाओं और शब्दों के संयुक्त प्रयास से सुसज्जित संग्रह को मिली सराहना. कवि त्रिलोक कौशिक एवं चित्रकार सुधीर त्रिपुरारि के साझा प्रयास को बताया अनूठा. सुरुचि परिवार का साहित्यिक आयोजन लोकार्पण समारोह, पुस्तक चर्चा एवं काव्य गोष्ठी. “जो मुफलिस है उसे इस बात का अहसास पूरा है कि रोटी बांटकर खाने से अच्छी नींद आती है।”

असमंजस में भीड़ खड़ी है,
लाठी भांजों ,गोली मारो,
तुम पर दाग़ नहीं आएंगे ,
ओ ! जनमानस के हत्यारो।
लेकिन , इतना याद रहे कि
मुर्दे भी करवट लेते हैं।”

कवि के नज़रिये पर विशेष टिप्पणी करते हुए संग्रह से कविताओं के उपरोक्त अंश उद्धृत किये लक्ष्मी शंकर बाजपेयी ने ।” अवसर था रेखांकन व कविताओं से सुसज्जित पुस्तक “लौट आता हूँ ” के लोकार्पण का । कविता संसार के मूर्धन्य रचनाकार बाजपेई जी ने कविता के अन्य पक्षों पर भी बात की ।

उक्त कविता संग्रह मंचासीन अतिथिगण सी. सी. ए. स्कूल के चेयरमैन कर्नल कुँवर प्रताप सिंह, दूरदर्शन के पूर्व निदेशक अमरनाथ अमर , आकाशवाणी के पूर्व निदेशक लक्ष्मी शंकर बाजपेयी , अ. भा. सा. परिषद गुरुग्राम इकाई की अध्यक्ष प्रो. कुमुद शर्मा के कर कमलों द्वारा किया गया । दोनों रचनाकार त्रिलोक कौशिक व सुधीर त्रिपुरारि की मंच पर उपस्थिति उनके लिये गौरव के क्षण थे । यह कार्यक्रम रविवार 24 जनवरी की शाम 4 बजे सी. सी. ए. स्कूल के सभागार में आयोजित किया गया ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कर्नल कुँवर प्रताप सिंह ने संग्रह के दोनों रचनाकारों को बधाई देते हुये कहा , “जहाँ त्रिलोक कौशिक ने शब्दो से अपने भाव व्यक्त किये वहीं सुधीर त्रिपुरारि ने रेखाओं की भाषा का अनूठा प्रयोग किया है ।”

प्रख्यात कवि -विचारक अमरनाथ अमर उक्त संग्रह पर टिप्पणी करते हुए कहा,, “कौशिक जी कविताओं के भीतर और बाहर के अनेक सफ़र करके लौटते दिखे ,वे खाली हाथ ,निराश नहीं लौटे,अंधेरे के सफ़र में भी उजाले के , संभावना के , जिजीविषा के साथ लौटे हैं।”

प्रो. कुमुद शर्मा ने संग्रह के कवर पृष्ठ की विशेष सराहना करते हुये कहा “जब तक संवेदनशीलता बची रहेगी , तब तक जीवन बचा रहेगा । संग्रह की कविताओं में से कुछ पाठक को सीधे कविता में प्रवेश कराती हैं। यदि यह प्रवेश इतना सीधा न हो ,तो और बेहतर हो ।”

उन्होंने कहा, ” भारत भाव, राग और ताल का देश है। कवि इन कविताओं में साहित्यिक, सांस्कृतिक विरासत से गहराई से जुड़ा है। प्रेमचंद ,रेणु, निराला और नागार्जुन से मिलना तो कवि का इन कविताओं में हुआ ही है ,कबीर, मीरा, तुलसी ,सूर सब उनके कविता संसार की जड़ों में ,उनमें समाये हैं।”

संचालन करते हुऐ महासचिव मदन साहनी ने कहा, “मैं कौशिक जी को अब तक मूलतः प्रेम का ही कवि मान रहा था , लेकिन अब लगता है ,उनकी कविता के फलक ने विस्तार पा लिया है। अब उनमें सामाजिक राजनैतिक स्थितियों के भीतर फैले विद्रूप के प्रति आक्रोश की कविताएं अधिक हैं।”

कविता की कुछ अन्य पंक्तियां जिसकी विशेष चर्चा की गई,

“हम कूकर हैं ,पट्टे वाले कूकर हैं
दुम न हुई इसका पछतावा होता है।”
“जब से मैं दुमदार हुआ हूँ, तब से मैं दमदार हुआ हूँ।”
“जो राग ज़िंदगी का गायें ,वे कवितायें
वे कवितायें जीवन की फसल उगाती हैं । “

त्रिलोक कौशिक ने इतना ही कहा ,कवि होने से अधिक महत्वपूर्ण है एक ठीक-ठाक मनुष्य होना। उन्होंने संग्रह से एक दो कविताएं भी पढ़ी।

“मरघट का सामान नहीं हैं कवितायें,
कवितायें जीवन की अनुपम जाती हैं।”
“पद्चिन्हों में चेहरे ढूंढ रहा हूं मैं, चेहरा क्या होगा ,मुझको मालूम नहीं।
रेखाओं में घेरे ढूंढ रहा हूं मैं
घेरा , क्या होगा ,मुझको मालूम नहीं। रिश्तों का व्याकरण नहीं आता मुझको ,अपनों में भी मेरे ढूंढ रहा हूं मैं ,मेरा क्या होगा ,मुझको मालूम नहीं…..”

प्रख्यात चित्रकार सुधीर त्रिपुरारि ने कहा यदि कवितायें बोलती हैं तो रेखायें भी बोलती हैं इसे आधार मानकर कविताओ को अपनी कल्पनाशीलता से कलात्मक रूप देने का साझा प्रयास मैंने इस संग्रह में किया है ।

इसके पूर्व प्रथम सत्र में काव्य गोष्ठी जिसकी अध्यक्षता बाजपेई जी की रही। ममता किरण ,डा गुरविंदर बांगा, मंसूर फरीदाबादी, अजय अक्स, कृष्ण गोपाल विद्यार्थी , नरेंद्र खामोश, हरींद्र यादव, मोनिका शर्मा, विमलेंदु सागर , ए डी अरोड़ा, सुरिन्दर मनचंदा सहित लगभग 25 कवियों ने काव्य पाठ किया।

इस अवसर पर डॉ अशोक दिवाकर, कुलबीर सिंह मलिक , अर्जुन वशिष्ठ, रवि भटनागर, मनोज शर्मा , डॉ मनोज तिवारी, एम के भारद्वाज , शशांक मोहन शर्मा जैसे कई गणमान्य महानुभाव सहित लगभग 80 श्रोता उपस्थित थे ।

संस्था अध्यक्ष डॉ धनीराम अग्रवाल ने आमंत्रित अतिथिगण, उपस्थित कविगण एवं श्रोताओं के प्रति धन्यवाद व आभार व्यक्त किया ।

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