जांच में अब दोनों पक्षों के दस्तावेज ही बोलेंगे कि सच क्या है.
नवाब पटौदी के द्वारा अतीत में 5 लोगों को दी गई थी जिम्मेदारी.
लाख टके का सवाल महापुरुष का नाम उखाड़ना कितना जायज

फतह सिंह उजाला

पटौदी ।   हेली मंडी नगर पालिका क्षेत्र में वैसे तो एक नहीं कई  धर्मशालाएं हैं । लेकिन सबसे अधिक चर्चित और विख्यात पीली धर्मशाला अथवा पंचायती धर्मशाला ही है । हाल ही में इसी पंचायती धर्मशाला को लेकर एक ऐसा विवाद खड़ा हो गया अथवा खड़ा कर दिया गया, जिसकी कि संभवत जरूरत ही नहीं थी ?  थोड़ा सा और संयम बरता जाता तो संभवत आज इस ऐतिहासिक पंचायती धर्मशाला पर पटौदी एसडीएम कोर्ट के द्वारा सील लगाने के भी आदेश नहीं दिए जाते ।

बहरहाल अब सीधी और साफ बात यह है की एसडीएम कोर्ट की कार्यवाही के मुताबिक पंचायती धर्मशाला पर सील लगाई जा चुकी है और यह किसी भी सभ्य समाज और बुद्धिजीवी वर्ग के लिए सामाजिक दृष्टिकोण से और भावनात्मक नजरिए से उचित नहीं ठहराया जा सकेगा , कथित रूप से प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया गया । इस मामले में पंचायती धर्मशाला में ही आयोजित की गई 1 पंचायत के बाद कथित रूप से पंचायत में मौजूद लोग अपना आपा खो बैठे और सरकारी जमीन पर बनी इस पंचायती  धर्मशाला में ही बनाए गए एक भव्य और आलीशान भवन पर महाराजा अग्रसेन के नाम को उखाड़ कर जोश जोश में एक तरफ फेंक दिया । यह तो अलग बात रही ।

कई दशक से इस पंचायती धर्मशाला की व्यवस्था को देखने और संभालने के लिए कथित रूप से नवाब पटौदी के समय 5 लोगों को सौंपी गई जिम्मेदारी के बाद से प्रबंधन कमेटी के द्वारा ही यहां पर सारी व्यवस्था की देख रखी जा रही थी । आरोप तो यहां तक लगाए गए की इस सरकारी जमीन पर बनी पंचायती धर्मशाला पर एक वर्ग विशेष के द्वारा योजनाबद्ध तरीके से कब्जा किया जाने का प्रयास किया जा रहा है । कब्जा करना और कब्जे का प्रयास, दोनों में जमीन आसमान का अंतर है । वही हालिया प्रबंधन कमेटी के प्रधान के द्वारा भी पुलिस को दी गई शिकायत में बताया गया है कि सरकारी जमीन पर बनी हुई  पंचायती धर्मशाला के अंदर जीर्णोद्धार सहित बनाए गए भवन पर लिखें महाराजा अग्रसेन के नाम को उखाड़ कर फेंक दिया गया। इससे लोगों की भावनाओं को खासतौर से भवन निर्माण के लिए दानदाताओं को मानसिक ठेस पहुंची है । इतना ही नहीं आरोप यहां तक है कि जिन भी लोगों के द्वारा जीर्णोद्धार के लिए आर्थिक सहयोग किया गया उनके नाम लिखे सिलापट्ट को भी नष्ट कर दिया गया अथवा उखाड़ के फेंक दिया गया ।

इस पूरे प्रकरण में जो दोनों पक्षों की एक जैसी जो बात है वह यह है कि दोनों पक्षों ने ही इस बात को खुले दिल से माना है कि पंचायती धर्मशाला सरकारी जमीन पर बनी है । अब सवाल आता है की पंचायती धर्मशाला के नाम बदलने , नाजायज कब्जा करने और अवैध वसूली के जो आरोप लगाए गए हैं, इन आरोपों के ठोस और तर्क पूर्ण साक्ष्य भी देने ही होंगे । दूसरी ओर इसी मामले में यह भी जानकारी सामने आई है कि यहां पंचायती धर्मशाला में जो बिजली का मीटर लगा है वह भी हेली मंडी के एक नामी गिरामी व्यापारी अथवा सेठ के नाम ही लगा हुआ है । कथित रूप से 1940 का एक शिलालेख भी पंचायती धर्मशाला के नाम से ही धर्मशाला परिसर में लगा हुआ है ।

पंचायती धर्मशाला के बाहर आज भी पंचायती धर्मशाला हेली मंडी का बोर्ड ही लगा है । वहीं मौजूदा प्रबंधन कमेटी का ही कहना है कि इतनी बड़ी और भव्य धर्मशाला में ठहरने वाले यात्रियों का लेखा जोखा रखा जाना सामाजिक और कानूनी नजरिए से अनदेखा नहीं किया जा सकता। धर्मशाला के रखरखाव बिजली का खर्च व अन्य प्रकार के विभिन्न खर्च भी होते रहते हैं । सरकारी जमीन पर बनी इस पंचायती धर्मशाला पर यदि किसी भी समुदाय वर्ग के द्वारा कब्जा करने की कोई मंशा पर नियत होती तो यह काम किसी भी सूरत में किसी के लिए भी संभव ही नहीं है । वर्ग विशेष पर आरोप लगाना बेबुनियाद है , क्योंकि पंचायती धर्मशाला प्रबंधन कमेटी के प्रबंधक 10 वर्ष तक ब्राह्मण समुदाय से रहे , इसके बाद में रूस्तगी समाज से हैं , वही समय-समय पर अलग-अलग समाज के लोगों के द्वारा जिम्मेदारी संभाली और निभाई गई है । ऐसे में जो भी आरोप मौजूदा प्रबंधक कमेटी पर लगे अब उन्हें साक्ष्यों के साथ में साबित भी करना चाहिए । बहरहाल चिंतन और मंथन का विषय यही है कि कुछ मामूली सा शुल्क भुगतान कर ठहरने वाले यात्रियों और प्रवासी मजदूरों के लिए ऐसे में जबकि हाड जमा देने वाली सर्दी पड़ रही है ,उन्हें कैसी कैसी समस्या से जूझना पड़ रहा होगा ? कुल मिलाकर तो यही लगता है कि जो कुछ भी घटना घटी और यहां सील लगी , वह हड़बड़ी और जल्दबाजी में आरोप-प्रत्यारोप को लेकर शिकायत बाजी का ही परिणाम है ।

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