आज्ञा पई अकाल दी, तबे चलायो पंथ, सब सिखन को हुक्म है गुरू मानयो ग्रंथ,

भिवानी/मुकेश वत्स  

देश-कौम की खातिर नौ वर्ष की आयु में अपने पिता को कुर्बान करने वाले सिक्खों के दसवें गुरू एंव सर्वस्यदानी श्री गुरू गोबिन्द सिंह का 354 वां  प्रकाश पर्व गुरूद्वारा श्री गुरू सिंह सभा ने बड़ी धूमधाम से मनाया। इस अवसर पर गुरूद्वारा सिंह सभा में लंगर को संगतों के द्वारा बनाया गया और सभी ने एक पंगत में बैठ कर लंगर रूपी प्रसाद को ग्रहण किया।

गुरबाणी कीर्तन करने के लिए पंजाब के रामामंडी से आए रागी जत्थे ने गुरबाणी के माध्यम से दसवें पातशाह श्री गुरू गोबिन्द सिंह के जीवन एंव उनके परिवार के बारे में विस्तार से प्रकाश डालते हुए बताया कि गुरू गोबिन्द सिंह ने धर्म की खातिर पहले अपने पिता श्री गुरू तेग बहादुर को बलिदान किया तो उसके बाद अपने चारो पुत्रों को धर्म के लिए शहीद करवा दिया लेकिन धर्म पर कोई आंच नहीं आने दी।

भिवानी गुरुद्वारा सिंह सभा के मुख्य ग्रंथि गजराज सिंह ने बताया कि गुरु गोविंद सिंह ने जीवन जीने के पांच सिद्धांत दिए हैं जिन्हें पंच ककार कहा जाता है। ये पांच चीजे केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा है। 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना गुरु गोबिंद सिंह जी बेहद ही निडर और बहादुर योद्धा थे। जो उनके बारे में लिखा गया है वो उनकी बहादुरी की गाथा है। सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिडिय़ों सों मैं बाज तड़ऊं तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊं।  गुरु गोबिंद सिंह जी आध्यात्मिक गुरु होने के साथ ही कवि और दार्शनिक भी थे। उन्होंने 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की। शब्द गुरबाणी के माध्यम से संगतो को गुरू से जोडऩे का प्रयास किया। दूसरी ओर युवा कल्याण संगठन के पदाधिकारियों ने कस्बा तोशाम स्थित रघुबीर सिंह फॉर्म पर सिक्खों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह की जयंती मनाई।

संगठन के संरक्षक कमल सिंह प्रधान ने कहा कि गुरू गोबिंद सिंह बहादुरी की मिसाल थे। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने परिवार तक का बलिदान दे दिया।

error: Content is protected !!