किसान नेताओं ने फिर इस बात पर जोर दिया है कि वो इन कानूनों को वापस लिए जाने की मांग से पीछे नहीं हटेंगे, ऐसे में नवें चरण की बातचीत में भी हल निकलने को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है.

दिल्ली: कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुए किसानों के आंदोलन को 50 दिन हो चुके हैं. सरकार और किसान संगठनों के बीच आठ चरणों में बातचीत हो चुकी है, लेकिन मुद्दे का कोई हल नहीं निकल सका है. इस हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने कानूनों पर चर्चा के लिए एक समिति का गठन कर दिया है, जिसका किसान संगठन विरोध कर रहे हैं. ऐसे में शुक्रवार यानी आज एक बार फिर सरकार और किसानों के बीच बातचीत होनी है. नवें चरण की बातचीत के बावजूद भी इस बात पर अनिश्चितता बनी हुई है कि इस मुद्दे पर कोई हल निकलेगा क्योंकि किसान नेताओं ने फिर इस बात पर जोर दिया है कि वो इन कानूनों को वापस लिए जाने की मांग से पीछे नहीं हटेंगे. 

नवें चरण की बातचीत से पहले किसान नेताओं ने गुरुवार को कहा कि वे सरकार के साथ नौवें चरण की बातचीत में हिस्सा लेने जा रहे हैं, लेकिन उन्हें इस बातचीत से ज्यादा उम्मीद नहीं है, क्योंकि वे इन कानूनों को वापस लिए जाने से कम किसी भी फैसले के लिए राजी नहीं होंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कृषि कानूनों के खिलाफ डाली गई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद इनपर चर्चा के लिए एक समिति का गठन किया था. किसानों ने इसका विरोध किया है. उनका कहना है कि वो बातचीत के लिए सरकार के पास जाने को तैयार हैं लेकिन वो किसी समिति के सामने नहीं जाएंगे, क्योंकि ‘कानून सरकार का बनाया हुआ है और अदालत कोई कानून रद्द नहीं कर सकती है.’

भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्राहां) के नेता जोगिंदर सिंह उग्राहां ने कहा था कि उन्हें बैठक से ज्यादा उम्मीद नहीं है क्योकि ‘सरकार उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित पैनल का हवाला देगी. सरकार की हमारी समस्या सुलझाने की कोई अच्छी मंशा नहीं है.’ सिंह ने कहा था, ‘हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया जाए और हमारे फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी दी जाए.

‘वहीं, गुरुवार को कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि उन्हें शुक्रवार को हो रही बातचीत से सकारात्मक परिणाम निकलने की उम्मीद है. वो पहले भी कई बार केंद्र सरकार की इन बैठकों से हल निकलने की आशा जता चुके हैं.

हो सकता है कि किसान संगठनों की सरकार के साथ आज आखिरी बैठक हो क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की समिति की पहली बैठक 19 जनवरी को होने की संभावना है. यह समिति इन कानूनों पर चर्चा करने के बाद कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी.

समिति के सदस्य और शेतकरी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवट ने कहा कि हो सकता है कि किसानों के साथ सरकार की आज आखिरी बैठक हो, जिसके बाद किसानों को समिति के पास भेजा जाए.

किसान संगठनों ने समिति गठित होने के पहले ही कहा था कि वो समिति गठित किए जाने के पक्ष में नहीं हैं और अगर कोई समिति बनाई जाएगी तो वो उसके सामने नहीं जाएंगे. अब जब कोर्ट ने समिति बना दी है तो उनका कहना है कि समिति के हर सदस्य इन कानूनों के खुलेआम समर्थक हैं, ऐसे में निष्पक्ष बातचीत नहीं होगी.

किसानों ने पिछले हफ्ते ट्रैक्टर रैली निकाली थी और कहा था कि अगर 26 जनवरी से पहले उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वो राजपथ पर होने वाली परेड के समानांतर अपनी बड़ी ट्रैक्टर रैली निकालेंगे. केंद्र सरकार ने यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में उठाया था, जिसपर कोर्ट ने किसान संगठनों को नोटिस जारी किया था. सोमवार को इसपर सुनवाई होनी है.

बता दें कि हजारों की संख्या में पंजाब, हरियाणा एवं अन्य राज्यों के किसान दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर पिछले लगभग 50 दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं. उनकी मांग है कि सरकार अपने तीन नए कृषि सुधार कानून वापस ले और उन्हें उनके फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी दे.

सरकार भी इस रुख पर अड़ी हुई है कि वो इन कानूनों को वापस नहीं लेगी. उसका जोर है कि यह कानून किसानों के हित में लाए गए हैं, और प्रदर्शन कर रहे किसानों को इन कानूनों को लेकर गुमराह किया जा रहा है.

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