हिसार, 14 जनवरी। सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने आज नारनौंद हलके के गांव डाटा, खंडा रोड पर आयोजित कार्यक्रमों में शिरकत की और जनसभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि किसान आन्दोलन अब जन-आंदोलन बन गया है। हर वर्ग किसानों के साथ है। दिल्ली बॉर्डर से लेकर गांव की चौपाल तक हर जगह एक ही मांग उठ रही है- 3 कृषि कानून वापिस लो, MSP की कानूनी गारंटी दो। इस दौरान उनके साथ पूर्व केन्द्रीय मंत्री जयप्रकाश मौजूद रहे।

दीपेंद्र हुड्डा ने 3 कृषि कानूनों पर सरकार से 9 सवाल पूछे।

60 से अधिक किसानों की कुर्बानी के बावजूद गहरी नींद में सो रही सरकार नींद से कब जागेगी?

सरकार कह रही है कि तीनों कृषि कानून किसान के फायदे में हैं। लेकिन जब किसान ही इन कानूनों से खुश नहीं है तो इन्हें जबरदस्ती उन पर क्यों थोपा जा रहा है?

सरकार एमएसपी की बात जुबानी कह रही है, इसकी कानूनी गारंटी देने से क्यों बच रही है और एमएसपी की कानूनी गारंटी न देकर किसानों को नुकसान एवं प्राईवेट कंपनियों को फायदा क्यों पहुंचा रही है?

एमएसपी से कम पर खरीदने वाले को सजा का कानूनी प्रावधान करने में क्यों हिचकिचा रही है सरकार?

जब एफसीआई अनाज ही नहीं खरीदेगी तो गरीब को राशन कार्ड पर सस्ता अनाज कैसे और कहां से मिलेगा?

प्राईवेट कंपनियों के लिये कृषि उत्पादों की स्टॉक लिमिट असीमित करने की खुली छूट देने से क्या महंगाई और कालाबाजारी को बढ़ावा नहीं मिलेगा?

अगर बडी कंपनियां कांट्रैक्ट फार्मिंग शुरु कर देंगी तो छोटी जोत वाले किसान और वो भूमिहीन जो दूसरे की जमीन ठेके पर लेकर अपने अपने परिवार का पेट पालते हैं, उनका क्या होगा?

क्या ये सच नहीं है कि मंडियों में अनाज की ढेरी लग जाती है तो भी सरकार के कान पर खरीदने के लिये जूं नहीं रेंगती और जब ढेरियां लगते-लगते बाहर सड़क तक आ जाती हैं, शोर मचता है, धरने होते हैं तब कहीं जाकर सरकार नींद से जागती है और तमाम आनाकानियों के बीच खरीद शुरु होती है। जब सरकार मंडी में ही खरीद से आनाकानी करती है तो मंडी के बाहर कैसे खरीदेगी?

क्या मंडी सिस्टम को बर्बाद करके सरकार हरियाणा, पंजाब के किसान की हालत भी बिहार के किसान जैसी करना चाहती है या बिहार जैसे प्रदेशों के किसान की हालत को हरियाणा-पंजाब जैसे प्रदेशों के किसानों की तरह बनाना चाहती है?

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