सोशल मीडिया की वजह से गलत खबर, फेक न्यूज, अफ़वाह, अभद्र भाषा आदि समाज में फैल गए है जो हर सेकंड व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से वायरल होते रहते है. सोशल मीडिया एक व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली संस्था है और एक ही समय में एक वरदान और शाप है. सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक स्वस्थ, संपन्न लोकतंत्र का अभिन्न अंग है. मगर उपर्युक्त समस्याएं सोशल मीडिया को कायम रखने में सक्षम बनाने और उस पर विश्वास करने में बाधक हैं. सही तरीके से, सही दृष्टिकोण, सही उद्देश्य और सही तरीके से सोशल मीडिया का उपयोग सुनिश्चित करने के लिए हमें नए नियम बनाने होंगे. ✍ – डॉo सत्यवान सौरभ, रिसर्च स्कॉलर,कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, सोशल मीडिया संचार, सहयोग, शिक्षा जैसे विषयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और परिणामस्वरूप सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को सार्वजनिक और सरकारी अधिकारियों की भागीदारी की तरह इसे महत्वपूर्ण मानते हैं. आज हमें सोशल मीडिया को सुरक्षित और संरक्षित रखने की जिम्मेदारी को समझने की जरूरत है ताकि यह समाज के लिए एक प्रगतिशील उपकरण के रूप में काम करे. इन प्लेटफार्मों पर बढ़ते उपयोगकर्ताओं के साथ, बढ़ती प्रौद्योगिकी और बढ़ते दुरुपयोग और दुरुपयोग के लिए प्रवृत्ति बढ़ गई है. सोशल मीडिया का वातावरण कई खतरे पैदा कर रहा है जो एक तत्काल समाधान की मांग करते हैं. सोशल मीडिया पारंपरिक मीडिया से इस मायने में अलग है कि इसकी व्यापक पहुंच है. बातचीत और तत्काल सूचना का आदान-प्रदान,आम तौर पर मुफ्त है और किसी भी प्रवेश बाधाओं का अभाव है. आज सोशल नेटवर्क अनुमानित 34% वार्षिक के साथ दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते उद्योगों में से एक है. लगभग दो दशकों में सोशल मीडिया पूरी तरह से एक मनोरंजक साधन बन गया है. हमारे दैनिक जीवन के लगभग हर पहलू जैसे संवाद, बातचीत और सामाजिकता के तौर पर इसने हमारे समाज के सामाजिक ताने-बाने और सामाजिक रिश्तों की प्रकृति पर व्यापक प्रभाव डाला है. आधुनिक डिजिटल दुनिया में सोशल मीडिया ने लोगों को आवाज दी है. सोशल मीडिया वैश्विक सहयोग की खेती कर रहा है और एक बेहतर दुनिया के लिए सुविधा प्रदान कर रहा है. फिर भी हमें यह समझने की जरूरत है कि वर्षों से सोशल मीडिया ने समाज के विभिन्न वर्गों और वर्गों को कैसे लाभ या हानि में पहुंचाया है. क्या सोशल मीडिया को विनियमित किया जाना चाहिए? सोशल मीडिया के नियमन से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं? और किन तरीकों से अधिक जिम्मेदार उभरते डिजिटल युग के लिए उपयोगी और उद्देश्यपूर्ण सोशल मीडिया कैसे बनाया जा सकता है. सोशल मीडिया ने जो वास्तविक तथ्य मान लिए हैं, उनके आधार पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को जिम्मेदारी बोझ लेना जरूरी है. लेकिन अवैध और अनुचित सामग्री से निपटने के लिए आंतरिक तंत्र होने के बावजूद सोशल मीडिया कंपनियां यह सुनिश्चित करने में विफल रही हैं कि सोशल मीडिया एक सुरक्षित स्थान बना हुआ है और इसका दुरुपयोग नहीं किया जाता है. उदाहरण के लिए श्रीलंका में मुस्लिम विरोधी दंगे, म्यांमार में रोहिंग्या के खिलाफ हिंसा, कैम्ब्रिज एनालिटिका द्वारा व्यक्तिगत डेटा की रिपोर्ट का लीक होना. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म उपयोगकर्ताओं और समग्र सोशल मीडिया स्पेस के हित में उनके नियंत्रण के लिए कहता है. इस बात की चिंता बढ़ रही है कि ये प्लेटफार्म अति-निजीकरण पूर्वाग्रह’ या इको चेंबर्स ’बनाने वाले सामाजिक ध्रुवीकरण में योगदान करते हैं. जैसे वर्तमान घटनाओं के बारे में विचारों का विरोध करने वाले लोग. सोशल मीडिया पर जानकारी साझा करना, गोपनीयता की रक्षा करना बहुत मुश्किल हो जाता है, खासकर बच्चों और किशोरों के लिए जो सुरक्षा करना नहीं जानते हैं. वेब पर उनकी व्यक्तिगत जानकारी के परिणामस्वरूप अनैतिक और अवांछनीय व्यवहार हुए हैं जिससे उनके लिए नैतिक और गोपनीयता संबंधी चिंताएं बढ़ी है. लोकतांत्रिक संस्थाएं जो मुक्त भाषण और अन्य मूल अधिकार की रक्षा करती हैं लेकिन ट्विटर हैंडलर नियमित रूप से उन लोगों का अनुसरण करने का संकेत देता है जो एक समान दृष्टिकोण रखें. इससे न केवल मतदाता व्यवहार बल्कि रोजमर्रा की व्यक्तिगत बातचीत भी प्रभावित होती हैं. जहां लोग सोशल मीडिया के माध्यम से ऑनलाइन घोटाले का शिकार हो रहे हैं वही वो ऑनलाइन छेड़छाड़, साइबर बदमाशी, भड़काऊ या आपत्तिजनक पोस्ट के जरिए मानवाधिकारों का उल्लंघन,सामग्री, सेक्सटिंग और ट्रोलिंग, राजनीतिक और व्यक्तिगत उद्देश्यों के लिए व्यक्ति की गरिमा को रौंदने के लिए ऑनलाइन दुरुपयोग और मानहानि उपयोगकर्ताओं को उनके मेटा-डेटा पर अधिकारों से वंचित किये जा रहें हैं. उनके डेटा के बारे में थोड़ा स्पष्ट ज्ञान या सहमति के साथ एकत्र या उपयोग किया जा रहा है. मानव व्यवहार और सामाजिक कामकाज पर सोशल मीडिया के प्रभावों के कारण सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को विनियमित किया जाना चाहिए. मानसिक स्वास्थ्य पर सोशल मीडिया का प्रतिकूल प्रभाव मनोवैज्ञानिक मुद्दों से जुड़ा रहा है. उदासीनता, चिंता, गंभीर अलगाव, इंटरनेट की लत, साइबरबुलिंग और ऑनलाइन शमिंग के केस दिन भर दिन बढ़ते जा रहें है. ब्लू व्हेल गेम के माध्यम से बच्चों में आत्महत्या और आत्महत्या से जुड़ा हुआ है. अनुसंधान से पता चला है कि सोशल मीडिया का उपयोग आमने-सामने से अलग है जिससे मानव व्यवहार में परिवर्तन आया है. सोशल मीडिया की वजह से गलत खबर, फेक न्यूज, अफ़वाह, अभद्र भाषा आदि समाज में फैल गए है जो हर सेकंड व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से वायरल होते रहते है. सोशल मीडिया एक व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली संस्था है और एक ही समय में एक वरदान और शाप है. सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक स्वस्थ, संपन्न लोकतंत्र का अभिन्न अंग है. मगर उपर्युक्त समस्याएं सोशल मीडिया को कायम रखने में सक्षम बनाने और उस पर विश्वास करने में बाधक हैं. सही तरीके से, सही दृष्टिकोण, सही उद्देश्य और सही तरीके से सोशल मीडिया का उपयोग सुनिश्चित करने के लिए हमें नए नियम बनाने होंगे. इन प्लेटफ़ॉर्म के गलत कदम के प्रसार को सामग्री मॉडरेशन के लिए कदम उठाकर रोका जा सकता है. उन उपायों को लागू करना भी फायदेमंद होगा जो भ्रामक सामग्री की विविधता को सीमित करते हैं. उपयोगकर्ताओं को यह तय करने का विकल्प दें कि वे कौन सी जानकारी देखना चाहते हैं और उन्हें कैसे लक्षित किया जाए. सरकार की भूमिका को नए सिरे से परिभाषित कर सोशल मीडिया के बेहतर उपयोग के लिए सोसाइटी क्षमता का निर्माण, सामाजिक मीडिया कंपनियों को सामग्री मानकों और प्रवर्तन दिशानिर्देशों को परिभाषित करने और समय-समय पर अद्यतन करने के लिए प्रोत्साहित करना, स्पष्ट रूप से अवैध सामग्री के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को उत्तरदायी बनाना स्वच्छ एवं उपयोगी बना सकता है. सभी को शामिल करने और भागीदारी को बढ़ावा देने एवं डिजिटल साक्षरता और जागरूकता से इसको उपयोगी बनाया जा सकता है. Post navigation जहां समर्पण, वहीं सफलताः शालू जिन्दल सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने 3 कृषि कानूनों पर सरकार से पूछे 9 सवाल