तरविंदर सैनी (माईकल )

लोकतंत्र की हत्त्या करने के समान बता रहे हैं सूबे के मुखिया कैमला प्रकरण को और कह रहे हैं कि स्वस्थ लोकतंत्र की मर्यादा यही है कि हर कोई अपनी बात को कह सकता है – फिर मुख्यमंत्री जी आपने लोकतंत्र की मर्यादा का ख्याल क्यों नहीं रखा किसान भी तो अपनी बात रखने के लिए ही तो दिल्ली आ रहे थे उनपर अमानवीय प्रहार और दुर्व्यवहार क्यों किए गए ?

महापंचायत अथवा संवाद कार्यक्रम कैमला (करनाल ) में करने के लिए करोड़ों रुपए जनता के प्रचार और व्यवस्थाओं में पर आपने क्यों खर्च कर डाले जब्कि किसान तो हरियाणा के चारों तरफ बॉर्डर पर बैठे हुए हैं सवांद करना ही चाहते थे तो उनसे करते और एमएसपी कानून बनाने ब तीनों काले कृषिकानूनों को रद्द करने की किसानों की जायज मांगों पर निर्णय लेकर राष्ट्रीय राजमार्गों को खाली करा देशभर से बाधित आवा-जाही को बहाल करने का कार्य करते , उनके मध्य बैठकर साठ से अधिक किसानों की शहादत पर खेद प्रकट कर देश के अन्नदाता के जख्मों पर मरहम लगाने का काम करते किसने रोका था मगर वैसा नहीं करके क़ई दिनों से पूरी सरकार ईस तथाकथित महापंचायत को सफल बनाने में जुटी दिखी क्यों ?

संवाद कार्यक्रम को कैमला में करके सरकार की मंशा किसान वीरोधी कानूनों को किसानों के लिए जबरन फायदे का बताने की थी जिन्हें भारत के किसान सिरे से नकार चुके थे तो यह पूरी कवायद किसानों के जख्मों पर नमक छिड़कने के समान प्रतीत हुई !

कोई भी पंचायत संवाद वार्ता में दोनों पक्षो को समझाने के लिए बुलाया जाता है मगर आपने नाराज पक्ष को तो आमंत्रित ही नहीं किया , अपने पक्ष के लोगों को ही आमंत्रित कर एक एजेंडे के तहत अपना निर्णय ही उचित ठहराना चाहा जिसका परिणाम है यह भारी विरोध जिसे आप कोंग्रेस और कैम्युनिस्टों द्वारा प्रायोजित बता विरोध में उठने वाली आवाजों को दबाना चाहते हैं !

रैली को महापंचायत का नाम देकर सरकार ने भाजपा कार्यकर्ताओं और किसानों को आमने-सामने ला खड़ा कर दिया और इतना ही नहीं आपकी सरकार ने तो बेटे के हाथों बाप को पिटवाने का काम किया क्या ईसी मर्यादा की दुहाई दे रहे हैं मनोहर लाल खट्टर साहब , मोदी सरकार किसान वीरोधी कानून बनाए और किसान उसका विरोध दर्ज करने भी न आएं – काले झंडे भी नहीं लहरा पाएं यह कैसा लोकतंत्र हुआ और लोकतंत्र के जीवित होने की दुहाई वह व्यक्ति दे जिसने तमाम अमर्यादित कार्य कर लोकतंत्र को धता बताने का कार्य किया ।

नारनोल की किसान रैली के विरोध को हल्के में लेकर आपने कैमला में संवाद कार्यक्रम करने का निर्णय लिया चूक आपकी थी , पूरी फोर्स तैनात करने के उपरांत भी आपका मंसूबा सफल नहीं होने दिया गया और किस प्रकार बताएं हरियाणा के किसान आपको कि वह आंदोलनरत हैं – रही विरोध की बात तो मुख्यमंत्री जी समझलें कि आपकी कुनीतियों का विरोध हर स्थान पर होगा फिर चाहें आप रेवाड़ी में दो सौ से अधिक या कैमला में ढ़ाई घँटे अश्रुगैस (मिर्चीबम ) छोड़ें किसान आपको नहीं छोड़ रहा है अपनी मांगे मनवाकर ही मानेगा अहिंसक आंदोलन से – लोकतांत्रिक मूल्यों को भी समझायेगा जिन्हें आपकी सरकार भूल चुकी है लोकतंत्र के जीवित होने के साक्ष्य भी देगा और उसकी मर्यादा की पालना भी सिखाएगा और लाल बहादुर शास्त्री जी के नारे जय जवान” जय किसान” का महत्व भी समझाएगा

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