भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

किसान आंदोलन के चलते हरियाणा में निगम चुनाव हुए और भाजपा ने कमर कसकर इन चुनाव प्रचारों में अपनी सारी शक्ति झोंक दी। पहले तो अपने वरिष्ठतम नेताओं को प्रभारी बनाया, उसके बाद प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री भी इन चुनावों में प्रचार में लगे रहे। सरकार भाजपा की है और विगत इतिहास यह बताता है कि सत्ताशील दल ही निगम चुनावों में बाजी मारता है।

प्रथम बार कांग्रेस ने भी चुनाव चिन्ह पर चुनाव लडऩे की हिम्मत दिखाई और जैसा कि बिखरी-बिखरी कांग्रेस में होता है जिम्मेदारी व्यक्ति विशेष पर ही रह जाती है लेकिन वर्तमान समय में जब किसान और जनमानस भाजपा से आक्रोशित है, इसका लाभ कांग्रेस को मिलना तय है और शायद इसी को देखकर कांग्रेस ने चुनाव चिन्ह पर लडऩा बेहतर समझा।

अब चुनाव में निर्दलीयों की भूमिका भी अहम रहती है और कई स्थान पर तो निर्दलीय बहुत मजबूत दिखाई दिए। अब परिणाम ही बताएंगे कौन कितना मजबूत है।

जैसा कि चुनाव के बाद समाचार आ रहे हैं कि भाजपा की स्थिति डांवाडोल बताई जा रही है। ऐसे में यदि परिणाम भी चर्चाओं के अनुसार हुए तो उसका असर हरियाणा सरकार पर अवश्य पड़ेगा और यह बात सरकार भी भली प्रकार जानती है।

शायद इसलिए आज मुख्यमंत्री ने अपने निवास पर भाजपा के संगठन और विधायकों की बैठक की आवश्यकता समझी है। सूत्रों के अनुसार यह ज्ञात हुआ है कि उस बैठक में निगम चुनाव के पश्चात क्या करना है, किस प्रकार के ब्यान देने हैं आदि चर्चा विशेष रूप से होगी। और फिर जब मंत्री, विधायक और संगठन के अधिकारियों की बैठक हो और उसमें किन-किन विषयों की चर्चा हो या मुख्यमंत्री के मन में क्या है, यह तो शायद देर रात या कल ही पता लगेगा।

अत: जैसा कि हमने कहा कि 30 दिसंबर ऐतिहासिक बन सकती है यदि चुनाव परिणाम भाजपा की आशाओं के अनुरूप नहीं आए तो भाजपा में अनेक परेशानियां खड़ी हो सकती हैं। इनमें सबसे बड़ी तो यह होगी कि सरकार अपना जनाधार खो चुकी है। अत: त्याग पत्र देना चाहिए लेकिन उसके पश्चात संगठन में भी ये बातें चलने लगेंगी कि इस हार का जिम्मेदार चुनाव प्रभारी है, प्रदेश अध्यक्ष है, वहां का एमएलए है या फिर स्वयं मुख्यमंत्री। देखें क्या होता है।

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