भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक शांतिपूर्ण ढंग से चल रहे किसान आंदोलन का रूप अब बदल रहा है। एक माह से चल रहे आंदोलन को देख शायद किसानों का धैर्य जवाब देने लगा है, जिसके परिणाम दिखाई दे रहे हैं कि किसान कानून हाथ में ले टोल प्लाजाओं को फ्री करा रहे हैं, मंत्रियों, विधायकों का घेराव कर रहे हैं और अब कई स्थानों पर सडक़ें जाम करने के भी समाचार आ रहे हैं। हम इस बारे में कोई टिप्पणी तो नहीं करेंगे लेकिन यह जरूर कहेंगे कि 68 वर्ष की उम्र में मैंने पहले कभी इस प्रकार प्रदेश में मंत्रियों, विधायकों का घेराव होते नहीं देखा, सुना। कभी एकाध मंत्री के खिलाफ नाराजगी तो जरूर देखी गई लेकिन इस प्रकार का माहौल पहले कभी देखा नही और यह बात बेबाक रूप से हम कह सकते हैं कि वह स्थिति न तो किसानों के लिए अच्छी है और न ही सरकार के लिए। आज कृषि मंत्री जेपी दलाल को मुख्यमंत्री की रैली रद्द करनी पड़ी किसानों के विरोध को देखते हुए। इससे पहले अंबाला में मुख्यमंत्री की गाड़ी पर डंडे बरसाए गए थे। इसी प्रकार उप मुख्यमंत्री को जब कार्यक्रम करना था तो उनका हैलीपैड उखाड़ दिया गया। आज भिवानी से यह भी समाचार मिले कि कृषि मंत्री और विधायक घनश्याम सर्राफ आदि को गांव में घुसने से रोक लगाने की बात की। इतना ही नहीं हुक्का-पानी बंद करने की भी बात की। किसान आंदोलन को तो हर वर्ग का समर्थन प्राप्त हो रहा है। वह शायद शांतिपूर्ण प्रदर्शन के कारण ही हुआ है। इस प्रकार की उग्रता के पश्चात समय बताएगा कि वह समर्थन कम होता है या बढ़ता है लेकिन यह बात तो तय है कि जो विपक्षी राजनैतिक दल किसानों को समर्थन दे रहे हैं, उनके समर्थन देने में कोई कमी नहीं आएगी। ऐसा लगता है कि दोनों ही पक्ष किसान और सरकार एक-दूसरे के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं। सरकार यह सोच रही है कि देखें ये कितने लंबे समय तक बैठेंगे और दिखाई भी दे रहा है कि किसानों का धैर्य कुछ टूटने लगा है। इसी प्रकार किसान जो टोल प्लाजा फ्री करा रहे हैं, सडक़ें रोक रहे हैं, मंत्रियों के कार्यक्रम रद्द करा रहे हैं, विधायकों का घेराव कर रहे हैं, ये सभी बातें सरकार के धैर्य की परीक्षा भी है, क्योंकि जब कोई नियम तोड़ता है तो सरकार उसे बलपूर्वक भी रोक सकती है। अत: आने वाले समय में कोई ऐसे समाचार भी मिल सकते हैं जोकि अप्रिय हों। सरकार इन स्थितियों को देखते हुए बैकफुट पर नजर आ रही है और आज रविवार को निगमों के चुनाव भी हैं। उनके चुनाव परिणाम यह बताने के लिए पर्याप्त होंगे कि जनता सरकार से विमुख हुई है या सरकार के साथ है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा इन स्थितियों का लाभ उठाते हुए विधानसभा सत्र में अविश्वास प्रस्ताव लाने की मांग कर रहे हैं। समय बताएगा कि जनवरी माह सरकार के लिए क्या लेकर आएगा?— Post navigation शहीद उद्यम सिंह भारत के आजादी के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज मोदी कहेंगे मन की बात तो किसान बजाएंगे ताली-थाली