फोटो सैशन

देश में हालात ये हो चले हैं कि फिट रहना अभिनेताओं से और एक्टिंग करना पोलटीशियन से सीखें। किसान आंदोलन ऐसा अवतरित हुआ कि नेता लोगों को बैठे बिठाए फोटो सैशन का अवसर उपलब्ध हो गया। अपनी अभिनय कला को जांचने-संवारने-निखारने-धार देने का मंच मिल गया। दिल्ली में धरनारत किसानों के साथ संवाद करने का दम तो साहेब दिखा नहीं पाए, लेकिन कच्छ के पगड़ीधारी सिखों के साथ फोटो खिंचवा कर खुद को किसान हितैषी साबित करने की जददोजहद में जुटे हैं। बड़े बड़े लच्छेदार भाषण पेल कर साहेब कह रहे हैं कि किसानों को संकट से उबार कर ही वो दम लेंगे। अगर तीन कृषि कानूनों से किसानों की शंकाएं-आशंकाएं हैं तो वो बातचीत के जरिए इनको दूर करने के लिए तैयार हैं।

ऐसा ही फुस्सफुसा भाषण उन्होंने नोटबंदी की लाचिंग के समय भी दिया था कि जिसमें उन्होंने कहा था कि देशवासी महज 100 दिन की तकलीफ सहन कर लें। उसके बाद देशवासियों के जीवन का कायाकल्प हो जाएगा। और अगर ऐसा न हो पाए तो बेशक उनको चौराहे पर लटका दिया जाए। नोटबंदी से भारतीयों का तो कायाकल्प हुआ नहीं,लेकिन अब हालात ये है कि साहेब और साहेब की पार्टी के लोगों की जुबान पर नोटबंदी का नाम तक नहीं आता।

साहेब अगर किसानों से बातचीत करना चाहते हैं तो फिर उनको रोक कौन रहा है? करें बातचीत। किसानों की शंकाओं का समाधान करें। वो बीच मैदान में आने की बजाय मैदान के बाहर क्यों चक्कर काटते फिर रहे हैं? साहेब की बात में दम हो सकता है कि कृषि कानूनों के मामले में किसानों को विपक्ष ही गुमराह कर रहा हो। राजनीतिक रोटियां सेंक रहा हो। लेकिन अब तो उनकी अपनी पार्टी-संसार की सबसे बड़ी पार्टी बताने वाली भाजपा में भी इन कानूनों का विरोध शुरू हो गया है। पार्टी पदाधिकारियों ने इस्तीफा देना शुरू कर दिया है। पार्टी छोड़नी शुरू कर दी है। यही नहीं बुद्धीजीवी कहे जाने वाले रिटायर्ड जज-आईएएस-आईपीएस-सेना के अफसर भी इन कानूनों के खिलाफ खुल कर खड़े होने लगे हैं। विदेशों में बसे भारतीय इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं।

क्या इन सब को इतनी समझ नहीं कि इन कानूनों से देश का भला होने जा रहा है? ये सब इन कानूनों का विरोध कर राष्ट्रविरोधी काम क्यंू कर रहे हैं? लगता है कि ये देश में ठू मच डैमोक्रेसी का नाजायज फायदा उठा रहे हैं। इसी ठू मच डैमोक्रेसी ने खुद को चाय बेचने वाला बताने-दिखाने-जताने-प्रचारित करने वाले एक शख्स को भारत का प्रधानमंत्री बनाया है। सही ही कहा गया है कि अपने यहां बोलने की कुछ ज्यादा ही आजादी हो गयी है। अब वो दौर आना ही चाहिए कि जब बोलने की आजादी की गारंटी तो हो,लेकिन बोलने के बाद आजादी की गारंटी पर अकुंश लगाया जाए। इस हालात पर कहा जा सकता है..

चोरी-डकैती जो कभी छिपकर होती थी
अब हो रही है सरेआम देख लो
हर रोज कुछ न कुछ बिक रहा है
आए दिन नीलाम होते सरकारी संस्थान देख लो
करोड़ों लोग जो नौकरी खोकर घर बैठे हैं
उनको हाकिम बोला अयोध्या में जाकर राम देख लो
रोज जिस अखबार में आती है खबर गरीबी बढने की
उसी अखबार में हर रोज चीजों के बढते दाम देख लो
कितने ही किसानों ने ठंड में दम तोड़ दिया सड़कों पर
मगर साहेब की चिटठी नवाज शरीफ के नाम देख लो

कांग्रेस

कांग्रेस के सीनियर लीडर रणदीप सुरजेवाला को लगता है कि 99.9 फीसदी कांग्रेसी चाहते हैं कि राहुल गांधी को फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाए। कांग्रेसी तो पता नहीं कितने फीसदी चाहते हैं,लेकिन भाजपा के 100 फीसदी लोग जरूर ये चाहते हैं कि राहुल गांधी ही कांग्रेस के प्रधान बनें। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। अब फिर से राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाए जाने का माहौल तैयार किया जाने लगा है। कांग्रेस अपना प्रधान राहुल को बनाए या किसी को अन्य को बनाए,ये पार्टी का आतंरिक मामला है। अब अगर राहुल गांधी को ही फिर से प्रधान बनाना था तो उन्होंने इस्तीफा देने की नौटंकी क्यंू की? और उस से भी विचित्र ये स्थिति है कि जब राहुल ने इस्तीफा दिया तो उनकी माता सोनिया गांधी ही पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बन गई।

अब पता नहीं इस तरह के फैसलों से कैसे कांग्रेस जनता में पैठ बना पाएगी? राहुल गांधी को ये नहीं भूलना चाहिए कि उनका मुकाबला उन नरेंद्र मोदी से है जो एक चलती फिरती मशीन की तरह काम करते हैं। क्या इस तरह के फैसलों से कांग्रेस मोदी का मुकाबला कर पाएगी? कांग्रेस के कई सीनियर नेताओं ने पार्टी को सक्रिय बनाने के लिए एक चिट्ठी भी सोनिया गांधी के नाम लिखी थी,लेकिन उस पर कुछ ठोस एक्शन लेने की बजाय चिट्ठी लिखने वालों को ही विलेन बनाने की कोशिश की गई। इस माहौल पर कहा जा सकता है:

पत्थर पहले खुद को पत्थर करता है
उसके बाद ही कुछ कारीगर करता है
एक जरा सी किश्ती ने ललकारा है
अब देखें क्या ढोंग समंदर करता है

उपवास

एसवाईएल के नाम पर भाजपाईयों ने जिस तरह से उपवास को गाजे बाजे के साथ प्रचारित किया था उस से तो ऐसा लगता था कि ये एसवाईएल का पानी हरियाणा में लाकर ही उपवास खोलेंगे। उपवास करते दिखाई देने वाले नेताओं ने बड़े बड़े भाषण पेले और साडडा हक एत्थे रक्ख के नारे भी गुंजाए। अगर यंू उपवास रखने से एसवाईएल का पानी आता होता तो ये कभी का आ चुका होता। पानी रैली करने से भी नहीं आना।

पानी लाने और नहर बनवाने की जिम्मेदारी तो केंद्र सरकार की है। मोदी जी की है। अगर हरियाणा भाजपा के लोगों को धरना-प्रदर्शन करना चाहिए तो वो सही मायने में केंद्र सरकार के खिलाफ करना चाहिए जो इस मामले में अपने कर्त्तव्य का निर्वहन करने से बचती फिर रही है। भाजपा को अचानक से एसवाईएल की याद कैसे आ गई? भाजपा के थिंक टैंक को लगता है कि एसवाईएल के नाम पर उपवास कर के वो किसान आंदोलन की हवा निकाल सकते हैं। सारा परिदृश्य बदल सकते हैं। आप भाजपा के नेताओं की इस क्रांतिकारी सोच से कितने सहमत हैं?

विपक्ष

ये विपक्ष के लोग भी न जानें क्या क्या करते रहते हैं? क्या इनका किसानों को बहका कर मन नहीं भरा कि अब इन्होंने तेल कंपनियों को भी बहकाना शुरू कर दिया है। तेल कंपनियों ने विपक्ष के बहकावे में आकर पैट्रोल-डीजल के दाम 92 रूपए प्रति लीटर तक कर दिए हैं। गैस का सिलेंडर 700 रूपए कर दिया है।

अब एक अकेले हमारे 56 इंच्ची किस किस को संभालें? किसी दिन इनको गुस्सा आ गया तो ये गरीबों का भला करने का कठोर निर्णय ले ही लेंगे। पैट्रोल-डीजल को 30 रूपए प्रति लीटर कर देंगे और गैस सिलेंडर तो फ्री में ही कर देंगे। तभी ये विपक्ष के लोग इन तेल कंपनियों को बहकाना छोड़ेगे।

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