दोनों चुनाव लड़ रहे साथ-साथ, उपवास में नहीं दिखे साथ-साथ.
केंद्र में और हरियाणा के सरकार के मुखिया बीजेपी के ही नेता

फतह  सिंह उजाला

कृषि कानूनों को रद्द कराने के लिए अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले विभिन्न किसान संगठनों और किसानों का आंदोलन 24 दिन पूरे कर चुका है । इसी बीच में अचानक से एसवाईएल और पानी का मुद्दा भी हाड जमा देने वाली सर्दी में अचानक से उबाल पर आ गया या फिर किसी रणनीति के तहत एसवाईएल के मुद्दे को गर्म किया गया ? अब यह भी एक नई बहस का मुद्दा बन गया है ।

हरियाणा में बीजेपी और जेजेपी गठबंधन की सरकार है । शनिवार को एसवाईएल के पानी के मुद्दे को लेकर गठबंधन सरकार के ही घटक दल भाजपा के द्वारा प्रदेश भर में किए गए जगह-जगह उपवास के दौरान जजपा का कहीं भी नामोनिशान दिखाई नहीं दिया । आखिर इसके क्या और कौन से कारण रहे, आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर भी बहस और चर्चा होना लाजमी है । क्योंकि विभिन्न शहरों के निकाय चुनाव में आपस में मिलकर चुनावी दंगल में उतरे हुए हैं । तो ऐसे में सवाल भी पढ़ना लाजमी बनता है कि शनिवार को एसवाईएल के पानी के मुद्दे को लेकर उपवास के पंडाल से जजपा क्यों दूर रही ?

किसान आंदोलन का मुख्य मुद्दा कृषि कानून को वापस लेने के साथ-साथ एमएसपी भी है । सुबे में गठबंधन सरकार के घटक दल जजपा के डिप्टी सीएम दुष्यंत भी बारंबार कहते आ रहे हैं कि एमएसपी पर उनका और जजपा पार्टी का स्टैंड साफ है । एमएसपी के साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ हुई तो दुष्यंत डिप्टी सीएम का पद छोड़ देंगे। पद छोड़ना अलग विषय है और एमएलए पद से त्याग देना त्यागपत्र देना अलग मुद्दा है । यह बात अलग है कि डिप्टी सीएम दुष्यंत किसान आंदोलन के साथ-साथ कृषि कानून के मुद्दे को लेकर केंद्र के विभिन्न वरिष्ठ नेताओं और मंत्रियों से मुलाकात कर चुके हैं । इसी कड़ी में हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर भी केंद्र सरकार के मंत्रियों से निरंतर चर्चा करते आ रहे हैं ।

यह तो रही नेताओं की बात, इससे अलग आंदोलनकारी किसान एक ही मांग को लेकर हाड जमा देने वाले 4 डिग्री सेल्सियस तापमान और ठिठुराती रातों में कृषि कानूनों की रद्द किए जाने की मांग को लेकर लंगर डाले हुए हैं । किसान संगठन और किसान संगठनों के प्रतिनिधि भी अपना स्टैंड साफ कर चुके हैं कि किसान आंदोलन पर एसवाईएल के पानी के मुद्दे को लेकर जो कुछ भी हरियाणा में भाजपा और भाजपा के मंत्री नेताओं, विधायकों के द्वारा किया जा रहा है उसका कोई असर नहीं होने देंगे । वहीं शनिवार को ही हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने केंद्र सरकार के मंत्रियों से एक बार फिर मुलाकात कर एसवाईएल के पानी के मुद्दे पर ध्यान आकर्षित किया है । सवाल यह भी है कि जब हरियाणा में बीजेपी और जेजेपी की गठबंधन सरकार है तो दोनों पार्टियों के नेताओं और मंत्रियों की बात अलग अलग क्यों सामने आ रही है ?

किसान आंदोलन दिन प्रतिदिन और भी अधिक मजबूत होता जा रहा है, इसका मुख्य कारण है सोशल मीडिया पर जो वास्तविकता किसान आंदोलन की दिखाई जा रही है वही किसान आंदोलन की मजबूती और किसानों की एकजुटता का मुख्य कारण बनी हुई है । किसान आंदोलन के दौरान अभी तक विभिन्न कारणों से दो दर्जन आंदोलनकारी किसान अपनी जान पर खेल चुके हैं और हैरानी के साथ साथ बेहद दुख की बात यह सामने आई कि शनिवार को हरियाणा में भाजपा के द्वारा किसान हित में एसवाईएल के पानी के मुद्दे को लेकर किए गए उपवास में किसान आंदोलन के दौरान खेत आए किसानों को याद कर श्रद्धांजलि देना भी जरूरी नहीं समझा गया ? किसान आंदोलन में खेत आने वाले किसानों में हरियाणा के किसान भी शामिल रहे हैं।

अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर रविवार को पूरे देश में हर छोटे-बड़े गांव ,कस्बे, शहर में किसानों के द्वारा किसान आंदोलन में जान गवाने वाले किसानों को याद करते हुए शोक सभा और श्रद्धांजलि सभा आयोजित की जाएंगी। जानकारों का मानना है कि इसके बाद से किसान आंदोलन को और अधिक समर्थन सहित मजबूती मिलना तय है । इधर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी आश्वस्त हैं कि वर्ष 2020 के दौरान  कृषि कानून को लेकर किसानों के बीच बने हुए विरोधाभास को देखते हुए आंदोलन के समाधान का कोई ना कोई रास्ता अवश्य निकल आएगा । इन सब बातों से  इतर आंदोलनकारी किसान और किसान संगठनों के द्वारा स्पष्ट कर दिया गया है कि पंजाब और हरियाणा के किसान अब कृषि कानूनों को वापस किया जाने अथवा रद्द होने के बाद ही सरकार से बातचीत के लिए तैयार होंगे । किसान आंदोलन को लेकर जिस प्रकार का भ्रम फैलाया जा रहा है , उसे देखते हुए भी आंदोलनकारी किसानों में दिन-प्रतिदिन रोष सहित गुस्सा भी बढ़ता जा रहा है । बहरहाल लाख टके का सवाल अब यही है कि हरियाणा में गठबंधन सरकार होते हुए बीजेपी और जेजेपी की राय कृषि कानून सहित एसवाईएल के पानी के मुद्दे को लेकर अपनी-अपनी डफली और अपना-अपना राग क्यों बनी हुई  है ? बहरहाल केंद्र सरकार पर चारों तरफ से बढ़ते दबाव को देखते हुए उम्मीद यही है कि किसान आंदोलन का जल्द ही कोई ना कोई तो समाधान का रास्ता अवश्य निकलना चाहिए।

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