दिल्ली के चारों तरफ किसान , सरकार मंत्री पहुंचे खेत खलिहान. सामान्य से 3 डिग्री कम तापमान में भी डटे हैं मजबूती से किसान. सरकार और सरकार के सलाहकारों को नहीं सूझ रहा समाधान फतह सिंह उजाला केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए तीन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलनकारी किसानों का धरना 23 दिन को पार कर अब 24 में दिन में प्रवेश कर चुका है। आंदोलनकारी किसानों की एक ही मांग है कि तीनों िकृषि कानून रद्द किए जाएं । उसके बाद किसान संगठनों से बात करके, कृषि सुधार सहित किसान हित के कानूनों का मसौदा तैयार होना चाहिए । लेकिन अभी तक के पूरे प्रकरण और हालात को देखें तो केंद्र सरकार तीन कृषि कानून को किसी भी सूरत में रद्द करने के मूड में कतई भी दिखाई नहीं दे रही है। वही हाड जमा देने वाली ठंड सामान्य से भी 3 डिग्री कम 4 डिग्री सेल्सियस तापमान में खुले आसमान के नीचे अनगिनत किसान दिल्ली के चारों तरफ मजबूती से डेरा डाले हुए हैं । इस बीच किसान आंदोलन सहित दिल्ली के चारों तरफ किसानों के धरने को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट में कम शब्दों में सारगर्भित जो भी बात कही वह अपने आप में बहुत बड़ा चिंतन और मंथन के लिए संदेश है, विशेष रूप से केंद्र सरकार के लिए। इधर सत्ताधारी पार्टी बीजेपी ने खासतौर से हरियाणा प्रदेश में किसान आंदोलन को देखते हुए एसवाईएल का मुद्दा उछाल दिया है । एसवाईएल के समर्थन में बीजेपी के मंत्री, एमएलए, पदाधिकारी और कार्यकर्ता 1 दिन का उपवास रखेंगे। दूसरी ओर कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर किसानों का आंदोलन 24 दिन में प्रवेश कर चुका होगा। अब यह भी चिंतन-मंथन का विषय है की 8 घंटे का उपवास महत्वपूर्ण होगा या फिर किसानों का अनिश्चितकालीन जारी धरना और इस धरने की अभी कोई मियाद भी नहीं है। एसवाईएल और कृषि कानून को लेकर किसान आंदोलन पर कोई असर होगा, इसकी उम्मीद बहुत कम अथवा नही ंके बराबर ही दिखाई दे रही है। क्यों कि एसवाईएक का मामला-मुद्दा एक दशक से भी अधिक पुराना और केंद्र के पाले में ही है। यहां यह बात कहने में कोई भी गुरेज नहीं की केंद्र सरकार के साथ-साथ तमाम खुफिया एजेंसियां यह आकलन करने में नाकाम रही कि आंदोलनकारी किसान और किसान संगठन कैसी और किस रणनीति के तहत फुलप्रूफ योजना बनाकर दिल्ली के चारों तरफ अपना लंगर जमाने के लिए पहुंचेंगे ? संभवत सरकार ने यह सोचा होगा कि 10-15-20 दिन किसान धरना प्रदर्शन कर लौट जाएंगे, तो इसके अभी ऐसी कोई आसार दूर-दूर तक भी दिखाई नहीं दे रहे । इधर कृषि कानून के लिए समर्थन जुटाने के लिए स्वयं पीएम मोदी को मोर्चा संभाल किसानों के बीच अपनी बात कहने के लिए बेहतर विकल्प लगा । वही एक दिन पहले ही केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के द्वारा भी एक खुला पत्र आंदोलनकारी किसानों के नाम जारी किया गया । पीएम नरेंद्र मोदी के द्वारा कृषि कानून के समर्थन में कही गई बातों और कृषि मंत्री के द्वारा जारी पत्र को अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के साथ-साथ विभिन्न किसान संगठनों के नेताओं के द्वारा पूरी तरह से कथित जुमलेबाजी ही ठहराया जा रहा है । इस बीच एक और बहुत बड़ा सवाल यह है बनकर सामने आ रहा है की कृषि कानून को रद्द करने की मांग को लेकर जारी किसान आंदोलन के दौरान अभी तक करीब दो दर्जन किसानो की जान भी जा चुकी है । यह उन हालात में है जब किसानों का आंदोलन शांतिपूर्वक और पूरी तरह अहिंसात्मक तरीके से चल रहा है। ऐसे में नई बहस भी जन्म लेती दिखाई दे रही है ऐसे कानून का क्या फायदा जो देश के हर नागरिक, मजदूर से लेकर प्रधानमंत्री तक के लिए पेट भरने के वास्ते आग उगलती दुपहरी और बर्फीली रात में खेत खलिहान में अन्न पैदा कर रहा है । उस अन्नदाता की जान अधिक कीमती है या फिर ऐसा कानून जरूरी है , जिसका की अन्नदाता ही विरोध करता आ रहा है । यह बात भी गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा भी केंद्र सरकार से पूछा गया क्या नया कृषि कानून किसानों का आंदोलन समाप्त होने तक स्थगित किया जा सकता है ? इसका भी कोई स्पष्ट जवाब सामने नहीं आ पाया है । वहीं सुप्रीम कोर्ट के द्वारा इस बात को लेकर भी अपरोक्ष चिंता जाहिर की गई है कि किसान आंदोलन राष्ट्रीय मुद्दा ना बन जाए ? ऐसे में केंद्र सरकार और किसान संगठनों की एक कमेटी बनाकर समस्या का समाधान निकाला जाए। नए कृषि कानून को वापस लेने अथवा रद्द किए जाने की मांग को लेकर आंदोलनकारी किसानों के बीच में ही किसानों के द्वारा प्राण त्यागने को देखते हुए आंदोलन और अधिक मजबूत होता दिखाई दे रहा है । वहीं केंद्र सरकार सरकार के मंत्री और सत्ताधारी पार्टी के पदाधिकारी दिल्ली के चारों तरफ लंगर डाले आंदोलनकारी किसानों को अनदेखा कर देश भर में कृषि कानून को लेकर जागरूकता अभियान चलाते हुए एक अलग ही दिशा में जाते दिखाई दे रहे हैं । इस प्रकार से निकट भविष्य में समाधान के आसार भी बेहद धुंधले ही दिखाई दे रहे हैं । इतना तो तय है की आंदोलनकारी किसानों का धरना भी समाप्त होगा और कृषि कानूनों की समस्या का समाधान भी होगा । लेकिन यह किस रूप , किस स्वरूप, किन हालात में होगा, यही सबसे बड़ी चिंता का विषय भी है । इन हालात में अब समय की मांग पहल किए जाने की है , उस में विलंब होना न्याय संगत नहीं होगा। Post navigation पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र भौण्डसी में होगा भव्य दीक्षान्त समारोह का आयोजन क्रांतिकारियों द्वारा किया गया अमर बलिदान आज भी प्ररेणा का स्त्रोत