कमलेश भारतीय अपनी मांगों के लिए आंदोलनरत किसान ने कल एक दिन का उपवास रखा । कितना बड़ा उपहास या विरोधाभास कि जो सबको भर पेट भोजन उपलब्ध करवाता है , वही अपनी मांगों के लिए उपवास पर बैठा है । कंपकंपाती सर्दी में दिल्ली के वाॅर्डर के चारों तरफ बैठा है । सांसद दीपेंद्र हुड्डा व विधायक कुलदीप विश्नोई ने भी उपवास रखे समर्थन में । क्या माजरा है ? तीन तीन काले कानूनों की वापसी के लिए बैठे हैं । दूसरी ओर लगातार केंद्रीय मंत्री कह रहे हैं कि बातचीत के लिए आइए हम आपका भ्रम दूर कर देंगे । यानी वे अडिग हैं । किसान ही भ्रमित बताये जा रहे हैं । सरकार ने तो बड़ा पुण्य का काम किया है किसानों के लिए । बडी बड़ी ढींगें मारी जा रही हैं कृषि सुधार की और किसान है कि समझता ही नहीं । समझने के मूड में नहीं । विपक्ष के झांसे में आ गया है और वही भ्रम दूर करना है । बस ? समझना नहीं चाहती केंद्र सरकार । चाहे कोई भाजपा प्रवक्ता हो या नेता सब समझाने पर उतारू हैं , समझने की सहमत नहीं उठाना चाहते । इधर हरियाणा की राजनीति इस आंदोलन से बुरी तरह प्रभावित हो रही है । जजपा और भाजपा के नेता भी किसानों के हित मे बयानबाज़ी कर अपना वोट बैंक बचाने की कोशिश में हैं । वैसे तीन तीन नगर निगमों के चुनाव आ गये हैं । बरोदा में किसान आंदोलन ने रंग दिखाया था क्या नगर निगम चुनाव पर भी असर पड़ेगा? मुम्बई में कंगना अब बैकफुट पर आ चुकी है । कभी उसे किसान आंदोलन की टिप्पणी के लिए तो कभी महाराष्ट्र के नेताओं पर बयानबाज़ी और ट्वीटरबाजी के लिए कोर्ट में खींचा जा रहा है । यह किसकी पोल खुल रही है ? एक समय ऐसे ही अरविंद केजरीवाल बयानबाज़ी के चलते कितने ही कोर्ट में चक्कर लगाने के लिए मजबूर कर दिये गये थे । अब वे संभल गये हैं । कंगना की अक्ल दाढ़ कब निकलेगी? Post navigation अभी और कितने दिन इंतजार… झोली भर के जाऊंगा या मर के जाऊंगा ! टुकड़े टुकड़े गैंग , बबिता और बादल