शनिवार को देश भर में पीएम मोदी के पुतले फूंकने का आह्वान.
म्ंगलवार  8 दिसंबर को भारत बंद का किया गया आह्वान.
हैदराबाद की जीत और किसान तथा सरकार के बीच बातचीत

फतह सिंह उजाला

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में शनिवार का विशेष महत्व आंका गया है । शनिवार को शनि देव भी कहा गया है। शनि वह ग्रह है, की इसकी छाया से प्रत्येक व्यक्ति बचना ही बेहतर समझता है । ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक शनि को जितना क्रूर ग्रह माना गया है, यह उतना ही उदार भी है । केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए कृषि बिल के मुद्दे को लेकर किसानों का आंदोलन शनिवार को दसवीं दिन में प्रवेश कर जाएगा । अर्थात शनिवार को आंदोलन का दसवां दिन होगा और इसी दिन अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के अधिकृत 41 संगठनों के प्रतिनिधियों और केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों के बीच कृषि बिल के पक्ष और खामियों को लेकर बने विरोधाभास को दूर करने के लिए निर्णायक बैठक भी होनी है।देश के प्रत्येक नागरिक सहित दुनिया की नजरें शनिवार को दिल्ली में दोपहर 2 बजे आरंभ होने वाली बैठक और इसके निकलने वाले परिणाम पर टिकी हुई है

अभी तक के जिस प्रकार के संकेत मिल रहे हैं , उन को देखते हुए अभी भी आशंका बनी हुई है कि शनिवार को भी अपनी – अपनी मांगों और समाधान के मुद्दे को लेकर डटे फ्रंट पर फार्मर और सामने सरकार के बीच कोई समझौता होगा या फिर कोई समाधान निकल सकेगा ? बहरहाल  गुरुवार के बाद शुक्रवार  को अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा और केंद्र सरकार के वार्ताकार मंत्रियों सहित उनके सलाहकारों के बीच शनिवार को बैठक में होने वाली चर्चा सहित सवाल जवाब का पूरा होमवर्क भी किया जा चुका होगा । इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता ।

शनिवार को होने वाली बैठक से पहले ही अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के द्वारा देशभर में विभिन्न स्थानों पर पीएम मोदी के पुतले फूंकने का भी आह्वान किया जा चुका है । जानकारों के मुताबिक केंद्र सरकार पर किसान संगठनों के द्वारा अपनी मांगे मनवाने के दृष्टिगत दबाव बनाने की रणनीति के तहत 8 दिसंबर मंगलवार को भारत बंद रखने का भी एलान कर दिया गया है। इधर घर , खेत, खलिहान, गांव कस्बे छोड़कर देशभर के विभिन्न प्रांतों से अनगिनत किसान दिल्ली  सीमा पर अपना लंगर डाले हुए हैं। जानकारों का कहना है कि अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के साथ-साथ देश भर के विभिन्न किसान संगठनों के प्रतिनिधियों और आंदोलन के रणनीतिकारों ने अपनी रणनीति की किसी को भनक तक नहीं लगने दी है । ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि शनिवार को होने वाली बैठक से पहले की बैठकों के दौर में किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के द्वारा कृषि बिल को निरस्त करने की जो मांग उठाई गई थी, शनिवार को केंद्र सरकार के साथ होने वाली वार्ता की टेबल पर किसान संगठनों के द्वारा फ्रंट पर यही मांग प्रमुखता से रखी जा सकती है

संयुक्त किसान मोर्चा की मांग है संसद का विशेष अधिवेशन बुलाकर कृषि बिल को बिना किसी लाग लपेट के रद्द किया जाए या फिर निरस्त किया जाए । इस मांग के अलावा किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के द्वारा जो मांगे केंद्र सरकार के सामने रखी जा रही हैं , शनिवार को बातचीत की टेबल पर वह सभी मांगे पहली पंक्ति के बजाय अब पीछे की पंक्ति में शामिल की सकती है।

घर ,गांव ,खेत ,खलिहान को छोड़कर दिल्ली की सीमा पर अपनी मांगों को मनवाने के लिए बीते 10 दिनों से लंगर डाले किसानों के बीच समर्थन की सहानुभूति लूटने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों उनके नेताओं और चुने हुए जनप्रतिनिधियों का अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत बनाने के लिए आने का सिलसिला भी बढ़ता ही जा रहा है । लेकिन किसान आंदोलन में शामिल किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के द्वारा इस प्रकार की मुहिम को इसी प्रकार से भी तवज्जो नहीं दी जा रही है । किसान संगठनों का दो टूक कहना है कि यह आंदोलन केवल और केवल किसानों का है , कोई राजनीतिक रैली या फिर राजनीतिक दल का जमावड़ा नहीं है । केंद्र सरकार से जो भी बातचीत होगी अथवा की जाएगी उसमें केवल और केवल अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के द्वारा अधिकृत किसान संगठनों के प्रतिनिधि ही मौजूद रहेगे। इस आंदोलन के संघर्ष का जो भी परिणाम सामने आएगा , उसका नफा अथवा नुकसान का आकलन किसान संगठनों के साथ साथ किसानों के द्वारा ही किया जाएगा।

दूसरी ओर जिस प्रकार से विभिन्न प्रांतों में सत्तासीन भाजपा  सरकार के घटक दलों के नेताओं के द्वारा किसानों की मांग का समर्थन किया जा रहा है , उससे यही प्रतीत होता है कि भाजपा चाहे किसी राज्य में सत्तासीन हो या फिर केंद्र में सत्तासीन हो, पूरा  दवाब किसी न किसी प्रकार से पीएम मोदी पर बनाने का प्रयास निरंतर जारी है । अब शनिवार को देखने वाली बात यही है कि अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा की मांगों के दबाव के आगे केंद्र सरकार के वार्ताकार , मंत्रियों की टीम और अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से पहुंचने वाले किसान संगठनों के प्रतिनिधि सरकार के प्रस्ताव अथवा सुझाव को कितना और किस हद तक स्वीकार करेंगे ? जिस प्रकार के संकेत मिल रहे हैं और जो रणनीति अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा और विभिन्न किसान संगठनों के द्वारा तैयार की गई है, उसे देखते हुए अभी भी आशंका है कि शनिवार को केंद्र के कृषि बिल को लेकर बनी  रार पर कोई राह निकल सकेगी ?

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