गुरूवार को किसी हद तक बैठक में फ्रंट पर रहे फार्मर. अब शनिवार को आमने सामने होंगे फार्मर और सरकार. चाय पान को नकार किसानों का संदेश हम हैं अन्नदाता फतह सिंह उजाला उम्मीद के मुताबिक गुरुवार को बैठक का नतीजा बे-नतीजा ही रहा । इस बात की आशंका बुधवार को ही जाहिर कर दी गई थी और गुरुवार को वही हुआ । अन्नदाता जो कि मतदाता भी है , वही सरकार को बनाता है और देश का पेट भी बसता है । यह तो तय था कि गुरुवार को अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के घटक किसान संगठनों और प्रतिनिधियों के साथ में किसान और सरकार आमने सामने होंगे । गुरुवार की बैठक से पहले ही संयुक्त किसान मोर्चा के द्वारा दो टूक कह दिया गया था, केंद्र सरकार संसद का विशेष अधिवेशन बुलाकर नए कृषि अध्यादेश को बिना किसी लाग लपेट के निरस्त करें । इसी कड़ी में सबसे महत्वपूर्ण मांग एमएसपी को बरकरार रखने के लिए सरकार के द्वारा लिखित में आश्वासन दिया जाने की भी थी। इसी बीच बीते 8 दिनों से देशभर के विभिन्न प्रांतों के किसान सड़कों पर ही दिल्ली के चारों तरफ अपना लंगर डाले हुए अपने हक हकूक के लिए मजबूती से डटे हुए हैं । गुरुवार को साडे 7 घंटे की केंद्र सरकार के मंत्रियों अन्य विशेषज्ञ अधिकारियों की मौजूदगी में विभिन्न 41 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के द्वारा केंद्र के कृषि बिल और किसान संगठनों की मांगों के बीच बिंदुवार चर्चा सहित सवाल जवाब भी हुए । इस साडे 7 घंटे की मैराथन बैठक का नतीजा पूर्वानुमान के मुताबिक बे-नतीजा ही रहा है। हालांकि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के द्वारा इस बात के संकेत दिए गए की सरकार किसानों की बात सुनने के साथ-साथ भावना को भी खुले दिल से समझने सहित सुनने का काम कर रही है । गुरुवार की मैराथन बैठक के बाद कोई भी नतीजा नहीं निकलने पर एक बार फिर से किसान संगठनों के प्रतिनिधियों और सरकार के प्रतिनिधियों के बीच शनिवार को बैठक होना तय किया गया है । हालांकि किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के द्वारा गुरुवार की मैराथन बैठक के बाद में अनमने मन से इतना अवश्य कहा गया कि बैठक सौहार्दपूर्ण माहौल में और सकारात्मक रही है । लेकिन गुरुवार की बैठक में किसान संगठनों और किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने सरकार को कहीं ना कहीं यह एहसास करा दिया है कि किसान वास्तव में अन्नदाता है , क्योंकि बैठक में बातचीत के लिए पहुंचे प्रतिनिधिमंडल के द्वारा सरकार की तरफ से परोसी चाय पान सहित भोजन स्वीकार करने के विपरीत अपने ही किसान भाइयों के अथवा लंगर से मंगाया हुआ अन्न- जल ही ग्रहण किया । यह अपने आप में बहुत गहरा और बड़ा किसानों के द्वारा किया गया संदेश है । बैठक के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने अध्यादेश अथवा बिल में किसान संगठनों की मांग के देखते हुए संशोधन करने का भरोसा भी दिलाया । सूत्रों के मुताबिक किसान संगठन केंद्र के द्वारा कृषि बिल में संशोधन के विपरीत कृषि बिल को रद्द करने की ही वकालत मजबूती से करते रहे । कृषि मंत्री ने यहां तक कहा कि देश के किसानों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात पर पूरा भरोसा करना चाहिए, पीएम मोदी बार-बार कह रहे हैं कि एमएसपी पर खरीद जारी रहेगी। जो भी नए कृषि कानून हैं , उनसे एमएसपी पर किसी भी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ने वाला है । एक बहुत ही महत्वपूर्ण और बड़ी बात कृषि मंत्री तोमर के द्वारा कहीं गई कि किसानों को यह महसूस होता है कि एसडीएम छोटा अधिकारी है ? किसानों को कोर्ट में जाने देने के लिए भी विचार किया जा सकता है । वहीं उन्होंने यह भी कहा कि कांट्रैक्ट फार्मिंग के लिए यह कोई जरूरी नहीं है कि किसान और कांट्रैक्ट करने वाली कंपनी के बीच में किसी भी प्रकार के लिखा पढ़ी अथवा डीड का होना जरूरी है। जमीन किसान की है और किसान की ही रहेगी । कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के द्वारा सरकार का पक्ष तो एक प्रकार से सामने किसी हद तक आ गया। लेकिन मैराथन बैठक समाप्त होने के बाद अखिल भारतीय संयुक्त किसान मोर्चा के तरफ से बैठक में शामिल हुए किसान संगठन और प्रतिनिधियों के बीच आगामी रणनीति और गुरुवार को हुई बातचीत को ध्यान में रखते हुए चिंतन और मंथन का दौर भी शुरू हो चुका है । गुरुवार की मैराथन बैठक के बाद कहीं ना कहीं यह महसूस हो रहा है कि किसान आंदोलन और किसानों के द्वारा जारी धरने को देखते हुए जहां किसान अपनी मांगों को लेकर और सरकार पर दबाव बनाने के मामले में पूरी तरह से फ्रंट पर दिखाई दे रहे हैं । उससे कहीं ना कहीं यह आभास भी हो रहा है कि सरकार कथित रूप से बेशक बैकफुट पर नहीं गई हो ? लेकिन बॉर्डर पर जरूर खड़ी महसूस की जा रही है । अब शनिवार को होने वाली पांचवें दौर की निर्णायक बैठक से पहले शुक्रवार का दिन केंद्र सरकार और संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से बैठक में शामिल होने वाले किसान संगठनों और उनके प्रतिनिधियों सहित रणनीतिकारों के लिए आंदोलन के निर्णायक समापन के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है । फिलहाल अभी तक के जो संकेत मिल रहे हैं किसान आंदोलन को देखते हुए और केंद्र के कृषि बिल के विरोध में मोर्चा खोले बैठे किसानों के द्वारा अपनी मांगे मनवाने के दृष्टिगत कहीं ना कहीं किसान आंदोलन का ही पलड़ा भाारी महसूस किया जा रहा है । दावा तो नहीं किया जा सकता, लेकिन प्रबल संभावना यही है कि कुछ हद तक सरकार को झुकना होगा और किसी हद तक किसान संगठनों के प्रतिनिधियों को भी नरम पढ़ना होगा । जिससे कि किसानों की सभी की सभी नहीं तो अधिकांश मांगे पूरी हो सकेगी। उम्मीद है कि शनिवार को न तो सरकार हारेगी और ना ही किसान संगठन को जीत का गुरूर होगा । मांगों को मानने के साथ-साथ पूरा होने से देश में एक नए कृषि युग का दौर अवश्य देखने के लिए मिल सकेगा। Post navigation किसान आंदोलन की चार बड़ी खूबियाँ ऑनलाईन गेमिंग की ओर अग्रसर होता देश