छोड़ खलिहान सड़क पर किसान….सीएम खट्टर का बयान, आगे दिल्ली और बीच में किसान

सीएम कैप्टन अमरिंदर की दो टूक सीएम खट्टर मांगे माफी. किसानों को दिल्ली से न्योता तो बीच रास्ते में क्यों रोका

फतह सिंह उजाला

केंद्र सरकार के कृषि अध्यादेश में खामियों को देखते हुए किसान अपनी मांगों को मनवाने के लिए खलियान को छोड़ सड़कों पर बीते 3 दिन -से डेरा डाले हुए हैं । किसानों के आंदोलन को लेकर अब हरियाणा और पंजाब के मुख्यमंत्रियों के बीच भी ठन गई है । वहीं दूसरी तरफ पंजाब के साथ-साथ हरियाणा के किसानों सहित उत्तर प्रदेश के किसानों ने भी दिल्ली सीमा पर पहुंचकर अपनी मांगों को मनवाने के लिए डेरा डालना आरंभ किया हुआ है । संभवत यह पहला किसान आंदोलन है जब किसान जो कि वास्तव में किसान से पहले मतदाता भी है अपनी ही चुनी हुई सरकार के द्वारा किए गए फैसले से नाखुश होकर अपनी मांगों को मनवाने के लिए परिवार सहित सड़कों पर दिखाई दे रहा है ।

किसानों की जो मांगे हैं, वह बार-बार दोहराने से कोई फायदा नहीं । इन मांगों के संदर्भ में बारंबार लिखा जा चुका है । उम्मीद पूरी थी कि शनिवार को केंद्र सरकार और आंदोलन कर रहे किसान संगठनों और उनके प्रतिनिधियों के बीच बातचीत के लिए बिसात जरूर बिछेगी, लेकिन किन्ही कारणों से मामला सिरे नहीं चढ़ सका ।

इसी बीच शनिवार को हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर के द्वारा दिए गए बयान ने कथित रूप से भी में आग डालने जैसा काम कर दिखाया । सीएम मनोहर लाल खट्टर के द्वारा जो कुछ भी कहा गया, उसके जवाब में पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के द्वारा दो टूक शब्दों में कहा गया कि जब केंद्र के द्वारा किसानों को न्योता दिया गया तो किसानों को बीच में क्यों रोका गया ?  पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बेहद तल्ख लहजे में हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर को भी खरी खरी सुना डाली । जहां हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर के द्वारा कहा गया कि आंदोलन केवल पंजाब के किसानों के द्वारा ही किया जा रहा है और दिल्ली ही जाना था तो किसानों का प्रतिनिधिमंडल जा सकता था। सीएम खट्टर के द्वारा दिए गए बयान किसान आंदोलन राजनीति से प्रेरित अन्य संगठनों के द्वारा प्रायोजित है , इसका भी पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह के द्वारा कठोर शब्दों में विरोध दर्ज कराया गया ।

वहीं इस पूरे प्रकरण को देखा जाए तो किसानों के द्वारा केंद्र के कृषि अध्यादेश अथवा बिल में खामियों को लेकर अपनी मांगे मनवाने के लिए किया जा रहा आंदोलन क्या केवल मात्र पंजाब के किसानों के लिए ही है ?  बातचीत के बाद किसानों की मांगों पर चर्चा करते हुए जो भी समाधान अथवा अन्य कोई रास्ता या फिर राहत मिलेगी , उस फायदे  का लाभ क्या हरियाणा का किसान लेने से इंकार कर देगा ? या फिर जो भी कुछ किसानों की मांगें मानी जाएंगी वह केवल पंजाब के आंदोलनरत किसानों के लिए ही होगी।

किसान आंदोलन के तीसरे दिन जिस प्रकार की तल्खी हरियाणा और पंजाब के मुख्यमंत्रियों के बीच सुनी और देखी गई , उससे भी कई प्रकार के सवाल चर्चा का विषय बन गए हैं । इस पूरे आंदोलन की सबसे खूबसूरत और महत्वपूर्ण बात रही , वह यह रही है कि मतदाता , अन्नदाता , किसान और पुलिस सहित अन्य सुरक्षा बलों के जवानों के द्वारा अपने -अपने दायरे अथवा अधिकार क्षेत्र में रहते हुए आंदोलन को किसी भी प्रकार से उग्र अथवा बेकाबू नहीं होने गया है ।

हालांकि कृषि अध्यादेश अथवा बिल के मुद्दे पर नाराज किसानों को बातचीत के लिए 3 दिसंबर का  समय दिया गया था । लेकिन किसान संगठन और किसान नेता , उनके साथ-साथ बड़ी संख्या में किसानों ने अपनी पूर्व घोषणा के मुताबिक दिल्ली के लिए कूच कर लिया अब देखना यही है और इसी बात की जिज्ञासा भी बनी हुई है कि केंद्र सरकार और आंदोलनरत किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के बीच होने वाली बातचीत का शुभ समय कौन सा होगा और किसानों के इस आंदोलन के मंथन से कितना और किस प्रकार की छूट अथवा राहत का अमृत प्राप्त हो सकेगा।

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