कोरोना और किसान के बीच दिल्ली और सरकार किसकी. किसानों और सुरक्षा बलों का संयम बना आंदोलन की मिसाल. दिल्ली सरकार की लिखी गई चिट्ठी बनी तुरुप का पत्ता

फतह सिंह उजाला

शुक्रवार को दिन ढलते-ढलते देश की राजधानी दिल्ली के चारों तरफ केवल किसान ही किसान और सुरक्षाबलों के जवान ही जवान आमने सामने डटे रहे। एक तरह से देखा जाए तो 2 दिन की मैराथन आंख-मिचैली के खेल के बीच आखिरकार किसान, जोकि मतदाता भी है , अन्नदाता भी ह,ै अपनी ही चुनी हुई सरकार  तक पहुंचने के लिए दिल्ली की चैखट तक पहुंच ही गए । दूसरे शब्दों में चारों तरफ किसानों के पहुंचने से दिल्ली स्वयं ही किसानों के घेरे में आ गई ।

देशभर के विभिन्न किसान संगठन , केंद्र सरकार के कृषि अध्यादेश अथवा कृषि बिल का विरोध,  इस बिल को लागू करने के साथ ही करते आ रहे हैं । किसी भी बात, कानून, बिल, विधेयक का विरोध तभी संभव है जब सभी पक्ष पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हो। इसी वर्ष के आरंभ होते ही कोरोना कोविड-19 महामारी ने अपने पांव भी देशभर में फैला दिए । इसके साथ ही किसानों की उपज को खरीदने का समय भी आ गया । लेकिन केंद्र सरकार के द्वारा लागू कृषि अध्यादेश अथवा बिल अधिकांश किसान संगठनों को कहीं ना कहीं उनके कृषि अधिकारों के अनुकूल नहीं लगा । इसके साथ ही इस बिल का विरोध भी आरंभ हो गया । इस विरोध के बीच जैसे-तैसे गेहूं और बाजरा की खरीद का काम लगभग पूरा हो चुका है। अब बारी है तो केवल आगामी फसल गेहूं की बिजाई के लिए , क्योंकि  सोना काला सोना अर्थात सरसों की फसल धीरे धीरे तैयार हो रही है ।

अब बात करते हैं सीधी कि आखिर वह कौन से और क्या कारण रहे कि मतदाता और अन्नदाता किसान के द्वारा चुनी गई दिल्ली में बैठी केंद्र की सरकार के बीच सीधा संवाद होने का कोई बिछोना नहीं बिछाया जा सका । जिससे कि इस बीछोने पर बैठकर किसान संगठनों को कृषि अध्यादेश अथवा किसी बिल में जो खामियां अखर रही थी, उन्हें दूर कर लिया जाता। तो संभव है नवंबर माह के अंत में कड़ाके की ठंड को देखते हुए विभिन्न किसान संगठनों के साथ-साथ हजारों किसानों को इस प्रकार से दिल्ली के लिए कूच नहीं करना पड़ता । इस पूरे प्रकरण में सबसे महत्वपूर्ण बात जिसकी अनदेखी करना किसानों और सुरक्षा बल के जवानों के साथ अन्याय होगा, वह यह है कि दोनों पक्षों के द्वारा जो संयम पूरे आंदोलन के समय के दौरान दिखाया गया वह अपने आप में एक मिसाल बन गया है । अन्यथा किसी भी बड़ी अनहोनी की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता था।

किसानों को दिल्ली तक पहुंचने के रोकने के लिए करोना काल के दौरान किए गए तमाम उपाय अन्नदाता और मतदाता किसान के सामने टिके नहीं रह सके । विभिन्न किसान संगठनों  अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, राष्ट्रीय किसान महासंघ, भारतीय किसान यूनियन राजे वाले, भारतीय किसान यूनियन चढूनी सहित अन्य किसान संगठनों के संयुक्त किसान मोर्चा के तत्वाधान में किसान विरोधी 3 कृषि कानून रद्द करो तथा बिजली बिल 2020 वापस लो की मांग को लेकर दिल्ली कूच का आह्वान किया गया । हालांकि एक दिन पहले ही केंद्रीय कृषि मंत्री के द्वारा आंदोलनरत किसान संगठनों का आह्वान किया गया कि बातचीत के लिए केंद्र के दरवाजे खुले हुए हैं । लेकिन दिल्ली में घुसने के सभी रास्ते किसानों के सामने बंद रहे ।

जब यह महसूस किया गया कि किसानों को दिल्ली में घुसने से रोकना संभव नहीं दिखाई दे रहा है , तो दिल्ली सरकार से 9 स्टेडियम अस्थाई जेल बनाने के लिए मंजूरी मांगी गई । इस पूरे प्रकरण मे दिल्ली सरकार की चिट्ठी तुरुप का पत्ता साबित हुई, इस चिट्ठी में दिल्ली सरकार के गृह मंत्री के द्वारा दिल्ली के स्टेडियम को अस्थाई जेल बनाने से इंकार कर दिया गया । ऐसे में किसानों को बुराड़ी पहुंचने की राहत प्रदान की गई , लेकिन किसानों ने वहां जाने से भी इंकार कर दिया । इसी बीच यह बात भी सामने आई कि शनिवार को आंदोलनरत विभिन्न किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से केंद्र के द्वारा बातचीत के लिए 11 बजे का समय तय किया गया है । लेकिन मतदाता, अन्नदाता, किसान और आंदोलन किसान संगठनों के द्वारा बनाई गई रणनीति का भेद लगाने में तमाम एजेंसियां भी कथित रूप से नाकाम रही। संभवत यही कारण रहा कि आंदोलनरत किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के द्वारा किसी भी प्रकार की नरमाई अंतिम समय तक नहीं दिखाई गई ।

इस पूरे आंदोलन का एक और पहलू यह भी रहा कि कांग्रेस पार्टी के कुछ नेताओं को छोड़कर अन्य किसी भी दल अथवा नेता के द्वारा किसानों के बीच आने से परहेज किया गया। किसान आंदोलन को लेकर बहस होना स्वाभाविक बात है, पक्ष और विपक्ष अपनी अपनी बात अपने अपने तर्क के साथ रख रहे  है। लेकिन लाख टके का सवाल यही है कि केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि अध्यादेश को लेकर इसका विरोध कर रहे किसान संगठनों और किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के तर्क को सुनने की जरूरत क्यों महसूस नहीं की गई ? बहरहाल यह बात बिल्कुल सही है कि कोई भी समस्या हो उसका समाधान बातचीत करने से ही निकलता है और पूरा देश सहित सभी आंदोलनरत किसान संगठन और उनसे जुड़े किसान भी यही उम्मीद कर रहे हैं । कोई ना कोई रास्ता अब बातचीत से ही निकल कर किसानों को राहत प्रदान अवश्य करेगा । इसी बातचीत की बिसात के साथ ही समाधान का भी इंतजार बना हुआ है।

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