खुल्लेआम चीटिंग ये अपनी सरकार जो है न- जो भी है न-जैसी भी है न, हर समय मनोहारी फैसले लेने को तत्पर रहती है। जैसे कि हरियाणा की ग्राम पंचायतों में सरकारी फिक्सड डिपोजिट-एफडी को खर्च करने की इजाजत देने की पावर अब डीसी से छीन कर विकास व पंचायत विभाग के निदेशक को दे दी गई है। ऐसा बताया जाता है कि पिछले सप्ताह के आफ द रिकार्ड कालम के जरिए सरकार के संज्ञान में ये विषय लाया गया था कि इस एफडी को खर्च करने की इजाजात देने के कारोबार में व्यापार हो रहा है। इस धंधे में डीसी कमीशनखोरी कर रहे हैं। लिहाजा इस नेक काम को करने का जिम्मा डीसी से लेकर डायरेक्टर को दे दिया गया है। इसका एक मतलब तो ये हुआ कि सरकार ने मान लिया कि डीसी करप्ट हैं और उनके हाथ में ये धंधा यूं ही बरकरार रहा तो फिर करप्शन होता रहेगा,लिहाजा ये काम डायरेक्टर को दे दो। डायरेक्टर ईमानदार प्रजाति का होता है, इसलिए वो इसमें कमीशनखोरी नहीं करेगा। इधर, सरकार के कई होनहार डीसी सरकार से इसलिए मुंह फैलाए बैठे हैं कि जैसे ही उनको ये जानकारी हुई कि एफडी में भी कमीशनखोरी की जा सकती है, तो उन्होंने बहती गंगा में हाथ धोने की तैयारी ही की थी कि सरकार ने डीसी से ये पावर ही विड्रा कर ली। ये तो सरासर चीटिंग है। हैडक्वार्टर पर तैनात एक पुराने आईएएस कह रहे थे कि हम जब डीसी थे हमें ये पता ही नहीं था कि इस तरह से एफडी को खर्च करने की इजाजत देने में भी कमीशन लिया जा सकता है। ये आजकल के नए नवेले डीसी आते ही नए नए गुल खिलाने लग जाते हैं। इनका अंदाज-रफ्तार देख हमारे जैसे पुराने लोग पछताने लग जाते हैं। सरकार को यूं बार बार खेल के नियम नहीं बदलने चाहिए। सबको खुल कर बैटिंग के लिए बरोबर मौका देना चाहिए।उसके हाथों को हमने और के कंगन में देखाछत से वही पुराना चांद हमने आंगन में देखा सरकारी फैसला करप्शन के खात्मे के लिए अपणी मनोहर सरकार जितनी व्याकुल है उतनी व्याकुलता इस नेक काम के खात्मे में शायद इस से पहले कोई सरकार नहीं दिखा पाई। हुआ ये कि सरकार को लगा कि सक्रेटरी आरटीए के पद पर तैनात एचसीएस लोग करप्शन कर रहे हैं,लिहाजा अब समय आ गया है कि इसको मिटाया जाए। इसी सिलसिले को आगे बढाते हुए सरकार ने एडीसी को सक्रेटरी आरटीए का चार्ज दे दिया। इस तरह के मासूम फैसलों का करप्शन रोकने से क्या लेना देना? लेकिन इनकी एक खूबसूरती ये होती है कि पब्लिक को ये लगता रहता है कि सरकार करप्शन के खात्मे के लिए न केवल बेचैन है,बल्कि इस समस्या के निराकरण के लिए अत्यंत परिश्रम भी कर रही है। इसके बाद सरकार ने पब्लिक को कड़ा संदेश देते हुए सक्रेटरी आरटीए का चार्ज एडीसी से ये कहते हुए लिया था कि उनकी करप्शन की शिकायतें बहोत आ रही हैं, इसलिए अब सक्रेटरी आरटीए का काम एडीसी से नहीं करवाया जाएगा। सीईओ जिला परिषद का अलग से गठन कर के और फिर सक्रेटरी आरटीए का चार्ज भी एडीसी से लेकर एडीसी के साथ सरकार घनघौर ज्यादती कर चुकी है। उनके हकों-ठाठ बाट पर घनघौर डाका डाल चुकी है। ये अच्छी बात नहीं है। इसके बाद सरकार ने इस काम के लिए कुछ गैर एडीसी को छांट लिया। कुछ पुलिस वालों को भी सक्रेटरी आरटीए लगा दिया। क्यंूकि ऐसा माना जाता है कि करप्शन के खिलाफ जितने कड़े कदम पुलिस वाले उठा सकते हैं उतने कड़े कदम एचसीएस अफसरों के हो ही नहीं सकते। अब धीरे धीरे सरकार को ये लगने लग गया या अहसास करवाया गया कि सक्रेटरी आरटीए के काम को जितनी मुस्तैदी-शानदार-जानदार और यादगार तरीके से एडीसी कर सकते हैं वैसा औरों के लिए संभव नहीं है। इसलिए अब सक्रेटरी आरटीए का चार्ज फिर से एडीसी को देने का पुण्य कार्य शुरू कर दिया है। शुभ समाचार और शुभ संकेत ये है कि जींद और करनाल के एडीसी को सक्रेटरी आरटीए का काम फिर से प्राप्त हो गया है। उनको उनका हक फिर से मिल गया है। उनकी प्रतिष्ठा बहाल हो गई है। अब वक्त आ गया है कि इस सफर को कारवां में तबदील कर दिया जाए। अन्य काबिल एडीसी को इसी तरह मौका दिया जाए। इसलिए कहा जाता है कि सरकार तो सरकार होती है। वो कब क्या कर जाए, जो कुछ-जैसा भी कर जाए, इसके लिए आज के दौर में सिर्फ और सिर्फ सराहना ही की जानी चाहिए। एडीसी की प्रतिष्ठा को बहाल करने के लिए सरकार की ओर से उठाए गए इन कदमों से बाकी एडीसी भी हौसले में हैं उनको भी उनका हक देर सेवर मिल सकता है। खोया रूतबा हासिल करने के इस सफर का जब आगाज हुआ ही है तो ये अंजाम तक भी जरूर पहुंचेगा। इस हालात पर कहा जा सकता है:आंखों पर भरोसा करना सीखिएहर बात की गवाही नहीं दी जाती बाजरा खरीद कहते हैं कि इस दफा हरियाणा में बाजरे का उत्पादन पिछले बरस की तुलना में घटा है, जबकि सरकारी खरीद करीब दोगुनी हो गई है। झज्जर के दुलीना वासी कृषि विशेषज्ञ डा.रामकुमार ने बाजरे की खरीद में बड़ा स्कैंडल होने की आशंका जताते हुए मुख्यमंत्री मनोहरलाल से इस की जांच की मांग की है। डा.रामकुमार को लगता है कि राजस्व विभाग,कृषि विभाग,खादय व आपूर्ति विभाग,आढती मिल कर इस घोटाले को सिरे चढा रहे हैं। उन्होंने बाजरा खरीद में बड़े पैमाने पर धांधली का आरोप लगाते हुए झज्जर जिले में बाजरा बेचने के लिए आने वाले किसानों को गेट पास जारी होने में भी खेल होने का आरोप लगाया है। उन्होंने इस बारे में आवश्यक तथ्य-सबूत भी सरकार में शीर्ष स्तर तक पहुंचाए हैं। अब सरकार तो सरकार है। अगर अपनी आई पर आ गई तो मामले की जांच करवा कर कसूरवारों को दंड देने का कार्यक्रम शुरू कर सकती है। ये जो घोटालाबाज करने वाले लोग होते हैं वो बहोत पहुंचे हुए होते हैं। इनको किस्म किस्म के तरजुबे होते हैं। इनकी प्रतिभा को नमन करते हुए इतना ही कहा जा सकता है:तजुरबे के मुताबिक खुद को ढाल देता हंूकोई प्यार जताये तो जेब संभाल लेता हंूथप्पड़ के बाद नहीं करता दूसरा गाल आगेखंजर खींचे कोई तो तलवार निकाल लेता हंूवक्त था सांप का तस्सुवर डरा देता थाअब एक आध मैं आस्तीन में पाल लेता हंू Post navigation किलोमीटर स्कीम बसों के संचालन की नहीं अभी ज़रूरत। दोदवा किसानों की मांगें जायज, उन्हें तुरंत स्वीकार करे सरकार – दीपेन्द्र हुड्डा