कमलेश भारतीय

छठ पर्व शुरू जोकि कुछ दिन चलेगा । यह सूर्य उपासना का पर्व माना जाता है और बिहार में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है । जहां तक कि पिछले वर्षों में छठ पूजा पर पहुंचने के लिए रेलगाड़ियों के ऊपर तक बैठ कर जाने के दृश्य आम दिखते थे । कोरोना के चलते छठ पूजा पर दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि जिंदा रहे तो कोई भी पर्व मना सकेंगे । दिल्ली , महाराष्ट्र व ओडिशा में सार्वजनिक स्थलों पर पूजा करने पर रोक लगाई गयी है । लेकिन लोग हैं कि मानते नहीं । दूसरी ओर कोरोना ने फिर से अपनी चाल तेज़ कर दी है । पर एक्टर और भाजपा सांसद रवि किशन ने इस फैसले को पूर्वांचल व बिहार के लोगों की आस्था को ठेस पहुंचाने वाला करार दिया है । यह कैसी राजनीति ? क्या यह राजनीतिक डुबकी है या आस्था की डुबकी ? सोचने की बात है । दूसरी ओर जस्टिस हिमा कोहली और सुब्रहमण्यम् प्रसाद की पीठ ने दिल्ली सरकार के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि इस समय पूजा की अनुमति देना तेज़ी से फैल रहे कोरोना के संक्रमण को और फैलने का एक और कारण देना है ।

दूसरा दृश्य बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारस का है , जहां नागनथैया लीला देखने लोग बिना मास्क पहने पहुंचे । यह सब किसलिए ? आस्था और परंपरा को कोरोना से क्यों टकरा रहे हो? यह सोचने विचारने की बात है । समय के अनुसार कुछ परिवर्तन जरूरी हैं ।

कोरोना को देखते हुए हरियाणा में स्कूल काॅलेज खोले तो गये हैं लेकिन हालात कोई सुखद नहीं । कोरोना का संक्रमण दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है । स्कूलों में नियमों का पालन न हुआ तो यह संक्रमण और फैलेगा । लोग हैं कि डरते नहीं मास्क लगाते नहीं । चालान होने पर अपना प्रभाव जमाती हैं । पर क्या कोरोना इस प्रभाव में आएगा ? नहीं । तो फिर चाहे आस्था की डुबकी हो या परंपरा को नागनथैया कुछ विचार कीजिए ।

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