धर्मपाल वर्मा

चंडीगढ़ । बरोदा के उपचुनाव के बाद फिर एक बार कांग्रेस पार्टी बाजी मार ली गई। कांग्रेस अब लोकदल की राह पर अग्रसर है उसने यहां 1977 से लेकर 2005 तक लगातार चुनाव जीते। बरोदा ऐसा हल्का है जिसे लोग पहले लोक दल का गढ़ कहते थे फिर यह कांग्रेस का गढ़ हो गया और मौजूदा चुनाव के बाद बहुत लोग इसे जाटों का गढ़ भी कह दें तो किसी को कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। बरोदा शुद्ध ग्रामीण हल्का है जिसमें कोई कस्बा तक नहीं है ।इसलिए इसे हरियाणा का शुद्ध ग्रामीण हल्का भी कहा जाता है । चुनाव के बीच में यदि कोई व्यक्ति यह दावा करता था कि इस बार यहां भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीत सकती है ,तो आगे से कई लोग यह जवाब देते थे कि यदि ऐसा है तो फिर अगले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सभी 90 सीटों पर चुनाव जीत जाएगी।

आज हम यह कह सकते हैं कि भारतीय जनता पार्टी को बरोदा में शायद इससे अधिक वोट फिर कभी नहीं मिल पाएंगे ।आप अनुमान लगा सकते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भी जब मोदी का जादू सिर चढ़कर बोलता था तो इस विधानसभा क्षेत्र से भाजपा को इससे ज्यादा वोट नहीं मिल पाए थे ।

75 पार के नारे के समय बेशक सोनीपत जिले में भाजपा ने गलत टिकटें बांटी परंतु बरोदा में जिस तरह के उम्मीदवार आए थे उसे देखते हुए कुछ लोग यह मानने लगे थे कि और कहीं बात बने या न बने , परंतु भाजपा बरोदा में चुनाव जीत सकती है ।कारण यह था कि एक गैर जाट के रूप में राष्ट्रीय दल की टिकट पर चुनाव लड़ रहे पहलवान योगेश्वर दत्त के सामने दो प्रमुख पार्टियों के उम्मीदवार जाट आ गए थे । ऐसे में जाटों की वोटों की विभाजन तब भारतीय जनता पार्टी को मिल सकता था परंतु भाजपा के उम्मीदवार योगेश्वर दत्त थोड़े से अंतर से चुनाव हार गए ।

चुनाव हारने के बाद सबने एक बात जोर देकर कहीं कि यदि भारतीय जनता पार्टी बरोदा से किसी जाट को मैदान में उतार देती तो उसका चुनाव बहुत आसान हो जाता और भाजपा के लिए इस राजनीतिक मरुस्थल में पहली बार कमल खिलने की स्थिति देखने को मिल सकती थी । संयोग से साल भीतर फिर चुनाव हुआ परंतु भारतीय जनता पार्टी ने न जाने क्या सोचकर फिर वही गलती कर ली और लगातार दूसरी बार भी हार का मुंह देखना पड़ा । इस संदर्भ में भारतीय जनता पार्टी के ही कुछ लोग दबी जबान से आज भी यह कहते हैं कि बरोदा में तो पार्टी 16 अक्टूबर को ही चुनाव हार गई थी जब मांग होते हुए भी जाट को टिकट नहीं दी थी।

अब हार तो हो ही गई परंतु भाजपा के लोग इसे अपनी उपलब्धि बता रहे हैं कि उन्हें पहले से ज्यादा वोट मिले हैं मतलब लगभग 50,000 ।

इस चुनाव में भाजपा को पिछले चुनाव की तुलना में लगभग 15,000 ज्यादा वोट मिले. नमस्ते बेटा क्या हाल है ठीक है. परंतु यह 15000 वोट किस कारण से आई इस पर सब के अलग-अलग दावे हैं ।

जेजेपी वाले कह रहे हैं हमारे कारण आई । भाजपा वाले कह रहे हैं कि ऐसा सरकार की नीतियों के कारण हुआ । यदि हम योगेश्वर और उनके साथियों और पहलवानों से पूछेंगे तो वह भी यही कहेंगे कि हम काफी दिन से सक्रिय थे और हमारी मेहनत के कारण ही वोट बढ़ी है ।

चलती बात पर बात कहना जरूरी होता है । बरोदा के उपचुनाव में जनता ने देखा कि चरखी दादरी के निर्दलीय विधायक सोमवीर सांगवान ने इस चुनाव में इतना काम किया कि विरोध में चुनाव लड़ने वाले लोग भी उनके इस खास परिश्रम और समर्पण की तारीफ करने को विवश हुए ।

अब बात करते हैं भाजपा संगठन की । आप मान कर चलें की पार्टी के हरियाणा के अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ और उन द्वारा लगाए गए चुनाव के प्रभारी जेपी दलाल भी इसे जरूर अपनी उपलब्धि बताएंगे । वैसे इस सवाल का जवाब वक्त देगा ।

अब और चीजें तो भाजपा के अंदर की अपनी प्राइवेट हैं सवाल जेजेपी का है।

जेजेपी के लोग बेशक क्लेम कर रहे हो परंतु मुख्यमंत्री ने तो मंच से ही कह दिया कि हमें जे जे पी के वोट नहीं मिले । यदि खबरों की बात करें तो इस चुनाव में भाजपा पर वोट खरीदने मतदाताओं को लालच देने सिलेंडर शराब पैसा बांटने की बातों को सच माने इसकी जिम्मेदार लोग यह कहेंगे कि मतों की यह वृद्धि उनके उपरोक्त हूनर के कारण हुई है । इस चुनाव में असल में वोट बढ़ाने का काम जिस व्यक्ति ने किया उसे शायद कोई गिन ही नहीं रहा है ।

उन्होंने एक एक गांव में भाजपा और भाजपा के उम्मीदवार के पक्ष में ही नहीं मुख्यमंत्री मनोहर लाल के पक्ष में इतनी तर्कपूर्ण बातें की, माहौल बनाया वोट भी डलवाए ।बहुत लोगों को भारतीय जनता पार्टी के साथ जोड़ने का काम किया ।यहां तक कि अपनी सामाजिक और पंचायती साख को भी दांव पर लगाया ।यह काम तो वे तब कर रहे हैं जब वे अपने दम पर विधायक बन कर आए हैं। पार्टी ने तो उनकी टिकट भी काट दी थी । उसके बावजूद उन्होंने सरकार को बिना शर्त समर्थन दिया ।

अब चुनाव में जब वे काम कर रहे थे तब उनके कथित तौर पर भाजपा के उनके विरोधियों ने कथित तौर पर सरकार पर दबाव बनाकर उनके हलके के दो लोगों को उनके सर पर चेयरमैन बना कर बैठा दिया ।

सूत्र बताते हैं कि चुनाव में प्रबंध संभालने वाले कुछ लोग उन्हें नीचा दिखाने की कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते थे । लोग यह कहते देखे गए कि जो व्यक्ति पूरे हल्के को संभालने और अच्छे परिणाम लाने की कुव्वत रखता है उसे एक गांव मैं प्रभारी बनाकर बिठाने की कोशिश तक की गई । वैसे तो यह मुख्यमंत्री और सरकार के लिए जांच का विषय है परंतु जिसने काम किया हो उसे भुला दें और जो स्वार्थ सिद्धि कर निकल जाए इनको सिर पर बिठा ले तो फिर निराशा हार हताशा ही शेष रह जाएगी ,ऐसा भाजपा के नेताओं को मान लेना चाहिए ।

जो लोग खुद अपना चुनाव नहीं जीत पाए वह यह दावा कैसे कर सकते हैं कि 15000 वोट उनके कारण भाजपा उम्मीदवार को मिली है ।यहां यह सवाल भी है की पूरी सरकार मंत्री विधायक चेयरमैन बरोदा में हाजिरी लगा कर गए हैं । उनके आगमन और लाभ हानि का आकलन कौन करेगा ।

अब कुछ नई चीजें सामने आने लगी है इन्हें बदलती हुई राजनीतिक परिस्थितियों से जोड़कर चला जा सकता है और यह माना जा सकता है कि हरियाणा में एक बड़ा फेरबदल होने के आसार नजर आने लगे हैं।

शायद मुख्यमंत्री भी परिस्थितियों को अपने अनुकूल करने की तैयारी में है उन्होंने गुड़गांव जिले में भाजपा के 3 विधायकों के होते हुए भी निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद को चेयरमैन बनाने का फैसला एक योजना के अंतर्गत ही लिया होगा । इसके कई मायने हैं। इसी अगली तैयारी से जोड़ कर देखा जा सकता है। उधर जेजेपी पार्टी की सदस्यता बढ़ाने का काम शुरू करता दिख रहा है ।यह काम अमूमन चुनाव के आसपास किया जाता है परंतु जिस तरह के हालात हैं उसे देखते हुए राजनीतिक पंडित कहने लगे हैं कि जननायक जनता पार्टी के दो विधायक भारतीय जनता पार्टी की खुली तरफदारी करने लगे हैं । जिस तरह मुख्यमंत्री उनकी उपयोगिता पर सवाल उठा रहे हैं और राजनीतिक हालात बदल रहे हैं उसे देखते हुए उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला भी किसी ऐसी योजना पर काम कर सकते हैं कि सरकार को निर्दलीय विधायकों की याद आने लग जाए ।

आपको बता दें कि अब बरोदा के परिणाम सभी राजनीतिक दलों को बरोदा का विशेष ख्याल रखने की कोशिश करने को मजबूर कर देंगे। इनेलो नेता अभय सिंह चौटाला ने तो पहले ही कह दिया है कि वे दिवाली के बाद बरोदा हलके में जाएंगे जनसंपर्क चलाएंगे लोगों का धन्यवाद करेंगे। अब प्रदेश की सरकार को भी बरोदा पर अपना पुराना स्टैंड बनाए रखना पड़ेगा और यदि कांग्रेस ने भी अपनी परिसंपत्ति को नहीं संभाला तो फिर उसे यह बात ध्यान में रखनी पड़ेगी कि इसे और लोग संभालने की तैयारी में लगने वाले हैं।

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