चंडीगढ़, 6 नवम्बर- हरियाणा विधानसभा सत्र में आज कुल सात विधेयक पारित किये गए, जिनमें हरियाणा संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक, 2020, हरियाणा नगरपालिका (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2020, हरियाणा नगर निगम (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2020 हरियाणा विधि अधिकारी (विनियोजन) संशोधन विधेयक, 2020, हरियाणा पंचायती राज (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2020, हरियाणा लोक वित्त उत्तरदायित्व (संशोधन) विधेयक, 2020, और पंजाब भू राजस्व (हरियाणा संशोधन) विधेयक, 2020 शामिल हैं।

हरियाणा संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक, 2020

          संगठित अपराध सिंडिकेट या गैंग की आपराधिक गतिविधि के निवारण और नियंत्रण हेतु तथा उनसे निपटान और उनसे संबंधित या उनके आनुषंगिक मामलों के लिए विशेष उपबंध करने के लिए हरियाणा संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक, 2020 पारित किया गया है। पिछले दशक में राज्य में अपराध के  पैटर्न में  बदलाव देखने को मिला है। पहले व्यक्ति विशेष अथवा समूह द्वारा जघन्य अपराध जैसे हत्या, डकैती, अपहरण और जबरन वसूली की जाती थी, लेकिन पिछले एक दशक में हरियाणा में गैंगस्टर और संगठित अपराध का प्रचलन हुआ है। नई उम्र के अपराधियों के गिरोहों ने एक संगठित आपराधिक उद्यम के रूप में जीवन जीना शुरू कर दिया है।

          ऐसे उदाहरण सामने आए हंै कि हरियाणा के कुछ जिलों में सक्रिय, संगठित आपराधिक गिरोहों ने अपराधियों का एक संगठित नेटवर्क स्थापित कर लिया है। जिनमें शूटर, मुखबिर, गुप्त सूचना देने वाले और हथियार आपूर्तिकर्ता शामिल हैं। अच्छी तरह से परिभाषित सदस्यता और पदानुक्रम के साथ उचित रूप से ये गिरोह मुख्य रूप से सुपारी हत्याओं, व्यावसायियों को धमकी देकर जबरन वसूली, मादक पदार्थों की तस्करी, सुरक्षा रैकेट्स आदि पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। जिनमें भारी लाभ मिलने की संभावना होती है। ये गिरोह संपत्ति पर कब्जा करने के लिए अपराध करते हैं, अपने सहयोगियों की देखभाल करते हैं जो जेल में हैं, महंगे आपराधिक मुकदमें लडऩे वाले वकीलों की सेवाएं लेते हैं और उन गवाहों को मारते हैं जो उनके खिलाफ गवाही देने की हिम्मत करते हैं।

          इस तरह के अपराधी आपराधिक कानून और प्रकिया के सुधार एवं पुर्नवास संबंधी पहलुओं का भी फायदा उठाते हैं और आगे अपराध करने के लिए हिरासत से रिहा हो जाते हैं। कुछ समय में ही ये गिरोह जनता में अपनी एक डरावनी छवि बना लेते हैं। इस तरह की छवि व्यापारियों और उद्योगपतियों से सुरक्षा के बदले धन की उगाही में इन गिरोहों की मदद करती है।  इस प्रकार यह उनके खजानों को भरती है।

          यह नीति निर्माताओं और आंतरिक सुरक्षा विशेषज्ञों के लिए चिन्ता का विषय है और उनका मानना है कि इस तरह की आपराधिक गतिविधियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए कड़े कानून की आवश्यकता है। कुछ राज्यों में पहले से ही विशेष कानून बनाए गए है।

          उदाहरण के लिए महाराष्ट्र राज्य ने 1999 में महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम लागू किया था, जिसे बाद में दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ने भी अपनाया। उत्तर प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक राज्यों ने भी अपने संबंधित अधिनियम बनाए हैं।

          हरियाणा राज्य में संगठित अपराध की उभरती स्थिति के मद्देनजर, यह अनिवार्य हो गया है कि राज्य में भी इसी प्रकार का कानून लागू किया जाए जो गैंगस्टर्स, उनके मुखियाओं और संगठित आपराधिक गिरोहों के सदस्यों के खिलाफ प्रभावी कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करता हो। इस तरह के मजबूत कानून अपराधियों के खिलाफ ठोस और निवारक लेकिन कानून सम्मत कार्रवाई करने के लिए पुलिस को सशक्त बनाएंगे। ऐसे अपराधों की आय से अर्जित संपत्ति को जब्त करने और इस अधिनियम के तहत अपराधों के मुकदमों से निपटने के लिए विशेष अदालतों और विशेष अभियोजकों की व्यवस्था करने के लिए विशेष प्रावधानों को भी लागू करने की आवश्यकता है।

हरियाणा नगरपालिका (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2020

          हरियाणा नगरपालिका अधिनियम, 1973 को आगे संशोधित करने के लिए हरियाणा नगरपालिका (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किया गया है।

          विधि एवं विधायी विभाग की अधिसूचना संख्या लैज. 34/2019 द्वारा हरियाणा नगर पालिका अधिनियम,1973 की सम्बन्धित धाराओं में नगर परिषद/नगर पालिका में प्रधान के पद का चुनाव सीधे तौर पर योग्य मतदाताओं द्वारा करने का प्रावधान किया गया था। तदनुसार हरियाणा नगर पालिका निर्वाचन नियमावली, 1978 भी संशोधन की प्रक्रिया में हैं।

          इससे पूर्व, हरियाणा नगर पालिका अधिनियम, 1973 की सम्बन्धित धाराओं में प्रधान का चुनाव नगर परिषद/नगर पालिका के निर्वाचित सदस्यों द्वारा करने का प्रावधान था तथा सीधे तौर पर प्रधान का चुनाव करवाने के उद्देश्य से अधिनियम की सम्बन्धित धाराओं में संशोधन करते समय ‘प्रधान’ शब्द का लोप किया गया था। इस संदर्भ में, अधिनियम की धारा 21 जहाँ पर प्रधान तथा उप-प्रधान को अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा हटाये जाने का प्रावधान था, में से ‘प्रधान’ शब्द का भी लोप किया गया, जिसके कारण वर्तमान में प्रधान को अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा हटाये जाने के लिए अधिनियम में कोई प्रावधान नहीं है।

          यह पाया किया गया है कि  पूर्व की भांति अधिनियम में सीधे तौर पर योग्य मतदाताओं द्वारा निर्वाचित प्रधान के विरुद्ध भी अविश्वास प्रस्ताव लाने का प्रावधान होना चाहिये, ताकि प्रधान यदि जनहित में कार्य न करे और सम्बन्धित नगर परिषद्/नगर पालिका के तीन-चौथाई निर्वाचित सदस्यों का विश्वास ना रख सके तो प्रधान के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सके। इसलिये हरियाणा नगर पालिका अधिनियम, 1973 में सीधे तौर पर योग्य मतदाताओं द्वारा निर्वाचित प्रधान के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने का प्रावधान करन हेतु ‘प्रधान तथा उप प्रधान’ शीर्षक के पश्चात नई धारा 17क तथा 17ख को जोड़ा गया है। इसी क्रम में अधिनियम की धारा 21 की उप-धारा (4) का लोप किया गया है।

हरियाणा नगर निगम (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2020

          हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 को आगे संशोधित करने के लिए हरियाणा नगर निगम (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किया गया है।

          विधि एवं विधायी विभाग की अधिसूचना लैज.33/2018, 4 अक्तूबर, 2018 द्वारा हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 की सम्बन्धित धाराओं में नगर निगम के महापौर के चुनाव सीधे तौर पर योग्य मतदाताओं द्वारा करने का प्रावधान किया गया था। तदोपरांत, शहरी स्थानीय विभाग की अधिसूचना संख्या 2/10/2018-आर-ढ्ढढ्ढ द्वारा इस बारे हरियाणा नगर निगम निर्वाचन नियमावली,1994 में संशोधन करते हुए पांच नगर निगमों नामत: रोहतक, पानीपत, करनाल, यमुनानगर और हिसार में महापौर के चुनाव सीधे तौर पर योग्य मतदाताओं द्वारा 16 दिसम्बर, 2018 को करवाए गए।

          इससे पूर्व, हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 की सम्बन्धित धाराओं में महापौर का चुनाव नगर निगम के निर्वाचित सदस्यों द्वारा करने का प्रावधान था तथा सीधे तौर पर महापौर का चुनाव करवाने के उद्देश्य से अधिनियम की सम्बन्धित धाराओं में संशोधन करते समय ‘महापौर’ शब्द का लोप कर दिया गया था। इस संदर्भ में, अधिनियम की धारा 37 जहां पर महापौर, वरिष्ठ उप-महापौर व उप-महापौर को अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा हटाए जाने का प्रावधान था, में से ‘महापौर’ शब्द का भी लोप किया गया, जिसके कारण वर्तमान में महापौर को अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा हटाए जाने के लिए अधिनियम में कोई प्रावधान नहीं है।

          यह महसूस किया गया है कि पूर्व की भांति अधिनियम में सीधे तौर पर योग्य मतदाताओं द्वारा निर्वाचित महापौर के विरुद्ध भी अविश्वास प्रस्ताव लाने का प्रावधान होना चाहिए, ताकि महापौर यदि जनहित में कार्य न करे और सम्बन्धित नगर निगम के तीन-चौथाई निर्वाचित सदस्यों का विश्वास न रख सके, तो महापौर के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सके। इसलिए, सीधे तौर पर योग्य मतदाताओं के द्वारा निर्वाचित महापौर के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने का प्रावधान करने के लिए हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 में धारा 37ख को जोड़ा गया है। आगे, महापौर की अनुपस्थिति में वरिष्ठ उप-महापौर तथा इनकी अनुपस्थिति में उप-महापौर या इन सभी की अनुपस्थिति में सम्बन्धित मण्डल आयुक्त द्वारा महापौर का कार्य करने हेतु प्रावधान करने के लिए धारा 37ग को जोड़ा गया है।

          हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 की धारा 164(ग) के दूसरे परंतुक में वर्णित प्रावधान के अनुसार, नगर निगमों की दुकानों और घरों को केवल उन कब्जाधारकों को कलक्टर दर पर हस्तांतरित किया जा सकता है जो पिछले 20 वर्षों से पट्टा/किराया/लाइसेंस शुल्क/तहबाजारी या अन्यथा अनुसार सक्षम प्राधिकारी की अनुमति से उस पर काबिज है।

          यह देखा गया है कि पालिकाओं की लीज/किराया/लाइसेंस शुल्क/तहबाजारी से करें या अन्यथा दुकानों और मकानों की बिक्री के लिए कलैक्टर रेट के अनुसार एकमुश्त भुगतान करने की सामथ्र्य इन दुकानदारों की आय के अनुसार नहीं है। अत: इन दुकानों/मकानों की बिक्री के लिए मूल्य उस पर कब्जे की अवधि के साथ-साथ उसके आकार के साथ जोड़ा जाना चाहिए ताकि इसे खरीदने वालों के लिए इसेअधिक यथार्थवादी और व्यवहारिक बनाया जा सके।

          आगे, नगर निगमों द्वारा अर्जित मामूली किराये या आय, इन नगरपालिका की दुकानों और घरों की बिक्री से प्राप्त आय पर अर्जित ब्याज से भी कम हो सकता है। यह भी महसूस किया गया है कि सरकार द्वारा बनाए गए नियमों और शर्तों को शामिल करके एक नीति बनाई जानी चाहिए, जो विभिन्न वर्गों और व्यक्तियों की श्रेणियों और नगर निगमों की दुकानों और घरों के सम्बन्ध में स्वामित्व अधिकार देने के लिए अलग-अलग हो सकती है जो पट्टे/किराये/लाइसेंस शुल्क/तहबाजारी या अन्यथा के आधार पर पिछले 20 वर्षों के लिए है।

          इसके अलावा, नगर परिषदों और नगरपालिकाओं के स्थलों/भवनों (जिसमेें नगरपालिका की दुकानें शामिल हैं) के निपटान के लिए हरियाणा नगरपालिका सम्पत्ति व राज्य सम्पत्ति प्रबंधन नियम, 2007 के नियम 8(2) के अनुसार पहले से ही व्यवस्था की गई है।

          उपरोक्त के मद्देनजर, हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 की धारा 164(ग) के दूसरे प्रावधान में नगर निगम की दुकान/मकान, सरकार द्वारा निर्धारित दरों या उपायुक्त दर पर कब्जाधारियों को बेचने के लिए संशोधन करने की आवश्यकता है, ताकि नगर निगमों के मामले में इस तरह के प्रावधानों की एकरूपता सुनिश्चित की जा सके और साथ ही पालिका की ऐसी दुकानों और मकानों की बिक्री के लिए जो पिछले 20 वर्षों से कब्जाधारियों के कब्जे में है, की नीति सरकार द्वारा बनाई जा सके।

हरियाणा विधि अधिकारी (विनियोजन) संशोधन विधेयक, 2020

          हरियाणा विधि अधिकारी (विनियोजन) अधिनियम, 2016 को आगे संशोधित करने के लिए हरियाणा विधि अधिकारी (विनियोजन) संशोधन विधेयक, 2020 पारित किया गया है।

          हरियाणा के विधि अधिकारियों (विनियोजन) अधिनियम, 2016 को 14 सितंबर, 2016 को अधिसूचित किया गया था, ताकि पारदर्शी, निष्पक्ष तथा उद्देश्य से महाधिवक्ता, हरियाणा में विधि अधिकारियों की विनियोजन की व्यवस्था प्रदान करने के उद्देश्य से और इससे जुड़े मामलों के लिए या आकस्मिक रूप से जुड़े मामलों के उद्देश्य से किया गया था।

          हालांकि, अनुबंध के आधार पर विधि अधिकारियों की विनियोजन के स्पष्ट उद्देश्य के बावजूद, अधिनियम की धारा 2 (ग), 4, 5, 6(1), 6 (3), 8, 12, 14 और 17 में, शब्द वनियुक्ति, नियुक्ति तथा की नियुक्तिव का उपयोग विज्ञापन में किया गया है जबकि वनियोजित, नियोजन तथा के नियोजनव शब्दों का उपयोग किया जाना चाहिए। अधिनियम के उपर्युक्त अनुभागों में नियुक्त, नियुक्ति तथा की नियुक्तिव शब्दों का उपयोग स्थायी सेवा के रूप में नौकरी की प्रकृति की गलत धारणा दे सकता है हालांकि अधिनियम में, यह विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि उनकी विनियोजन अनुबंध के आधार पर है। इस प्रकार इन शब्दों का उपयोग भ्रम पैदा कर सकता है । इसलिए, अनुभाग 2 (ग), 4, 5, 6 (1), 6(3), 8, 12, 14 और 17 में वनियुक्त, नियुक्ति तथा की नियुक्तिव शब्दों के उपयोग की अनजाने में हुई गलती को अधिनियम की भावना को बनाए रखने के लिए संशोधन के माध्यम से अधिनियम ठीक करना आवश्यक है।

          इसके अलावा, भारत के उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या को ध्यान में रखते हुए अधिनियम की धारा 6 की उपधारा (3) के लिए विशेष योग्यता और अनुभव के आधार पर अधिवक्ताओं को विशेष योग्यता और अनुभव के आधार पर नियोजित किया जाना चाहिए। मामलों की विशेष प्रकृति से निपटने के लिए 5 से बढ़ाकर 10 किया जाए। वर्तमान में, लंबे अनुभव और उच्च पदों के लिए निर्धारित आवश्यकताओं को प्राप्त करने के बाद चयन समिति की सिफारिश पर विनियोजन के बावजूद विधि अधिकारियों के किसी भी उच्च पद के लिए विधि अधिकारी को फिर से नामित करने का कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए, उच्च पदों के विरुद्ध विधि अधिकारी के पदनाम के ऐसे प्रावधान को प्रदान करने के लिए एक नया खंड 9 (क) सम्मिलित किया जाना आवश्यक है ।

हरियाणा पंचायती राज (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2020

          हरियाणा पंचायती राज अधिनियम, 1994 को आगे संशोधित करने के लिए हरियाणा पंचायती राज (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किया गया है।

          यह संशोधन संवैधानिक प्रावधानों को अमल में लाने तथा ग्राम पंचायतों, पंचायत समितियों तथा जिला परिषदों में लिंग के सम्बन्ध में पर्याप्त और समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करते हुए पंचायती राज संस्थाओं के सभी तीनों स्तरों में महिलाओं की भागेदारी बढ़ाने के लिए किया गया है।

          यह संशोधन संरपचों तथा पंचायत समिति एवं जिला परिषद के सदस्यों के पद के लिए ‘क’ श्रेणी से सम्बन्धित पिछड़े वर्ग को आरक्षण प्रदान करना भी प्रस्तावित करता है। यह प्रगतिशील परिवर्तन पिछड़े वर्गों में अधिक वंचितों के सशक्तिकरण तथा उत्थान में मदद करेगा।

          यह संशोधन किसी निर्वाचित सरपंच, पंचायत समिति तथा जिला परिषद के सदस्यों की अपने मतदाताओं के प्रति जवाबदेही बढ़ाने के लिए वापिस बुलाने के उपबन्ध का प्रावधान करता है। इस प्रावधान का आशय पंचायती राज संस्थाओं में शासितों के प्रति शासन की लोकतान्त्रिक जवाबदेही को बढ़ाना है।

हरियाणा लोक वित्त उत्तरदायित्व (संशोधन) विधेयक, 2020

          हरियाणा लोक वित्त उत्तरदायित्व अधिनियम, 2019 को आगे संशोधित करने के लिए हरियाणा लोक वित्त उत्तरदायित्व (संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किया गया है।

          सभी विभागों, बोर्डों, निगमों, सहकारी समितियों, विश्वविद्यालयों, स्थानीय प्राधिकरणों, निकायों, सार्वजनिक संस्थानों और राज्य सरकार, गैर-सरकारी संगठनों द्वारा स्थापित, नियंत्रित या वित्तपोषित, जो राज्य सरकार से अनुदान सहायता या अंशदान प्राप्त करते हैं और वे सभी निकाय जो किसी भी रूप में राज्य सरकार से सार्वजनिक धन प्राप्त करते हैं, वे संगठन जो राज्य के समेकित कोष से धन प्राप्त करते हैं, में उपयुक्त वैधानिक लेखा और आंतरिक लेखा परीक्षा प्रणाली के माध्यम से जवाबदेही की सुविधा के लिए एक कुशल और प्रभावी प्रणाली के माध्यम से राज्य के वित्तीय प्रशासन में जवाबदेही प्रदान करने के लिए यह विधेयक लाया गया है।

पंजाब भू-राजस्व (हरियाणा संशोधन) विधेयक, 2020 

          हरियाणा राज्यार्थ पंजाब भू राजस्व  अधिनियम, 1887 को आगे संशोधित करने के लिए पंजाब भू-राजस्व (हरियाणा संशोधन) विधेयक, 2020  पारित किया गया है।

          राजस्व न्यायालय में लम्बित विभाजन की कार्यवाही के त्वरित निस्तारण के लिए पंजाब भू-राजस्व अधिनियम,1887 में संशोधन किया गया है। यह अनुभव किया गया है कि राजस्व न्यायालयों में लम्बित विभाजन की कार्यवाही में बहुत अधिक समय लगता है क्योंकि इनके  निपटान बारे कोई वैधानिक समय सीमा नहीं है। इसके परिणामस्वरूप भू-स्वामियों, विशेष रूप से ग्रामीण जनता को लम्बे समय तक मुकदमेबाजी का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, यह एक सामान्य प्रवृति है कि हिस्सेदारी में भूमि खरीद ली जाती है और उसके पश्चात बिक्री पत्र के आधार पर विशिष्ट खसरा नम्बरों में गिरदावरी अपने नाम करवा ली जाती है।

          इसके परिणामस्वरूप दीवानी एवं राजस्व न्यायालयों में बहुपक्षीय मुकदमेबाजी होती है। विभाजन में देरी के साथ-साथ मुकदमेबाजी को कम करने के लिए पंजाब भू-राजस्व अधिनियम, 1887 में संशोधन किया जाना आवश्यकता हो गया था। इससे सभी भू स्वामियों, विशेष रूप से किसानों को राहत मिलेगी और मुकदमेबाजी कम होने से कृषि दक्षता को बढ़ावा मिलेगा तथा समयबद्ध विभाजन सुनिश्चित होगा। अत: सार्वजनिक हित एवं उक्त स्थिति के मद्देनजर पंजाब भू-राजस्व अधिनियम, 1887 में धारा 111 व 118 के बाद धारा 111-ए व 118-ए को जोड़ा जाएगा।

error: Content is protected !!