-कमलेश भारतीय

दीवाली के दिन निकट आते जा रहे हैं । इधर हलवाई लगातार मिठाइयां बनाने/बनवाने में लगे हैं । और फैक्ट्रियों की तरह मिठाई की फैक्ट्रियां चल रही हैं । पर ये फैक्ट्रियां किसी के स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रख रहीं । कुछ दिनों से ऐसी खबरें आ रही हैं कि मिठाइयों में मक्खियों गिरी हैं या इनको बनाने में कोई ध्यान नहीं रखा जा रहा सफाई का । कहीं खोया तो कहीं पनीर खराब मिल रहे हैं । आखिर इतनी लापरवाही और जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ क्यों ?

इससे तो पुराना जमाना अच्छा था जब हर घर की महिलाएं खुद ही गुड़ के गुलगुले बनातीं और जो मिठाई बनानी आती , खुद ही बनातीं । मीठी रोटियां बना लेतीं । नमकीन कचौरियां और न जाने क्या क्या । मैंने अपनी दादी को यह सब बनाते देखा है । पूरे मोहल्ले की महिलाएं दीवाली से पहले मिटाई बना लेतीं और एक दूसरे को भी बड़े चाव से बांटतीं । पहली बार कोई बंगाल से मिठाइयां बनाना सीख कर आया और हमारे मोहल्ले के करीब गुलशन बाज़ार में बंगाली मिठाई के नाम से दुकान खोली । वह इतनी साफ सुथरी मिठाई बनाता कि दीवाली से दो तीन पहले ही उसकी सारी दुकान खाली हो चुकी होती । यदि साफ सफाई का ध्यान करोगे तो ग्राहक भी मिलेंगे और दुकान का नाम भी होगा । वह चैना हलवाई हर दीवाली पर याद आता है ।

बेशक प्रशासन हर साल छापे मार कर इस तरह की मिठाई को रोकने की कोशिश करता है लेकिन ये लोग हैं कि मानते नहीं । जनता के स्वास्थ्य की कोई चिंता नहीं । सिर्फ कमाई पर नज़र ।
दूसरे हमारे खेतों में पराली जलाये जाने की खबरें हैं । प्रशासन यहां भी कार्रवाई करता है लेकिन किसान इस बात को क्यों नहीं समझते? पिछले साल पराली से ऐसा प्रदूषण फैला था कि पंदारह दिन तक आकाश पर जैसे बादल छा गये थे । आंखों में एलर्जी अलग से होने लगी । प्रदूषण ही प्रदूषण । दीपावली पर पटाखों का प्रदूषण अभी बाकी है । पराली को जलाने से न रोक पाने पर हरियाणा में एक अधिकारी को निलम्बित भी किया गया था लेकिन यह कोई हल नहीं । पराली जलाने के खतरों से सावधान करना और जागरूक करना जरूरी है । सभी कोशिश करें । हम सब सहयोग करें ।

error: Content is protected !!