उमेश जोशी 

 प्रचार खत्म हो गया है। आरोपों की झड़ी रूक गई है और चुनातियों की हुंकार शांत हो गई है। चंद घड़ियों बाद मतदान शुरू हो जाएगा; व्यंग्य बाण चलाने और चुनावी मैदान में ललकारने वाले चपल नेता 10 तारीख की प्रतीक्षा में विश्राम की मुद्रा में आ गए हैं। 

बरोदा उपचुनाव बीजेपी और काँग्रेस दोनों पार्टियों के लिए यादगार रहेगा। बीजेपी के नेता यह चुनाव इसलिए याद करेंगे कि इसमें स्टार प्रचारकों की चमक फीकी रही। थोड़ी कसर बची थी वो मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने निकाल दी। इस चुनाव में किसी भी नेता को कोई तवज्जो नहीं मिली क्योंकि चुनाव की कमान पूरी तरह मुख्यमंत्री के हाथ में थी। पार्टी अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ समेत बीजेपी के कथित बड़े नेता वोट मांगने के लिए कई दिन क्षेत्र में घूमे लेकिन मीडिया की नज़रों से बचे रहे। इसके पीछे भी निश्चित तौर पर कोई रणनीति रही होगी। ऐसी चर्चा है कि सारा क्रेडिट मुख्यमंत्री खुद लेना चाहते हैं। 

मुख्यमंत्री ने प्रचार के दौरान कई बार काँग्रेस के उम्मीदवार, जो भालू के नाम से लोकप्रिय हैं, पर कटाक्ष किया और अपने उम्मीदवार को ज़्यादा लोकप्रिय और काबिल बताया। योगेश्वर दत्त की तारीफ के खूब पुल बाँधे। इसमें कुछ गलत भी नहीं है। हर पार्टी ऐसा ही करती है। मुख्यमंत्री का यह दांव कोई नया नहीं था। लेकिन, मुख्यमंत्री के इस बयान पर ज़रूर हँसी आई कि काँग्रेस के भालू को कौन जानता है। ठीक है कोई नहीं जानता।

मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को 2014 में मुख्यमंत्री बनने से पहले कितने लोग जानते थे? शायद हरियाणा में पार्टी कार्यकर्ताओं के अलावा किसी ने नाम भी नहीं सुना था। फिर भी मनोहर लाल खट्टर विधानसभा का चुनाव जीते और मुख्यमंत्री बन गए। खट्टर साहब को इतनी जानकारी  होनी चाहिए कि चुनाव पार्टी की साख और उम्मीदवार की खुद की छवि पर जीता जाता है। भालू पर व्यंग्य का भाला चलाने से पहले मुख्यमंत्री को 2014 से पहले के मनोहर लाल खट्टर के बारे में भी सोचना चाहिए था। उन्हें इस बात पर भी गौर करना चाहिए था ‘नाम’ वाले नेता भी धूल चाट जाते हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और सात मंत्री चुनाव क्यों हार गए? उनका तो नाम था। पूरा प्रदेश उन्हें जानता था। फिर भी चुनाव नहीं जीत पाए। 

 मुख्यमंत्री यह भी कहते नज़र आए कि योगेश्वर दत्त को जिताएंगे तो इलाके में विकास करवाएंगे। इसका अर्थ यह भी है कि विकास करवाने वाला ही हार गया तो इलाके का विकास नहीं होगा। दबी जुबान में धमकाने वाले अंदाज़ में इलाके के लोगों को  आगाह किया कि योगेश्वर को जिताओगे तो ही विकास हो पाएगा। जनता का भरोसा जीतने को यह भी कहा कि योगेश्वर दत्त विकास नहीं करवाते हैं तो मैं विकास करवाऊंगा। क्या समझे इस बयान से। वो कहना चाहते हैं कि यदि योगेश्वर दत्त विकास के वायदे से मुकर जाए तो मैं हूँ ना! मैं विकास करवाऊंगा। यह तो पहेली हो गई और यह पहेली समझ से परे है। मान लो योगेश्वर दत्त हार जाते हैं तो खट्टर साहब तो हैं ना! तब विकास क्यों नहीं कवाएँगे? क्या मुख्यमंत्री वोटों के नाम पर जनता से सौदेबाजी कर रहे थे। 

  भूपेंद्र सिंह हुड्डा का एक ही जुमला था कि यह उपचुनाव चंडीगढ़ के लिए है। वो यही कहना चाहते हैं कि बरोदा उपचुनाव यह फैसला करेगा कि भविष्य में चंडीगढ़ की कुर्सी किसे मिलेगी। यह चुनाव बीजेपी और काँग्रेस का भविष्य तय करेगा। हारने वाले को हार नहीं पहनाए जाते; उसे गद्दी गंवानी पड़ती है। बरोदा उपचुनाव से फैसला हो जाएगा कि कौन गद्दी गँवायेगा।

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