-कमलेश भारतीय

बचपन से ही जासूसी उपन्यास बहुत प्रिय रहे । अपने छोटे से शहर मे दो ऐसी दुकानें थीं जो किराये पर किताबें देती थीं -एक किताब, एक दिन और किराया चार आने । चार जासूसी उपन्यास लाता और रात की रात पढ़ने के बाद दूसरे दिन लौटा देता । फिर नये चार उपन्यास । इस तरह एक साल में मैने दोनों दुकानों में उपलब्ध उपन्यास पढ़ डाले थे । सारा स्टाॅक खत्म । फिर सोचा कि खुद ही लिखूं । यह बहुत अच्छा हुआ कि मेरी लिखी जासूसी कहानी को किसी समाचार पत्र में जगह नहीं मिली । खैर । जासूसी उपन्यासों की तरह आज भी क्राइम पेट्रोल बहुत पसंद है । ऐसी घटनाएं या कहें कि हैरतअंगेज वारदातें कि रौंगटे खड़े हो जाते हैं और सहज ही विश्वास नहीं होता कि सचमुच कोई ऐसा कर सकता है ? पूर्व विधायक रेलूराम पूनिया की बेटी सोनिया ने जो किया वह कितना लोमहर्षक था । ईश्वर ने मात्रश्याम में जो किया वह कितना भयंकर कांड था । डाटा के राममेहर ने जो किया वह क्या कम था ?

आज पानीपत से ऐसी ही हैरतअंगेज घटना पढ़ कर दिल दहल गया । कोई पत्नी इस हद तक गिर सकती है ? अपने प्रेमी के साथ मिल कर पति की न केवल हत्या कर डाली बल्कि टेंपरेरी टाॅयलट बनवा कर शव को उसी में दफना दिया और उसकी स्लैब पर बैठकर रोज़ नहाती रही । तीन माह पति के फरार होने की रिपोर्ट दर्ज करवाई लापता होने की । पीछे से सीट लगवाने के लिए मां ने गड्ढा खुदवाया तो कंकाल मिला । फिर भी कोई अफसोस नहीं और यही कह रही है कि काश , बाजार जाने के बाद मां ने गड्ढा न खुदवाया होता तो ज़िंदगी भर भेद न खुलता । प्रेमी के बारे में कोई जानकारी नहीं दे रही । ये किस समाज में रहते हैं हम ?

क्राइम पेट्रोल में ही देखा कि कैसे एक प्रेमी अपनी प्रेमिका के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर सूटकेस में डाल डाल कर फेंकता है । कोहली और उसके नौकर की नर मांस खाने की ललक और मासूमों की हत्याओं का विवरण । यह हमारा कैसा समाज? कहां पहुंच गया या पहुंचता जा रहा है ? एक बेटे ने अपने ही मां बाप को घर के लाॅन में ही दफना दिया । कितनी तरह के एपीसोड । ये झूठ पर नहीं सत्य कथाओं पर आधारित हैं । यही हमारे समाज का आइना है । असली तस्वीर । कितनी भयावह
। कितनी दर्दनाक । हमारा मनोविज्ञान क्या कहता है? क्यों इतने खतरनाक विचार आ जाते हैं और उन्हें अंजाम देते हाथ नहीं कांपते ? मन नहीं डोलता ? आत्मा नहीं कांपती? यह विचार करने की बात है ।

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